शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि शिव जी के विवाह से समस्त शिव गणों को बहुत संतोष प्राप्त हुआ। इसके बाद ब्रह्मा जी ने नारद जी को कुमार के गंगा से उत्पन्न होने तथा कृत्तिका आदि छः स्त्रियों के द्वारा उनके पाले जाने, उन छहों की संतुष्टि के लिये उनके छः मुख धारण करने और कृत्तिकाओं के द्वारा पाले जाने के कारण उनका ’कार्तिकेय’ नाम होने की बात कही। तदनन्तर उनके शंकर-गिरिजा की सेवा में लाये जाने की कथा सुनायी। पार्वती के हृदय में प्रेम समाता नहीं था, उन्होंने हर्षपूर्वक मुसकराकर कुमार को परमोत्तम ऐश्वर्य प्रदान किया, साथ ही चिरंजीवी भी बना दिया।
लक्ष्मी ने दिव्य सम्पत् तथा एक विशाल एवं मनोहर हार अर्पित किया। सावित्री ने प्रसन्न होकर सारी सिद्ध विद्याएँ प्रदान कीं। इसी बीच देवताओं ने भगवान् शंकर से कहा-प्रभो ! यह तारकासुर कुमार के हाथों ही मारा जाने वाला है, इसीलिये ही यह उत्तम चरित घटित हुआ है। अतः हम लोगों के सुखार्थ उसका काम तमाम करने के हेतु कुमार को आज्ञा दीजिये। हम लोग आज ही अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर तारक को मारने के लिये रण-यात्रा करेंगे। यह सुनकर भगवान् शंकर का हृदय दयार्द्र हो गया। उन्होंने उनकी प्रार्थना स्वीकार करके उसी समय तारक का वध करनेके लिये अपने पुत्र कुमार को देवताओं को सौंप दिया। फिर तो शिवजी की आज्ञा मिल जाने पर ब्रह्मा, विष्णु आदि सभी देवता एकत्र होकर गुह को आगे करके तुरंत ही उस पर्वत से चल दिये।
उस समय श्रीहरि आदि देवताओं के मन में पूर्ण विश्वास था कि ये अवश्य तारक का वध कर डालेंगे। वे भगवान् शंकर के तेज से भावित हो कुमार के सेनापतित्व में तारक का संहार करनेके लिये रणक्षेत्र में आये। उधर महाबली तारक ने जब देवताओं के इस युद्धोद्योग को सुना, तब वह भी एक विशाल सेना के साथ देवों से युद्ध करने के लिये तत्काल ही चल पड़ा। उसकी उस विशाल वाहिनी को आती देख देवताओं को परम विस्मय हुआ। फिर तो वे बलपूर्वक बारंबार सिंहनाद करने लगे। उसी समय तुरंत ही भगवान् शंकर की प्रेरणा से विष्णु आदि सम्पूर्ण देवताओं के प्रति आकाशवाणी हुई। आकाशवाणी ने कहा- देवगण ! तुम लोग जो कुमार के अधिनायकत्व में युद्ध करने के लिये उद्यत हुए हो, इससे तुम संग्राम में दैत्यों को जीतकर विजयी होओगे।
उस आकाश-वाणी को सुनकर सभी देवताओं का उत्साह बढ़ गया। उनका भय जाता रहा और वे वीरोचित गर्जना करने लगे। उनकी युद्ध कामना बलवती हो उठी और वे सब-के-सब कुमार को अग्रणी बनाकर बड़ी उतावली के साथ महीसागर-संगम को गये। उधर बहुसंख्यक असुरों से घिरा हुआ वह तारक भी बहुत बड़ी सेना के साथ शीघ्र ही वहाँ आ धमका, जहाँ वे सभी देवता खड़े थे। उस असुर के आगमन-काल में प्रलयकालीन मेघों के समान गर्जना करने वाली रणभेरियाँ तथा अन्यान्य कर्कश शब्द करने वाले रणवाद्य बज रहे थे। उस समय तारकासुर के साथ आने वाले दैत्य ताल ठोंकते हुए गर्जना कर रहे थे। उनके पदाघात से पृथ्वी काँप उठती थी। उस अत्यन्त भयंकर कोलाहल को सुनकर भी सभी देवता निर्भय ही बने रहे।