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Shivling Puja: किस तरह करनी चाहिए शिवलिंग की पूजा, जानिए विधि

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: कोमल Updated Tue, 14 May 2024 06:07 PM IST
सार

Shivling Puja: सनातन धर्म में शिवलिंग की पूजा का बहुत महत्व माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किसी विशेष सामग्री की आवश्यकता नहीं होती है। भोलेनाथ के नाम से ही पता चलता है कि वे बहुत भोले हैं और जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं।

शिवलिंग की पूजा
शिवलिंग की पूजा- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Shivling Puja: सनातन धर्म में शिवलिंग की पूजा का बहुत महत्व माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किसी विशेष सामग्री की आवश्यकता नहीं होती है। भोलेनाथ के नाम से ही पता चलता है कि वे बहुत भोले हैं और जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन भगवान शिव के स्वरूप शिवलिंग की पूजा करते समय कुछ नियमों का ध्यान रखना चाहिए। इन नियमों का पालन करना जरूरी माना जाता है भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कोई नियमित रूप से जल अर्पित करता है, तो कोई सोमवार के व्रत रखता है. अलग-अलग तरीकों से भगवान शिव की कृपा पाने के लिए कई तरह के प्रयास किए जाते हैं. चलिए आपको बताते हैं कि आपको किस विधि से पूजा करना है 
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इस प्रकार करें शिवलिंग पूजा

अक्सर लोग पूजा के दौरान शिवलिंग को छू लेते हैं। ज्योतिष शास्त्र में शिवलिंग को पुरुष तत्व बताया गया है। ऐसे में महिलाओं के लिए शिवलिंग को छूना वर्जित माना जाता है। जो महिलाएं श्रद्धावश शिवलिंग को छूना चाहती हैं उन्हें नंदी मुद्रा में ही शिवलिंग को छूना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र में नंदी मुद्रा उसे कहा जाता है जिसमें व्यक्ति नंदी जी की तरह बैठता है। इस आसन में तर्जनी और अनामिका उंगलियों को सीधा रखा जाता है, जबकि बीच की दो उंगलियों को अंगूठे से मिलाया जाता है। इस मुद्रा में भगवान शंकर की पूजा करने से वे प्रसन्न होते हैं। इससे जीवन की सभी बाधाएं भी दूर हो जाती हैं। इसलिए महिलाओं को इसी स्थिति में पूजा करनी चाहिए।



भगवान शंकर की नामावली

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श्री शिवाय नम:।।

श्री शंकराय नम:।।

श्री महेश्वराय नम:।।

श्री सांबसदाशिवाय नम:।।

श्री रुद्राय नम:।।

ॐ पार्वतीपतये नम:।।

ओम नमो नीलकण्ठाय नमः।।

शिव जी का गायत्री मंत्र

।। ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात ।।

भगवान शंकर का महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥


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