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Swastik Ka Mahatva: किसी भी शुभ कार्य से पहले क्यों बनाया जाता है स्वस्तिक, जानिए इसके पीछे की वजह और लाभ

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: निधि Updated Sun, 12 May 2024 04:34 PM IST
सार

Swastik Sign: प्राचीन काल से ही स्वस्तिक को बहुत ही शुभ प्रतीक माना गया है। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले स्वास्तिक चिन्ह जरूर बनाया जाता है।

Swastik Ka Mahatva: किसी भी शुभ कार्य से पहले क्यों बनाया जाता है स्वस्तिक
Swastik Ka Mahatva: किसी भी शुभ कार्य से पहले क्यों बनाया जाता है स्वस्तिक- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Swastik Sign: प्राचीन काल से ही स्वस्तिक को बहुत ही शुभ प्रतीक माना गया है। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले स्वास्तिक चिन्ह जरूर बनाया जाता है। स्वस्तिक शब्द सु+अस+अक शब्दों से मिलकर बना है। 'सु' का अर्थ है अच्छा या शुभ, 'अस' का अर्थ है 'शक्ति' या 'अस्तित्व' और 'क' का अर्थ है 'कर्ता' या कर्ता। इस प्रकार स्वस्तिक शब्द का अर्थ शुभ माना गया है। स्वस्तिक को भगवान गणेश का प्रतीक भी माना जाता है। गणेश जी शुभता के देवता हैं और प्रथम पूजनीय हैं इसलिए हर कार्य से पहले स्वस्तिक चिन्ह बनाना बहुत शुभ होता है। खासतौर पर माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा में स्वास्तिक चिन्ह जरूर बनाया जाता है। आइए जानते हैं स्वास्तिक चिन्ह बनाने का महत्व और इसे बनाने के फायदे।
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ये होता है शुभ स्वास्तिक
सामान्यतः स्वस्तिक दो रेखाओं से बनता है जो एक दूसरे को काटती हैं। जो आगे बढ़ती है और मुड़कर उसकी चार भुजाएं बन जाती है। जिस स्वस्तिक में रेखाएं आगे की ओर मुड़कर दाहिनी ओर मुड़ती हों, वह शुभ माना जाता है। यह स्वास्तिक जीवन में शुभता और उन्नति का प्रतीक है। स्वस्तिक बनाते समय बहुत सावधानी रखनी चाहिए, बाईं ओर जाने वाली रेखाएं शुभ नहीं होती हैं।

स्वास्तिक की चार रेखाओं का अर्थ
ऋग्वेद में स्वास्तिक को सूर्य माना गया है और उसकी चारों भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। इसके अलावा स्वास्तिक के मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में भी निरूपित किया जाता है। अन्य ग्रंथो में स्वास्तिक को चार युग, चार आश्रम (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) का प्रतीक भी माना गया है। यह मांगलिक विलक्षण चिन्ह अनादि काल से ही संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है। भारतीय संस्कृति में स्वास्तिक को में प्राचीन समय से ही मंगल प्रतीक माना गया है इसलिए कुंडली बनानी हो, वही खाता का पूजन करना हो या फिर कोई भी शुभ अनुष्ठान स्वास्तिक अवश्य बनाया जाता है।
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स्वास्तिक का रंग
ज्यादातर स्वस्तिक रोली या लाल कुमकुम से बनाए जाते हैं, क्योंकि हिंदू धर्म में लाल रंग को शुभ माना जाता है। इसके अलावा सिन्दूर से स्वास्तिक चिन्ह भी बनाया जाता है। आजकल लोग बाजार से बना-बनाया स्वास्तिक चिह्न खरीदकर लगाते हैं, लेकिन यह सही नहीं है, स्वास्तिक हमेशा स्वयं ही अंकित करना चाहिए।

स्वास्तिक करता है वास्तु दोष दूर
वास्तु में स्वस्तिक चिन्ह को भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यदि किसी के मुख्य द्वार में किसी प्रकार का दोष हो तो उसके द्वार पर स्वास्तिक चिन्ह बनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे वास्तु दोषों का प्रभाव कम होता है और आपके घर में सुख-समृद्धि और शुभता बनी रहती है।

व्यापर में लाभ के लिए स्वास्तिक
यदि किसी को व्यापार में लगातार हानि का सामना करना पड़ रहा है व्यापार स्थल के ईशान कोण में लगातार 7 गुरुवार तक सूखी हल्दी से स्वास्तिक का चिन्ह बनाना चाहिए। इससे आपके व्यापार की समस्याएं धीरे-धीरे दूर होने लगती हैं और कार्यक्षेत्र में फायदा होता है।

सफलता प्राप्ति के लिए स्वास्तिक
कार्यों में सफलता प्राप्ति को लिए घर की उत्तरी दिशा में सूखी हल्दी से स्वास्तिक का चिन्ह बनाना शुभ रहता है। माना जाता है कि इससे कार्यों में आने वाली अड़चने दूर होने लगती हैं और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।

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