विज्ञापन
Home  dharm  saint stories  there was nothing greater than the name of god for saint namdev no connection with god

Namdev: भगवान के नाम से बढ़कर कुछ नहीं था संत नामदेव के लिए, भगवत विमुख से कोई रिश्ता नहीं

jeevanjali Published by: निधि Updated Sun, 10 Sep 2023 06:16 PM IST
सार

मेरे भाग्य में ज्ञान-वैराग्य कहां? मुझे तो विठोबा की कृपा का ही सहारा है। मेरे लिए तो नाम संकीर्तन ही सबसे प्रिय है। यह वचन भगवान के परम भक्त नामदेव जी ने संत श्रीज्ञानेश्वरजी से तीर्थयात्रा के बीच उनके सतसंग के बीच में कहे थे।

संत नामदेव
संत नामदेव- फोटो : jeevanjali

विस्तार

मेरे भाग्य में ज्ञान-वैराग्य कहां? मुझे तो विठोबा की कृपा का ही सहारा है। मेरे लिए तो नाम संकीर्तन ही सबसे प्रिय है। यह वचन भगवान के परम भक्त नामदेव जी ने संत श्रीज्ञानेश्वरजी से तीर्थयात्रा के बीच उनके सतसंग के बीच में कहे थे।

विज्ञापन
विज्ञापन

संत नामदेव का भगवान के नाम में इतना प्रेम था की उन्होंने सद नामजाप को ही सर्वोपरि मानते हुए इसका भजन किया। भगवान विट्ठल में इनकी अडिग आस्था थी और इन्होंने पूरा जीवन भगवान की कृपा की अनुभूति करते हुए व्यतीत किया। नामदेव जी को संसार की हर वस्तु में केवल विठोबा के ही दर्शन होते थे।

संत नामदेव की जीवन परिचय

संत नामदेव जी का जन्म वर्ष 1270 में महाराष्ट्र के सतारा जिला के नरसी बामनी गांव में कार्तिक शुक्ल एकादशी को हुआ था। इनके पिता का नाम दामाशेटी और माता का नाम गोणाई देवी था। इनके पूरे परिवार ही भगवान विट्ठल में अटूट आस्था थी जिससे इन्हें भक्ति विरासत में मिली। संत नामदेव जी को महाराष्ट्र में वो ही स्थान प्राप्त है जो उत्तर भारत में सूरदास और कबीर जी का है। यह कबीर से 130 वर्ष पूर्व संसार में आये थे।

विज्ञापन

संत नामदेव को गुरु के रूप में विसोबा खेचर जी मिले। ये महाराष्ट्र के पहुंचे हुए थे। इस गुरु-शिष्य की जोड़ी ने भक्ति का बड़ा प्रचार किया। इनके संपर्क में आते ही मनुष्य संसारिक कलेशों से मुक्त होकर भगवान के परम धाम की राह पर चलने लगता। विसोबा खेचर जी ने ब्रह्मविद्या को आसान बनाकर राज्य प्रचार किया तो उनके शिष्य नामदेव जी ने महाराष्ट्र से लेकर उत्तर भारत में हरिनाम की वर्षा की।

नामदेव जी को भगवान का दर्शन

पौराणिक कथाओं के अनुसार बाल्यकाल से ही भक्ति में लगे नामदेव जी को पांच वर्ष की आयु में भगवान के दर्शन हुए थे। एक दिन उनके पिता बाहर गये हुए थे तो माता ने कहा कि जाओ भगवान विठोबा को दूध का भोग लगा आओ। नामदेव जी मंदिर में गए और भगवान के समक्ष दूध रखकर कहा कि लो इसे पी लो। मंदिर में मौजूद लोग बालक को नादान समझकर हंसने लगे और कहा कि भला मूर्ति कैसे दूध पियेगी। सब वहां से चले गए लेकिन नामदेव टस से मस न हुए और रोने लगे। रोते हुए उन्होंने कहा कि दूध पी लो नहीं तो यहीं रो रोकर प्राण दे दूंगा। भगवान का दिल पिघल गया और एक व्यक्ति के रूप में प्रकट हुए। भगवान ने खुद दूध पीकर नामदेव को भी पितला। इस दिन से नामदेव जी को विट्ठल नाम की धुन लग गयी और वे दिन रात विट्ठल-विट्ठल रटने लगे।

नामदेव जी का विट्ठल नाम के प्रति इतना दृढ़ विश्वास था कि एक बार उन्होंने कहा 'जे न भजति नारायणा। तिनका मैं न करौं दरसणा।।' इसका अर्थ है कि जो नारायण का भजन नहीं करते, मैं उनको देखना भी नहीं चाहता।

नामदेव जी को हर चीज में भगवान ही दिखते हैं। एकबार एक कुत्ता रोटी लेकर भाग गया तो ये उसके पीछे घी की कटोरी लेकर दौड़ पड़े की प्रभु रोटी सूखी है उसपर घी लगा लीजिए। ऐसा था नामदेव जी का भगवान के प्रति प्रेम।

भगवान के नाम की महिमा

नाम की महिमा का वर्णन करते हुए संत नामदेव कहते हैं सोने के पर्वत, हाथी और घोड़े का दान तथा करोड़ों गायों का दान भी नाम के समान नहीं है। ऐसा नाम अपनी जीभ पर रखो जिससे जन्म और मृत्यु न हो। एकाग्र मन से नाम संकीर्तन करना चाहिए क्योंकि इस भावसागर रूपी संसार को पार करने के लिए भगवान का नाम ही जहाज है।

संसार में नामदेव जी की पहचान संत शिरोमणी के रूप में की गयी। संत ज्ञानेश्वर के साथ इनका घनिष्ट संबंध था। संत नामदेव और संत ज्ञानेश्वर ने एक पूरे महाराष्ट्र का भ्रमण किया, भक्ति गीत रचे और जनता को समता तथा प्रभु-भक्ति का पाठ पढ़ाया। संत ज्ञानेश्वर के परलोकगमन के बाद नामदेव जी ने पूरे भारत का भ्रमण किया इन्होंने दो बार तीर्थ यात्रा की और साधु संतों के भ्रम को दूर करते रहे।

जैसे जैसे नामदेव जी की उम्र बढ़ती गयी वैसे-वैसे यश और कीर्ति फैलती गयी। इन्होंने दक्षिण में भक्ति का बहुत प्रचार किया। 80 साल धरती के रहने के बाद संत नामदेव ने अपना पंचभौतिक शरीर त्याग दिय जिसे भक्ति की बड़ी हानि माना गया।

नामदेव जी ने जिस वाणी का उच्चारण किया वह गुरुग्रंथ साहिब में भी मिलती है। इनकी बहुत सारी वाणी दक्षिण और महाराष्ट्र में गायी जाती है। संत नामदेव के पद और वाणी पढ़ने से मन को शांति मिलती है और भक्ति की तरफ मन लगता है।

विज्ञापन