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Valmiki Ramayana Part 149: गंगा के तट पर पहुंचे भरत! निषादराज गुह ने भरत को शत्रु क्यों समझा?

जीवांजलि धरम डेस्क Published by: निधि Updated Mon, 10 Jun 2024 02:19 PM IST
सार

Valmiki Ramayana Part 149: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, ऋषि वसिष्ठ ने जब भरत से राजा बनने की बात की तो वो अपने भाई के लिए भावुक होकर रोने लगे और कहा कि राजा बनने का अधिकार केवल श्री राम का ही है और वो कभी भी राजा नहीं बन सकते।

Valmiki Ramayana
Valmiki Ramayana- फोटो : Jeevanjali

विस्तार

Valmiki Ramayana Part 149: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, ऋषि वसिष्ठ ने जब भरत से राजा बनने की बात की तो वो अपने भाई के लिए भावुक होकर रोने लगे और कहा कि राजा बनने का अधिकार केवल श्री राम का ही है और वो कभी भी राजा नहीं बन सकते। इसके बाद, प्रातःकाल उठकर भरत ने उत्तम रथ पर आरूढ़ हो श्री रामचन्द्रजी के दर्शन की इच्छा से शीघ्रतापूर्वक प्रस्थान किया। उनके आगे-आगे सभी मन्त्री और पुरोहित घोड़े जुते हुए रथों पर बैठकर यात्रा कर रहे थे। वे रथ सूर्यदेव के रथ के समान तेजस्वी दिखायी देते थे। 
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उस नगर में जो दूसरे सम्मानित पुरुष थे, वे सब लोग तथा व्यापारी और शुभ विचार वाले प्रजाजन भी बड़े हर्ष के साथ श्रीराम से मिलने के लिये प्रस्थित हुए। सबके वेश सुन्दर थे। सबने शुद्ध वस्त्र धारण कर रखे थे तथा सबके अङ्गों में ताँबे के समान लाल रंग का अङ्गराग लगा था। वे सब-के-सब नाना प्रकार के वाहनों द्वारा धीरे-धीरे भरत का अनुसरण कर रहे थे। इस प्रकार रथ, पालकी, घोड़े और हाथियों के द्वारा बहुत दूर तक का मार्ग तय कर लेने के बाद वे सब लोग शृङ्गवेरपुर में गङ्गाजी के तट पर जा पहुँचे। जहाँ श्रीरामचन्द्रजी का सखा वीर निषादराज गुह सावधानी के साथ उस देश की रक्षा करता हुआ अपने भाई-बन्धुओं के साथ निवास करता था। 
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भरत ने महात्मा श्रीराम से कही ये बात

चक्रवाकों से अलंकृत गङ्गा तट पर पहुँचकर भरत का अनुसरण करने वाली वह सेना ठहर गयी। महानदी गङ्गा के तटपर खेमे आदि से सुशोभित होने वाली उस सेना को व्यवस्थापूर्वक ठहराकर भरत ने महात्मा श्रीराम के लौटने के विषय में विचार करते हुए उस समय वहीं निवास किया। उधर निषादराज गुह ने गङ्गा नदी के तटपर ठहरी हुई भरत की सेना को देखकर सब ओर बैठे हुए अपने भाई-बन्धुओं से कहा कि इस ओर जो यह विशाल सेना ठहरी हुई है समुद्र के समान अपार दिखायी देती है। इसमें स्वयं दुर्बुद्धि भरत भी आया हआ है। यह अपने मन्त्रियों द्वारा पहले हम लोगों को पाशों से बँधवायेगा अथवा हमारा वध कर डालेगा। 

 निषादराज गुह ने भरत से क्या कहा-

तत्पश्चात् जिन्हें पिता ने राज्य से निकाल दिया है, उन दशरथ-नन्दन श्रीराम को भी मार डालेगा। कैकेयी का पुत्र भरत राजा दशरथ की सम्पन्न एवं सुदुर्लभ राजलक्ष्मी को अकेला ही हड़प लेना चाहता है, इसीलिये वह श्रीरामचन्द्रजी को वन में मार डालने के लिये जा रहा है। परंतु दशरथ कुमार श्रीराम मेरे स्वामी और सखा हैं, इसलिये उनके हित की कामना रखकर तुमलोग अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित हो यहाँ गङ्गा के तटपर मौजूद रहो। सभी मल्लाह सेना के साथ नदी की रक्षा करते हुए गङ्गा के तट पर ही खड़े रहें और नाव पर रखे हुए फल-मूल आदि का आहार करके ही आज की रात बितावें। 

यों कहकर निषादराज गुह भरत के पास आया और सुमंत्र जी ने भरत को उसका परिचय दिया। गुह अपने भाई बन्धुओं के साथ वहाँ प्रसन्नतापूर्वक आया और भरत से मिलकर बड़ी नम्रता के साथ भोजन करने और रूकने का निवेदन किया।

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