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Upnayan Sanskar: क्या होता है उपनयन संस्कार जानिए महत्व और संस्कार विधि

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: कोमल Updated Thu, 06 Jun 2024 07:08 AM IST
सार

Upnayan Sanskar: हिंदू धर्म में सोलह संस्कार बताए गए हैं। उनमें से एक है उपनयन संस्कार। यह संस्कार बालक के मन में आध्यात्मिक चेतना जागृत करता है। ऐसा कहा जाता है कि जब बालक ज्ञान प्राप्त करने के योग्य हो जाता है, तब उपनयन संस्कार किया जाता है

उपनयन संस्कार
उपनयन संस्कार- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Upnayan Sanskar: हिंदू धर्म में सोलह संस्कार बताए गए हैं। उनमें से एक है उपनयन संस्कार। यह संस्कार बालक के मन में आध्यात्मिक चेतना जागृत करता है। ऐसा कहा जाता है कि जब बालक ज्ञान प्राप्त करने के योग्य हो जाता है, तब उपनयन संस्कार किया जाता है। इस संस्कार का विशेष महत्व है, खासकर ब्राह्मणों के लिए । यह संस्कार अनादि काल से विधिपूर्वक किया जाता रहा है। आइए आपको इस संस्कार के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं।
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धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

उपनयन संस्कार का धार्मिक महत्व बहुत गहरा है। यह संस्कार बालक को वेदों का अध्ययन करने, यज्ञों में भाग लेने और गुरु-शिष्य परंपरा का पालन करने के लिए प्रेरित करता है। साथ ही यह संस्कार उसे सदाचार, संयम और कठोर परिश्रम जैसे जीवन मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करता है। सांस्कृतिक दृष्टि से भी उपनयन संस्कार का महत्व बहुत अधिक है। यह संस्कार सदियों से चली आ रही भारतीय संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

जाति के अनुसार उपनयन संस्कार की आयु

समाज में जाति व्यवस्था प्रचलित है। इस व्यवस्था के तहत ब्राह्मण पहले स्थान पर हैं, क्षत्रिय दूसरे स्थान पर हैं। तीसरे पर वैश्य और चौथे पर शूद्र होता है। इस क्रम में ब्राह्मण बालक का उपनयन संस्कार आठवें वर्ष में, क्षत्रिय बालक का 11वें वर्ष में तथा वैश्य बालक का उपनयन संस्कार 15वें वर्ष में किया जाता है।
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उपनयन संस्कार की सामग्री और तैयारी

प्राचीन परंपरा के अनुसार उपनयन संस्कार स्वीकार करने से पहले बालक का सिर मुंडवाना चाहिए। यदि सिर मुंडवाना नहीं है तो शालीनता के अनुसार बाल कटवा लेने चाहिए।

जिन बालकों का यज्ञोपवीत संस्कार होना है, उनकी संख्या के अनुसार मेखला (सूती धागा), कोपीन (4 इंच चौड़ा और 2 फीट लंबा लंगोटी), दण्ड, उपनयन और पीले दुपट्टे की व्यवस्था करनी चाहिए।

यज्ञोपवीत को हल्दी से पीला करना चाहिए।

जो भी उपनयन संस्कार स्वीकार करने वाला हो, उसे नए वस्त्र पहनने चाहिए। पीला दुपट्टा अवश्य पहनना चाहिए।

एक पवित्र पुस्तक को पीले कपड़े में लपेटकर पूजा वेदी पर रखना चाहिए। सरस्वती, गायत्री और सावित्री पूजन के लिए 3 ढेरियाँ रखनी चाहिए।



संस्कार विधि

यज्ञोपवीत संस्कार विधि कई चरणों में की जाती है, जिसमें शामिल हैं:

मुंडन: संस्कार की शुरुआत मुंडन से होती है, जिसमें बच्चे का सिर मुंडाया जाता है। यह क्रिया प्रतीकात्मक रूप से बच्चे के पिछले जन्म के पापों और अज्ञानता के त्याग का प्रतिनिधित्व करती है।

वस्त्र: मुंडन के बाद, बच्चे को धोती और दुपट्टा पहनाया जाता है।

यज्ञोपवीत दहरण: संस्कार का मुख्य चरण यज्ञोपवीत दहरण है। नौ धागों से बना यह पवित्र धागा बच्चे के बाएं कंधे से लेकर दाहिनी कमर तक पहनाया जाता है। प्रत्येक धागे का अपना विशेष महत्व होता है।

अग्नि प्रज्वलन: बच्चा अग्नि प्रज्वलित करता है और यज्ञ में आहुति देता है। यह क्रिया सत्य, तपस्या और आत्मविश्वास का प्रतीक मानी जाती है।

गायत्री मंत्र दीक्षा: वेदों का सार माने जाने वाले गायत्री मंत्र की दीक्षा गुरु द्वारा बालक को दी जाती है।

भोजन: संस्कार के अंत में उपस्थित सभी लोगों को भोजन कराया जाता है।

सामाजिक एवं शैक्षिक महत्व : यज्ञोपवीत संस्कार केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है। इसका सामाजिक एवं शैक्षिक महत्व भी बहुत महत्वपूर्ण है।

सामाजिक दृष्टिकोण से: यह संस्कार बालक को समाज में द्विज का दर्जा प्रदान करता है तथा उसे वेदों का अध्ययन करने और यज्ञों में भाग लेने का अधिकार देता है।

शैक्षणिक दृष्टिकोण से: यह संस्कार बालक के लिए शिक्षा प्राप्ति का प्रारंभिक बिंदु माना जाता है। गायत्री मंत्र दीक्षा और वेदों के अध्ययन के माध्यम से बालक को ज्ञान, बुद्धि और सदाचार का मार्ग प्रदान किया जाता है।

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