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Bhagwat Purana: भागवत पुराण से जानिए ईश्वर प्राप्ति के 4 उपाय कौन से हैं?

jeevanjali Published by: निधि Updated Sat, 30 Mar 2024 06:53 PM IST
सार

Bhagwat Purana: मनुष्य को ऐसा क्या करना चाहिए की वो श्री भगवान् को प्राप्त हो सके? इस प्रश्न का उत्तर भागवत पुराण में आता है जो कि स्वयं श्री कृष्ण के स्वरुप के समान माना गया है। इसमें यह बताया गया है कि 1 मनुष्य ईश्वर को कैसे प्राप्त कर सकता है।

Bhagwat Purana: भागवत पुराण
Bhagwat Purana: भागवत पुराण- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Bhagwat Purana: मनुष्य को ऐसा क्या करना चाहिए की वो श्री भगवान् को प्राप्त हो सके? इस प्रश्न का उत्तर भागवत पुराण में आता है जो कि स्वयं श्री कृष्ण के स्वरुप के समान माना गया है। इसमें यह बताया गया है कि 1 मनुष्य ईश्वर को कैसे प्राप्त कर सकता है। दरअसल, चाहिए। जैसे चार वर्ण है, चार आश्रम है ठीक उसी प्रकार से चार सिद्धांत है और वो है श्रवण, कीर्तन, स्मरण और पूजन। लेकिन कलियुग में सिर्फ श्रवण और कीर्तन प्रधान है और उसमें भी लोग गुणगान करते है। अगर कोई कहीं कीर्तन करता है तो वो बड़े बड़े बैनर लगवाता है, पोस्टर लगवाता है। लोग उसी का गुणगान करते है और उस कीर्तन में होने वाले लाभ को चूक जाते है। स्मरण और पूजन सिर्फ लाभ के लिए होता है। कलियुग में अधिकांश धार्मिक कार्य या तो अपनी प्रसिद्धि करवाने के लिये या भौतिक लाभ के लिए संपन्न किये जाते है जिनसे मनुष्य उस सत्य से दूर होता जाता है।

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यही कारण है कि सूत जी इस श्लोक में मनुष्य को निर्देश देते है कि श्री भगवान को पाने के लिए रोज़  श्रवण, कीर्तन, स्मरण और पूजन करना चाहिए। जो व्यक्ति भगवान् की लीलाओं और उनकी कथाओं का स्मरण करता है उसे स्वत: मुक्ति मिल जाती है। कथा भौतिक शक्ति से परे होती है।

रोज़ इनको सुनना और पढ़ना, जब ऐसा क्रम बनता है तो जीव की आत्मा स्वत: आध्यात्मिक हो जाती है। एक समय आने पर वो गुणी और ज्ञानी होकर भौतिक जगत से मुक्त हो जाता है। आध्यात्मिक ज्ञान से मनुष्य संसार और भौतिक जगत की माया से प्रभावित नहीं होता। और इसके बाद जब वो निष्काम भक्ति करने लगता है तो भक्ति से लिप्त उसका कर्म उसे कर्मयोगी बना देता है और वह बड़ी सरलता से अपने जीवन को जीता हुआ ईश्वर को प्राप्त होता है।

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इसलिए पिछले लेख में भी यह लिखा गया है और पुन: लिखा जा रहा है कि मनुष्य को वेद वेदांत और पूर्ववर्ती आचार्यों के द्वारा लिखे गए साहित्य का नित्य श्रवण और पाठन करना चाहिए।
 

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