Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि तारकासुर ने अपने भयानक स्वरुप से देवताओं को भी भयभीत कर दिया था। इसके बाद, उन भयभीत देवताओं को यों पिटते हुए देखकर भगवान् अच्युत ( विष्णु ) को क्रोध हो आया और वे शीघ्र ही युद्ध करने के लिये तैयार हो गये। उन भगवान् श्री हरि ने अपने आयुध सुदर्शन चक्र और शाङ्ग्र धनुष को लेकर युद्धस्थल में महादैत्य तारक पर आक्रमण किया। तदनन्तर सबके देखते-देखते श्री हरि और तारकासुर में अत्यन्त भयंकर एवं रोमांचकारी महायुद्ध छिड़ गया। इसी बीच अच्युत ने कुपित होकर महान् सिंहनाद किया और धधकती हुई ज्वालाओं के से प्रकाश वाले अपने चक्र को उठाया।
फिर तो श्री हरि ने उसी चक्र से दैत्यराज तारक पर प्रहार किया। उसकी चोट से अत्यन्त व्यथित होकर वह असुर पृथ्वी पर गिर पड़ा। परंतु वह असुर नायक तारक अत्यन्त बलवान् था। अत: तुरंत ही उठकर उस दैत्यराज ने अपनी शक्ति से चक्र के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। भगवान् विष्णु और तारकासुर दोनों बलवान् थे और दोनों में अगाध बल था, अत: युद्धस्थल में वे परस्पर जूझने लगे। इसके बाद ब्रह्मा जी ने कार्तिकेय से कहा, विष्णु और तारकासुर का यह व्यर्थ युद्ध शोभा नहीं दे रहा है क्योंकि विष्णु के हाथों इस तारक की मृत्यु नहीं होगी। यह मुझसे वरदान पाकर अत्यन्त बलवान् हो गया है। यह मैं बिलकुल सत्य बात कह रहा हूँ। पार्वतीनन्दन ! तुम्हारे अतिरिक्त इस पापी को मारने वाला दूसरा कोई नहीं है, इसलिये महाप्रभो ! तुम्हें मेरे कथनानुसार ही करना चाहिये।
परंतप ! तुम शीघ्र ही उस दैत्य का वध करने के लिये तैयार हो जाओ, क्योंकि तारक का संहार करने के निमित्त ही तुम शंकरसे उत्पन्न हुए हो। यह कथन सुनकर शंकरनन्दन कुमार कार्तिकेय हँस पड़े और प्रसन्नतापूर्वक बोले, ऐसा ही होगा। तब महान् ऐश्वर्यशाली शंकर सुवन कुमार तारकासुर के वध का निश्चय करके विमान से उतर पड़े और पैदल हो गये। जिस समय महाबली शिवपुत्र कुमार अपनी अत्यन्त चमकीली शक्ति को, जो लपटों से दमकती हुई एक बड़ी उल्का-सी जान पड़ती थी, हाथ में लेकर पैदल ही दौड़ रहे थे, उस समय उनकी अद्भुत शोभा हो रही थी। उनके मन में तनिक भी व्याकुलता नहीं थी। वे परम प्रचण्ड और अप्रमेय बलशाली थे।
महा-तेजस्वी एवं महाबली कुमार रोषावेश में आकर गर्जना करने लगे और बहुत बड़ी सेना के साथ युद्ध के लिये डटकर खड़े हो गये। उस समय समस्त देवताओं ने जय- जयकार का शब्द किया और देवर्षियों ने इष्ट वाणी द्वारा उनकी स्तुति की। तब तारक और कुमार का संग्राम प्रारम्भ हुआ, जो अत्यन्त दु:स्सह, महान् भयंकर और सम्पूर्ण प्राणियों को भयभीत करनेवाला था। कुमार और तारक दोनों ही शक्ति-युद्धमें परम प्रवीण थे, अत: अत्यन्त रोषावेश में वे परस्पर एक-दूसरे पर प्रहार करने लगे।
परम पराक्रमी वे दोनों नाना प्रकार के पैंतरे बदलते हुए गर्जना कर रहे थे और अनेक प्रकार से दाव-पेंच से एक-दूसरे पर आघात कर रहे थे। उस समय देवता, गन्धर्व और किन्नर-सभी चुपचाप खड़े होकर वह दृश्य देखते रहे। उन्हें परम विस्मय हुआ। यहाँ तक कि वायु का चलना बंद हो गया, सूर्य की प्रभा फीकी पड़ गयी और पर्वत एवं वन-काननों सहित सारी पृथ्वी काँप उठी।