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Moon Mythological Story: प्रजापति दक्ष ने चंद्रदेव को क्यों दिया श्राप? जानिए कैसे मिली उन्हें इससे मुक्ति

जीवांजलि डेस्क Published by: सुप्रिया शर्मा Updated Mon, 10 Jun 2024 08:30 AM IST
सार

Chandrama Ki Katha: ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन और शीतलता का कारक माना जाता है। कुंडली में चंद्रमा की स्थिति शुभ हो तो जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।

Chandrama Ki Katha
Chandrama Ki Katha- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Chandrama Ki Katha: ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन और शीतलता का कारक माना जाता है। कुंडली में चंद्रमा की स्थिति शुभ हो तो जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। इसकी कृपा से अच्छा पोषण प्राप्त होता है। वहीं, चंद्रमा के अशुभ प्रभाव से मानसिक विकार, मन का भटकना, माता को कष्ट आदि होते हैं। 
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हिंदू धर्म में चंद्रमा का बहुत महत्व है। वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है। खास बात यह है कि हमारी कुंडली में चंद्रमा की स्थिति शुभ मानी जाती है। क्या आप जानते हैं कि हिंदू धर्म में कई ऐसे त्योहार हैं, जो चांद के बिना पूरे नहीं माने जाते। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चंद्रमा की कृपा से मां का स्वास्थ्य बेहतर रहता है। इसके अलावा अच्छे जीवन साथी की प्राप्ति होती है। ज्योतिष में चंद्रमा का विशेष स्थान है। इसे ग्रह और देवता दोनों माना जाता है। हालाँकि, इसकी उत्पत्ति के बारे में कई पौराणिक कहानियाँ प्रचलित हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि चंद्रदेव को भी श्राप मिला है। आइये जानते हैं कि चंद्रदेव को किसने और कब श्राप दिया था। साथ ही, आइए जानते हैं चंद्रमा की उत्पत्ति के बारे में। चंद्रमा का विवाह दक्ष की पुत्रियों से हुआ था
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27 कन्याओं से हुआ चंद्रमा का विवाह

पुराणों के अनुसार, चंद्रमा का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से हुआ था। जिनके नाम हैं रोहिणी, रेवती, श्रवण, सर्विष्ठा, शतभिषा, प्रोष्टपाद, अश्वयुज, कृत्तिका, मृगशिरा, आद्रा, पुनर्वसु, मेघा, स्वाति, चित्रा, फाल्गुनी, हस्त, राधा, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूला, सुन्निता, पुष्य, अश्वलेशा , आषाढ़, अभिजीत और भरणी।

इस वजह से लगा श्राप

पौराणिक कथा के अनुसार, राजा दक्ष की 27 बेटियां थीं और उन्होंने उन सभी का विवाह चंद्रमा से कर दिया था। इस दौरान राजा दक्ष ने शर्त रखी थी कि चंद्रमा उनकी सभी 27 पत्नियों के साथ समान व्यवहार करेंगे। हालांकि, वे रोहिणी के सबसे करीब थे। इससे दुखी होकर बाकी बेटियों ने अपने पिता राजा दक्ष से शिकायत की। जिसके बाद दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दे दिया। जिसके कारण वे क्षय रोग से ग्रसित हो गए। इतना ही नहीं, चंद्रमा के सभी चरण भी समाप्त हो गए।

कैसे हुई चंद्रमा की उत्पत्ति?

अग्नि पुराण के अनुसार जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की तो सबसे पहले उन्होंने मानस पुत्रों की रचना की। उनमें से एक ऋषि अत्रि का विवाह ऋषि कर्दम की पुत्री अनसूया से हुआ था। और चंद्रमा उनकी संतान हैं। पद्म पुराण के अनुसार ब्रह्मा ने अपने मानस पुत्र अत्रि को सृष्टि का विस्तार करने का आदेश दिया। उनका आदेश पाकर महर्षि अत्रि ने तपस्या शुरू की। तपस्या के दौरान एक दिन महर्षि की आंखों से जल की कुछ बूंदें गिरीं जो बहुत तेजोमय थीं। तब दिशाएं स्त्री का रूप धारण करके आईं और पुत्र प्राप्ति की इच्छा से उन बूंदों को ग्रहण कर लिया। लेकिन दिशाएं उन बूंदों को धारण नहीं कर सकीं और उन्हें त्याग दिया। ब्रह्मा ने उस त्यागे हुए गर्भ को चंद्रमा के नाम से प्रसिद्ध किया।

चंद्रमा का विवाह दक्ष की पुत्रियों से हुआ था

अग्नि पुराण की कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने जब सृष्टि की रचना करने का विचार किया तो उन्होंने सबसे पहले मानस पुत्रों की रचना की। इन्हीं मानस पुत्रों में से एक ऋषि अत्रि थे। अत्रि का विवाह महर्षि कर्दम की पुत्री अनुसूया से हुआ था। देवी अनुसूया के तीन पुत्र हुए जिन्हें दुर्वासा, दत्तात्रेय और सोम के नाम से जाना गया। सोम चंद्रमा का ही दूसरा नाम है।

पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की सत्ताइस पुत्रियां थीं। उन सभी का विवाह चंद्रदेव से हुआ था लेकिन चंद्रमा केवल रोहिणी से ही प्रेम करते थे। दक्ष प्रजापति की अन्य पुत्रियाँ उनके इस कृत्य से बहुत क्रोधित हुईं। उन्होंने अपनी पीड़ा अपने पिता को बताई। दक्ष प्रजापति ने चंद्रदेव को बहुत तरह से समझाने की कोशिश की लेकिन वे नहीं माने।

दक्ष ने दिया चंद्रमा को श्राप, कैसे मिली मुक्ति

जब चंद्रमा ने दक्ष के बार-बार समझाने पर भी उनकी बात नहीं मानी तो दक्ष ने क्रोधित होकर उन्हें क्षय रोग से ग्रसित होने का श्राप दे दिया। इस श्राप के कारण चंद्रदेव को तत्काल क्षय रोग हो गया। क्षय रोग होते ही पृथ्वी को अमृत और शीतलता प्रदान करने का उनका सारा कार्य रुक गया। चारों ओर हाहाकार मच गया। दुखी चंद्रमा अपना दुख लेकर ब्रह्माजी के पास गए। ब्रह्माजी ने चंद्रमा से भगवान शिव की आराधना करने को कहा।

चंद्रदेव ने भगवान शिव की आराधना की। उन्होंने घोर तपस्या की और दस करोड़ बार मृत्युंजय मंत्र का जाप किया। इस मंत्र से प्रसन्न होकर मृत्युंजय-भगवान शिव ने उन्हें अमरता का वरदान दिया। उन्होंने कहा- 'चंद्रदेव! शोक मत करो। मेरे वरदान से न केवल तुम शाप से मुक्त हो जाओगे, बल्कि प्रजापति दक्ष के वचनों की भी रक्षा होगी।' ऐसा कहकर भगवान शिव ने प्रसन्नतापूर्वक चंद्रमा को अपने सिर पर धारण कर लिया और तभी से उन्हें सोमेश्वर नाथ के नाम से भी जाना जाता है।

भगवान ने कहा कि कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारा एक चरण घटता जाएगा, किन्तु पुनः शुक्ल पक्ष में उसी क्रम से तुम्हारा एक चरण बढ़ता जाएगा। इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा।' इस प्रकार भगवान शंकर के आशीर्वाद से चंद्रदेव श्राप से मुक्त हो गए। चंद्रमा को मिले इस वरदान से समस्त लोकों के प्राणी प्रसन्न हो गए।

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