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Kabirdas: कबीरदास ने संसार को सिखाया की प्रभु को पाने के लिए नहीं है कोई मर्यादा, पढ़ें कहानी

jeevanjali Published by: निधि Updated Sun, 10 Sep 2023 06:39 PM IST
सार

कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर- ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर। देश के संत समाज में कबीर का स्थान बहुत ऊंचा है।

कबीरदास ने सिखाया प्रेम भाव
कबीरदास ने सिखाया प्रेम भाव- फोटो : jeevanjali

विस्तार

कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर- ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर। देश के संत समाज में कबीर का स्थान बहुत ऊंचा है। कबीर जी ने भगवान से जुड़ी जटिल बातों को सरल भाषा में दोहे के रूप में रचकर संसार को समझाया।

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कबीर जी सदा भगवान के प्रेमी रहे जिन्हें लोक-लाज की कोई परवाह नहीं थी। अपने समय में इन्होंने निर्भिक होकर अध्यात्म का प्रचार किया। कबीर जी के स्पष्ट रवैया के कारण धूर्त मनुष्य इन्हें ज्यादा पसंद नहीं करते थे लेकिन यह भगवान के सच्चे भक्त हुए जिन्होंने भगवान के लिए न जाने कितनी ही रचना की।

कबीरदास जी के जन्म से जुड़े कथन

कबीर दास जी के जन्म को लेकर अनेक कथन सामने हैं। कुछ लोगों का मानना है कि जगद्गुरु रामानन्द स्वामी के आशीर्वाद से इनका जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ। लोक-लाज के भय से उसने बालक को लहरतारा तालाब के पास छोड़ दिया। नीरू नाम का जुलाहा उस बालक को अपने घर उठा लाया और पाल- पोषकर बड़ा किया। यही बालक आगे चलकर कबीर के नाम से विख्यात हुआ। कबीरपन्थ की माने तो कबीर जी का आविर्भाव काशी के लहरतारा नामक तालाब में एक कमल पुष्प के ऊपर बालकरूप में हुआ। कबीर जी के जन्म को लेकर कितने भी कथन हो लेकिन इनका पालन-पोषण नीरू और नीमा नाम की जुलाहा दम्पति ने किया।

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कबीर जी की अनोखी दीक्षा

कबीरदासजी ने स्वामी रामानन्दजी को अपना गुरु माना। इनकी दीक्षा को लेकर एक कथा प्रसिद्ध है कि एक दिन रात के अंतिम पहर में कबीर पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर जाकर लेट गये। स्नान के लिए जा रहे श्री रामानन्द जी का पैर कबीर जी के ऊपर पड़ गया। पैर रखने के बाद श्रीरामानन्दजी के मुख से तुरंत राम राम शब्द का उच्चारण हुआ। कबीरदासजी ने राम-राम को ही दीक्षामंत्र मान लिया और श्री रामानन्दजी को गुरु के रूप में देखने लगे।

संत कबीर की पत्नी का नाम लोई था। इनके पुत्र का नाम कमाल और पुत्री का नाम कमाली था। कबीर जी कपड़ा बुनकर अपने परिवार का पालन-पोषण किया करते थे। इनके घर में साधु-संतों की भीड़ लगी रहती थी जिससे इनके परिवार को कभी-कभी उपवास करना पड़ जाता था। कबीर जी ने कभी अपने जीवन में साधु सेवा में कोई कमी नहीं आने दी।

कबीर की वाणी

कबीरदासजी पढ़े-लिखे नहीं थे इसलिये ये जो भी कहते थे इनके शिष्य उसे जमा कर लिया करते थे। इनकी वाणियों का संग्रह बीजक नाम से मशहूर हुआ जिसके साखी, सबद और रमैनी तीन भाग हैं। कबीर जी ने अपनी वाणियों में वेदान्त के गहरे तत्वों का सरल भाषा मे उपदेश दिया। इन्होंने समाज में मौजूद अंधविश्वास, पाखण्डवाद और मिथ्याचार का खण्डन किया है।

कबीरदासजी ने परमेश्वर को दोस्त और माता-पिता जैसे अनेक रूपों में देखा। कबीर जी की वाणियों में भगवान के साथ इनका मधुर संबंध दिखता है जिसकी इन्होंने बहुत सुंदरता से व्याख्या की है। अपनी सरलता, साधु-स्वभाव और संत जीवन के कारण संत कबीर आज भी पूज्य हैं। जीवन के अंतिम समय में इनपर यश और कीर्ति की वर्षा होने लगी जो इन्हें भा नहीं रही थी। इससे तंग आकर ये काशी छोड़कर मगहर में चले आये। कबीर जी ने 119 वर्ष की आयु में अपना शरीर त्याग दिया।

कबीरदास जी के अंतिम संस्कार के वक्त उनका मृत शरीर अदृश्य हो गया और उस स्थान पर कुछ फूल रह गये। कहते हैं स्वयं भगवान कबीर जी को लेकर धरती पर आये थे। इनकी गणना भगवान के निजजनों में होती है जिन्होंने भ्रांतियों को तोड़ते हुए भगवान से कैसे प्रेम किया जाए यह संसार को सीखाया। संसार ने कबीर से जाना की भगवान के सामने औपरिकता नहीं प्रेम-भाव काम आता है।

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