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Shiv Ji Damru: भगवान शिव ने कब धारण किया था डमरू ? जानिए रहस्य

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: कोमल Updated Wed, 12 Jun 2024 06:07 AM IST
सार

Shiv Ji Damru: हिंदू धर्म में करोड़ों देवी-देवता माने जाते हैं। लेकिन उनमें से कुछ की पूजा सबसे ज्यादा की जाती है। इन्हीं देवताओं में से एक हैं भगवान शिव। इनके प्रति आस्था रखने वालों की कोई कमी नहीं है। 

भगवान शिव
भगवान शिव- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Shiv Ji Damru: हिंदू धर्म में करोड़ों देवी-देवता माने जाते हैं। लेकिन उनमें से कुछ की पूजा सबसे ज्यादा की जाती है। इन्हीं देवताओं में से एक हैं भगवान शिव। इनके प्रति आस्था रखने वालों की कोई कमी नहीं है। कहा जाता है कि इनके भोले स्वभाव के कारण ही इनका नाम भोलेनाथ पड़ा। भगवान ब्रह्मा जहां धरती के रचयिता हैं, वहीं भगवान विष्णु पालनहार हैं, और शिव संहारक की भूमिका में हैं। पुराणों के अनुसार भगवान शिव अपने शरीर पर अलग-अलग तरह की चीजें धारण करते हैं, जैसे गले में सांप, सिर पर चंद्रमा, जटाओं में गंगा, हाथ में त्रिशूल और डमरू। इन सबके पीछे कोई न कोई रहस्य जरूर छिपा है। यहां हम जानेंगे कि शिव के डमरू धारण करने के पीछे क्या कहानी है।

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डमरू क्या है?

डमरू एक वाद्य यंत्र है। इसे बजाया जाता है। वर्तमान समय में संन्यासी अपने साथ डमरू रखते हैं। इसके अलावा लोग अपने घरों में भी डमरू रखते हैं। भगवान शिव ने जगत के कल्याण के लिए डमरू धारण किया था। डमरू शंकु के आकार का होता है। इसके दोनों विपरीत किनारों पर रस्सी बंधी होती है। इससे मधुर ध्वनि निकलती है, जिसमें चौदह प्रकार की लय होती है। मुख्य रूप से इसकी ध्वनि डुग-डुग के रूप में निकलती है। वास्तु शास्त्र के विशेषज्ञ भी घर में डमरू रखने की सलाह देते हैं।

भगवान शिव ने कब धारण किया था डमरू?

सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि जब त्रिदेवों ने सृष्टि की रचना की थी। उस समय संपूर्ण जगत में सन्नाटा छा गया था। यह देख भगवान शिव अपनी रचना से संतुष्ट नहीं थे। तब ब्रह्मा जी ने भगवान शिव और विष्णु जी से अनुमति लेकर अपने कमंडल से जल अपनी अंजलि में लिया और मंत्रोच्चार कर जल को धरती पर छिड़का। इससे धरती पर ऐसे कंपन होने लगा, मानो भूकंप आ गया हो। उसी स्थान पर स्थित एक वृक्ष से शक्ति स्वरूपा मां शारदा प्रकट हुईं। मां शारदा चतुर्भुजी हैं। मां के एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में पुस्तक और तीसरे हाथ में माला है। वहीं चौथा हाथ वर मुद्रा में है। इससे संपूर्ण जगत का कल्याण होता है। मां शारदा ने त्रिदेवों को नमस्कार कर मधुर ध्वनि की। इससे संपूर्ण जगत में चंचलता फैल गई। उस समय भगवान शिव प्रसन्न हुए। इसके बाद उन्होंने मधुर ध्वनि को लय देने के लिए अपना डमरू बजाया। इससे धुन और संगीत में लय आ गई। कहा जाता है कि ब्रह्मांड में लय स्थापित करने के लिए भगवान शिव डमरू के साथ अवतरित हुए थे। सरल शब्दों में कहें तो देवों के देव महादेव डमरू के साथ अवतरित हुए थे।
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डमरू बजाने के फायदे

वास्तु शास्त्रों के अनुसार घर में डमरू रखने से सुख-सौभाग्य बढ़ता है। साथ ही घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। पूजा के दौरान डमरू बजाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान शिव की कृपा पाने के लिए रोजाना पूजा के दौरान डमरू बजाना चाहिए। एक लय में डमरू बजाने और उसकी ध्वनि सुनने से व्यक्ति को मानसिक विकारों से मुक्ति मिलती है।

खुशी का प्रतीक

सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि देवों के देव महादेव प्रसन्न होने पर डमरू बजाकर नृत्य करते हैं। यह अत्यंत आनंददायक होता है। हालांकि तेज और तीव्र गति से डमरू बजाने से प्रलय भी आ सकता है। जब महादेव क्रोधित होते हैं तो वे तेज और तीव्र गति से डमरू बजाते हैं। यह मानव जगत के लिए अच्छा नहीं है। कहा जाता है कि ध्वनि की उत्पत्ति डमरू से हुई है। भगवान शिव डमरू की मदद से कालचक्र यानी समय को एक लय में संतुलित करते हैं।
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