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Shiv Purana Part 178: शंखचूड़ ने अपने पराक्रम से देवताओं को कर दिया अधिकार विहीन, जानिए आगे क्या हुआ

jeevanjali Published by: निधि Updated Tue, 19 Mar 2024 05:49 PM IST
सार

Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि ब्रह्मा जी के आदेश से तुलसी और शंखचूड़ का विवाह हुआ। जब वो पत्नी के साथ अपने नगर को गया तो उसे देखकर सभी दानव और असुर बेहद प्रसन्न हुए।

शिव पुराण
शिव पुराण- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि ब्रह्मा जी के आदेश से तुलसी और शंखचूड़ का विवाह हुआ। जब वो पत्नी के साथ अपने नगर को गया तो उसे देखकर सभी दानव और असुर बेहद प्रसन्न हुए। सारे असुर एकत्र हुए अपने गुरु शुक्राचार्य को साथ लेकर उसके पास आये। दम्भ के पुत्र शंखचूड़ ने भी भक्ति पूर्वक उनका आदर सत्कार किया। असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने भी उसे अपना आशीर्वाद दिया और सभी की सहमति से उसको राजा बना दिया गया।

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इसके बाद शंखचूड़ दैत्यों, दानवों और असुरों की बड़ी सेना लेकर इंद्र को जीतने के लिए चला। देवराज इंद्र भी सभी देवताओं को साथ लेकर उससे युद्ध करने को तैयार हो गए। उस समय देवता और दानवों में बड़ा रोमांचकारी युद्ध हुआ जिसे देखकर वीरों को आनंद और कायरों को भय हुआ। देवता अति बलवान थे इसलिए असुर उनसे पराजित होकर भागने लगे। यह देखकर शंखचूड़ को बड़ा क्रोध हुआ और उसने सिंह के समान गर्जना की और देवताओं से भिड़ गया।

चूंकि उसके पास श्री कृष्ण का कवच था इसलिए कोई भी देवता उसके सामने नहीं टिक पाया। उससे डरकर देवताओं ने पर्वत की कंदराओं में शरण ली और कुछ उसके आधीन हो गए। उसने देवताओं का अधिकार छीन लिया और यज्ञ भाग का भी स्वामी बना। इस प्रकार राजाओं के भी राजा उस शंखचूड़ ने बहुत वर्ष पर्यन्त सभी लोकों पर राज्य किया। कुबेर, चन्द्रमा, सूर्य, अग्नि सब उसके अधिकार में आ गए थे। उसके राज्य में कोई व्याधि नहीं थी और सदा ही खानों से मणि और समुद्र से रत्न निकलते थे। देवताओं को छोड़कर उसके राज्य में सभी सुखी थे।

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चारों वर्ण और आश्रम के लोग अपने अपने धर्म में स्थित और सुखी थे। शंखचूड़ ने भले ही दानव कुल में जन्म लिया था लेकिन पूर्व जन्म में श्री कृष्ण का भक्त होने के कारण वो भक्ति में लीन रहता था। कई वर्ष बीत जाने पर देवता ब्रह्मा जी के पास गए। इसके बाद ब्रह्मा जी उन देवताओं को साथ लेकर बैकुंठ लोक में गए और भगवान् विष्णु की आराधना करने लगे। ब्रह्मा जी ने श्री विष्णु को देवताओं की पीड़ा के बारे में बताया।

विष्णु जी ने कहा कि मैं उसके सभी पूर्व जन्म के कर्म जानता हूं। वो गोलोक का निवासी राधा के श्राप के कारण दानव शरीर में जन्मा है और उसका वध शिव के त्रिशूल से होना तय है। ऐसा कहकर विष्णु जी ब्रह्मा और देवताओं को साथ लेकर शिव लोक को गए।

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