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Rudrashtakam Stotram: रुद्राष्टकम स्तुति है अत्यंत फलदायी, इस खास दिन करें इसका पाठ

jeevanjali Published by: कोमल Updated Mon, 06 May 2024 06:00 PM IST
सार

Rudrashtakam Stotram: भगवान शिव का सभी देवताओं में सर्वोच्च स्थान है। इसीलिए उन्हें देवों के देव महादेव कहा जाता है। भगवान शिव का स्वरूप अत्यंत सरल माना गया है। वह आसानी से प्रसन्न होने वाले देवता हैं।

शिव रुद्राष्टकम
शिव रुद्राष्टकम- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Rudrashtakam Stotram: भगवान शिव का सभी देवताओं में सर्वोच्च स्थान है। इसीलिए उन्हें देवों के देव महादेव कहा जाता है। भगवान शिव का स्वरूप अत्यंत सरल माना गया है। वह आसानी से प्रसन्न होने वाले देवता हैं। यदि कोई भक्त उन्हें श्रद्धापूर्वक एक लोटा जल भी अर्पित कर दे तो भी वे प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव शंकर की पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में कभी भी सुखों की कमी महसूस नहीं होती है। अगर आप भगवान शिव की विशेष कृपा पाना चाहते हैं तो 'श्री शिव रुद्राष्टकम्' का पाठ अवश्य करें। 'शिव रुद्राष्टकम्' अपने आप में एक अद्भुत स्तुति है। इसका पाठ करने से जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। यहां श्री शिव रुद्राष्टकम स्तुति, इसका हिंदी अर्थ और महत्व दिया जा रहा है, जिसकी मदद से आप इसका पाठ कर सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार, यदि शत्रु से परेशान हैं तो किसी शिव मंदिर या घर में ही कुशा के आसन पर बैठकर लगातार 7 दिनों तक सुबह शाम 'रुद्राष्टकम' स्तुति का पाठ करें। 

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॥ श्रीरुद्राष्टकम् ॥

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् 
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥ २॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं
मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥ ३॥

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ ४॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ ५॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६॥

न यावत् उमानाथ पादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ ७॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ ८॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं संपूर्णम् ॥
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