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Shiv Purana Part 136: मूल प्रकृतिरूपा देवी ईश्वरी का निर्माण किसने किया? पढ़ें

jeevanjali Published by: निधि Updated Mon, 12 Feb 2024 06:21 PM IST
सार

शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि सभी देवताओं के समझाने के बाद भी पार्वती की मां मेना ने अपनी बेटी का विवाह शिव से करने से मना कर दिया। इसके बाद स्वयं माता पार्वती अपनी माता मेना से बोली, तुम्हारी बुद्धि तो बड़ी शुभकारक है।

शिव पुराण
शिव पुराण- फोटो : jeevanjali

विस्तार

शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि सभी देवताओं के समझाने के बाद भी पार्वती की मां मेना ने अपनी बेटी का विवाह शिव से करने से मना कर दिया। इसके बाद स्वयं माता पार्वती अपनी माता मेना से बोली, तुम्हारी बुद्धि तो बड़ी शुभकारक है। इस समय विपरीत कैसे हो गयी? धर्म का अवलम्बन करने वाली होकर भी तुम धर्म को कैसे छोड़ रही हो? ये रुद्रदेव सबकी उत्पत्ति के कारण-भूत साक्षात् ईश्वर हैं, इनसे बढ़कर दूसरा कोई नहीं है। समस्त श्रुतियों में यह वर्णन है कि भगवान् शम्भु सुन्दर रूप वाले तथा सुखद हैं। कल्याणकारी महेश्वर समस्त देवताओं के स्वामी तथा स्वयं प्रकाश हैं। इनके नाम और रूप अनेक हैं। श्री विष्णु और ब्रह्मा आदि भी इनकी सेवा करते हैं। ये सबके अधिष्ठान हैं, कर्ता, हर्ता और स्वामी हैं। विकारों की इन तक पहुँच नहीं है।

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ये तीनों देवताओं के स्वामी, अविनाशी एवं सनातन हैं। इनके लिये ही सब देवता किंकर होकर तुम्हारे द्वार पर पधारे हैं और उत्सव मना रहे हैं। इससे बढ़कर सुख की बात और क्या हो सकती है। अत: यत्नपूर्वक उठो और जीवन सफल करो। मुझे शिव के हाथ में सौंप दो और अपने गृहस्थाश्रम को सार्थक करो। माँ ! मुझे परमेश्वर शंकर की सेवा में दे दो। मैं स्वयं तुमसे यह बात कहती हूँ। तुम मेरी इतनी-सी ही विनती मान लो। यदि तुम इनके हाथ में मुझे नहीं दोगी तो मैं दूसरे किसी वर का वरण नहीं करूँगी; क्योंकि जो सिंह का भाग है, उसे दूसरों को ठगने वाला सियार कैसे पा सकता है? मैंने मन,वाणी और क्रिया द्वारा स्वयं हर का वरण किया है, हर का ही वरण किया है। अब तुम्हारी जैसी इच्छा हो, वह करो।

इसी बीच में उनके सुदृढ़ एवं महान् हठ की बात सुनकर शिव प्रिय भगवान् विष्णु भी तुरंत वहाँ आ पहुँचे और इस प्रकार बोले। श्री विष्णु ने कहा-देवि ! तुम पितरों की मानसी पुत्री एवं उन्हें बहुत ही प्यारी हो, साथ ही गिरिराज हिमालय की गुणवती पत्नी हो। इस प्रकार तुम्हारा सम्बन्ध साक्षात् ब्रह्माजी के उत्तम कुल से है। संसार में तुम्हारे सहायक भी ऐसे ही हैं। तुम तो धर्म की आधारभूता हो, फिर धर्म का त्याग कैसे करती हो? सम्पूर्ण देवता, ऋषि, ब्रह्माजी और मैं सभी लोग विपरीत बात ही क्यों कहेंगे? तुम शिव को नहीं जानती। वे निर्गुण भी हैं और सगुण भी हैं। कुरूप भी हैं और सुरूप भी। सब के सेव्य तथा सत्पुरुषों के आश्रय हैं। उन्हीं ने मूल प्रकृतिरूपा देवी ईश्वरी का निर्माण किया और उसके बगल में पुरुषोत्तम का निर्माण करके बिठाया।

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उन्हीं दोनों से सगुण-रूप में मेरी तथा ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई। फिर लोकों का हित करने के लिये वे स्वयं भी रुद्र-रूप से प्रकट हुए। तदनन्तर वेद, देवता तथा स्थावर-जंगम रूप से जो कुछ दिखायी देता है, वह सारा जगत् भी भगवान् शंकर से ही उत्पन्न हुआ। उनके रूप का ठीक-ठीक वर्णन अब तक कौन कर सका है? अथवा कौन उनके रूप को जानता है? मैंने और ब्रह्माजी ने भी जिनका अन्त नहीं पाया, उनका पार दूसरा कौन पा सकता है? ब्रह्मा से लेकर कीट पर्यन्त जो कुछ जगत् दिखायी देता है, वह सब शिव का ही रूप है- ऐसा जानो। तुम दुःख छोड़ो और शिव का भजन करो। इससे तुम्हें महान् आनन्द प्राप्त होगा और तुम्हारा सारा क्लेश मिट जायगा।

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