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Bhagwat Geeta Chapter 8 Verse 21-22: आखिर किस शक्ति के माध्यम से दिव्य लोक का निर्माण करते है ईश्वर?

जीवांजलि धर्म डेस्क Published by: निधि Updated Mon, 10 Jun 2024 02:21 PM IST
सार

Bhagwat Geeta Chapter 8 Verse 21-22: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते है कि असंख्य ब्रह्माण्ड समय समय पर पैदा होते है और नष्ट भी हो जाते है।

Bhagwadgita
Bhagwadgita- फोटो : Jeevanjali

विस्तार

Bhagwat Geeta Chapter 8 Verse 21-22: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते है कि असंख्य ब्रह्माण्ड समय समय पर पैदा होते है और नष्ट भी हो जाते है। उनका सम्बन्ध ब्रह्मा जी से होता है लेकिन श्री भगवान् अपनी योगमाया की शक्ति से इन सबसे मुक्त है। उन पर इन सबका प्रभाव नहीं होता यानी कि वो कभी भी नष्ट नहीं हो सकते है। इसके बाद भगवान् बोले, 
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भगवत गीता अध्याय 8 श्लोक 21 - Bhagwat Geeta Chapter 8 Verse 21 

अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम्। यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम 

अव्यक्त:-अप्रकट; अक्षर:-अविनाशी; इति-इस प्रकार; उक्त:-कहा गया; तम्-उसको; आहुः-कहा जाता है; परमाम्-सर्वोच्च; गतिम्-गन्तव्य; यम्-जिसको; प्राप्य-प्राप्त करके; न-कभी; निवर्तन्ते–वापस आते है; तत्-वह; धाम–लोक; परमम्-सर्वोच्च; मम–मेरा।


अर्थ - यह अव्यक्त आयाम परम गन्तव्य है और इस पर पहुंच कर फिर कोई नश्वर संसार में लौट कर नहीं आता। यह मेरा परम धाम है। 

व्याख्या - श्री कृष्ण कहते है कि उनके कुछ ऐसे लोक है जहां पहुँच कर कोई भी संसार में वापिस नहीं आ सकता है। जैसे कृष्ण लोक, गौ लोक आदि। यहां कृष्ण अर्जुन को यह समझा रहे है कि तुम सिर्फ इस संसार के लोगों और भोग को देखकर ही मोहित हो रहे हो लेकिन तुम्हे अहसास नहीं है कि तुम अगर कर्मयोग को जीवन में धारण कर लोगे तो तुम सदैव के लिए इस जन्म और मरण से मुक्त हो जाओगे। 
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भगवत गीता अध्याय 8 श्लोक 22 - Bhagwat Geeta Chapter 8 Verse 22 

पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया। यस्यान्तःस्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम् 

पुरूषः-परम भगवान; सः-वह; परः-महान, पार्थ-पृथापुत्र, अर्जुन; भक्त्या-भक्ति द्वारा; लभ्यः-प्राप्त किया जा सकता है; तु-वास्तव में; अनन्यया-बिना किसी अन्य के; यस्य-जिसके; अन्तः-स्थानि-भीतर स्थित; भूतानि-सभी जीव; येन-जिनके द्वारा; सर्वम्-समस्त; इदम्-जो कुछ हम देख सकते हैं; ततम्-व्याप्त है।


अर्थ - परमेश्वर का दिव्य व्यक्तित्व सभी सत्ताओं से परे है। यद्यपि वह सर्वव्यापक है और सभी प्राणी उसके भीतर रहते है तथापि उसे केवल भक्ति द्वारा ही जाना जा सकता है।  

व्याख्या - कृष्ण अर्जुन से कहते है कि परमात्मा अपने दिव्य लोक में निवास करते है और उन पर कोई सत्ता प्रभावी नहीं है। हम सब इस बात को जानते है कि वही परमात्मा आत्मा के रूप में हमारे शरीर में विराजमान रहते है। यही कारण है कि सभी प्राणी यानी कि सभी जीवात्मा ईश्वर का अंश कही जाती है। लेकिन साथ ही कृष्ण यह भी कहते है कि उसे सिर्फ भक्ति के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता हैं।

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