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Shiv Purana Part 179: श्री कृष्ण राधिका और अपने गोपों के साथ शंकर की सभा में क्यों आये थे?

jeevanjali Published by: निधि Updated Wed, 20 Mar 2024 04:29 PM IST
सार

Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि शंखचूड़ ने देवताओं को उनके अधिकार से विहीन कर दिया जिसके बाद विष्णु, ब्रह्म जी और देवताओ सहित शिव जी के पास जाते है।

शिव पुराण:
शिव पुराण:- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि शंखचूड़ ने देवताओं को उनके अधिकार से विहीन कर दिया जिसके बाद विष्णु, ब्रह्म जी और देवताओ सहित शिव जी के पास जाते है। उन्होंने सबसे पहले शंकर जी के महावीर द्वारपालों को देखा जो कि भस्म और रुद्राक्ष से सुशोभित थे और उन्होंने त्रिशूल धारण किया हुआ था। ब्रह्मा जी ने उन्हें निवेदन किया और शंकर जी से मिलने का कारण बतलाया। इसके बाद, उन्होंने क्रमश: 15 द्वारों को पार किया और उसके बाद एक विशाल द्वार में प्रवेश किया। उन्होंने वहां नंदी को देखा और उन्हें भलीभांति नमस्कार करके भीतर प्रवेश करने की अनुमति ली। वहां पहुंचकर उन लोगों से शिव जी की उच्च महासभा देखी।

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विष्णु जी ने उस सभा में अंबा पार्वती सहित शंकर जी को देखा। इसके बाद ब्रह्मा और विष्णु ने शंकर जी से देवताओं की व्यथा कही और शंखचूड़ का पूरा वृंतात शंकर जी को बताया। देवताओं ने भी शंकर जी से निवेदन किया कि वो उन्हें उनका अधिकार वापिस लेने में सहायता करें। शिव ने उन्हें कहा कि दानव शंखचूड़ पहले सुदामा नामक गोप था। गोलोक की गौशाला मेरे द्वारा ही अधिष्ठित है और मेरी आज्ञा से ही विष्णु कृष्ण का रूप धारण करके वहां निवास करते हैं। एक बार मैंने ही कृष्ण को अपनी माया से मोहित कर 'मैं स्वतंत्र हूं' इस भावना का बोध करवाया और मैंने ही सुदामा नाम के गोप को श्राप दिलवा दिया।

इस प्रकार अपनी लीला करके मैंने अपनी माया हटा ली थी। अब वही सुदामा राधा के श्राप से दानव बना है इसलिए आप अपने भय का त्याग करिए। जब शंकर जी इस प्रकार के वचन कह रहे थे ठीक उसी समय कृष्ण, राधिका और बाकी गोपों के साथ उस सभा में आए और उन्होंने शिव की स्तुति की। इसके बाद शंकर जी ने ब्रह्मा और विष्णु को कैलास पर्वत पर जाने की बात कही और बताया कि उनका ही एक रूप जो 'रूद्र' के नाम से प्रसिद्द है वो वहां निवास करता है। मेरा वह रुद्ररूप देवताओं की सहायता करने के लिए ही है।

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मुझमे और रूद्र में कोई भेद नहीं है। शंकर जी के इस प्रकार के वचन सुनकर ब्रह्मा और विष्णु देवताओं के साथ कैलास पर्वत पर गए। वहां उन्होंने शंकर जी के सगुण रूप रूद्र को देखा और उनकी स्तुति की। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न हुए शिव ने उन्हें आश्वासन दिया कि वो दानव शंखचूड़ का वध करेंगे। उनकी ऐसी वाणी सुनकर देवता बेहद प्रसन्न हुए और अपने अपने स्थान को चले गए।

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