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Sindoor Daan: सिंदूर दान का क्या है महत्व, क्या सिंदूर दान के बिना अधूरा है विवाह
जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: कोमल Updated Sat, 11 May 2024 06:04 PM IST
सार
Sindoor Daan: हिंदू धर्म में विवाह एक ऐसा आयोजन है, जिसमें कई दिनों तक विभिन्न प्रकार की रस्में निभाई जाती हैं। शादी की रस्में अलग-अलग क्षेत्रों के अनुसार थोड़े-बहुत बदलाव के साथ कई दिनों तक चलती हैं।
सिंदूरदान- फोटो : jeevanjali
विस्तार
Sindoor Daan: हिंदू धर्म में विवाह एक ऐसा आयोजन है, जिसमें कई दिनों तक विभिन्न प्रकार की रस्में निभाई जाती हैं। शादी की रस्में अलग-अलग क्षेत्रों के अनुसार थोड़े-बहुत बदलाव के साथ कई दिनों तक चलती हैं। लेकिन कुछ रीति-रिवाजों के बिना हिंदू विवाह संपन्न नहीं माना जाता है। इन्हीं में से एक है सिन्दूर दान। इसमें दूल्हा दुल्हन की मांग में सिन्दूर लगाता है। इसके बाद सिन्दूर दुल्हन के सुहाग की निशानी बन जाता है। इसके बिना शादी पूरी नहीं मानी जाती. शास्त्रों के अनुसार, सिन्दूर लगाने की परंपरा रामायण काल से चली आ रही है। आइए आपको बताते हैं कि सिन्दूर दान करने का क्या महत्व है।
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सिन्दूर का महत्व
सनातन परंपराओं के अनुसार सिन्दूर को अखण्ड सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा यह भी माना जाता है कि विवाहित स्त्री द्वारा प्रतिदिन माथे पर सिन्दूर लगाने से वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है। इसलिए भारतीय संस्कृति में विवाहित महिलाओं द्वारा सिन्दूर लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। यह भी माना जाता है कि मांग में सिन्दूर जितना लंबा होगा, जीवनसाथी की उम्र उतनी ही लंबी होगी। सिन्दूर का रंग लाल होता है, जिसे हिंदू धर्म में प्रेम और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों में माना जाता है कि सिन्दूर आपके वैवाहिक रिश्ते को मजबूत बना सकता है।
इसलिए सिन्दूर दान करना जरूरी है
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विवाह के दौरान जब दूल्हा दुल्हन की मांग में सिन्दूर लगाता है तो इसे सिन्दूर दान कहा जाता है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, सिन्दूर दान की रस्म के बाद ही विवाह संपन्न माना जाता है। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि से भी इसका विशेष महत्व माना जाता है। हमारे शरीर में 7 चक्र होते हैं, जिनका नियंत्रण सिर के उस हिस्से से होता है जहां पर सिन्दूर लगाया जाता है।