Home›dharm›aarti› shri hari stotram jagajjalpalam chalatkanthamalan must recite shri hari stotram
Shri Hari Stotram:जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं, जरूर करें श्री हरि स्तोत्र का पाठ
jeevanjali Published by: कोमल Updated Fri, 01 Mar 2024 09:10 AM IST
सार
Shri Hari Stotram: भगवान विष्णु को सृष्टि का पालक कहा जाता है कहते हैं जिस व्यक्ति पर भगवान विष्णु की कृपा हो उस व्यक्ति को कभी कोई परेशानी नहीं आ सकती है और भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का सबसे अच्छा तरीका है श्री हरि स्तोत्र
श्री हरि स्तोत्र- फोटो : jeevanjali
विस्तार
Shri Hari Stotram: भगवान विष्णु को सृष्टि का पालक कहा जाता है कहते हैं जिस व्यक्ति पर भगवान विष्णु की कृपा हो उस व्यक्ति को कभी कोई परेशानी नहीं आ सकती है और भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का सबसे अच्छा तरीका है श्री हरि स्तोत्र। जो भी व्यक्ति श्री हरि स्तोत्र का पाठ करता है उसे जीवन की सारी खुशियां मिलती है श्री हरि स्तोत्र का पाठ करने व्यक्ति को बहुत लाभ मिलता है। श्री हरि स्तोत्र का पाठ करने से सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है श्री हरि स्तोत्र का पाठ बहुत लाभकारी बताया गया है आपको बता दें कि श्री हरि स्तोत्र का पाठ भगवान विष्णु को समर्पित है
विज्ञापन
विज्ञापन
।। श्री हरि स्तोत्र।।
जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं
शरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं
नभोनीलकायं दुरावारमायं
सुपद्मासहायम् भजेऽहं भजेऽहं ॥
सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासं
जगत्सन्निवासं शतादित्यभासं
गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रं
हसच्चारुवक्त्रं भजेऽहं भजेऽहं ॥
रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारं
जलान्तर्विहारं धराभारहारं
चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं
ध्रुतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहं ॥
जराजन्महीनं परानन्दपीनं
समाधानलीनं सदैवानवीनं
जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुं
त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं ॥
कृताम्नायगानं खगाधीशयानं
विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानं
स्वभक्तानुकूलं जगद्व्रुक्षमूलं
निरस्तार्तशूलं भजेऽहं भजेऽहं ॥
समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशं
जगद्विम्बलेशं ह्रुदाकाशदेशं
सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहं
सुवैकुण्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं ॥
सुरालिबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं
गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठं
सदा युद्धधीरं महावीरवीरं
महाम्भोधितीरं भजेऽहं भजेऽहं ॥
रमावामभागं तलानग्रनागं
कृताधीनयागं गतारागरागं
मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतं
गुणौधैरतीतं भजेऽहं भजेऽहं ॥
विज्ञापन
फलश्रुति
इदं यस्तु नित्यं समाधाय चित्तं
पठेदष्टकं कण्ठहारम् मुरारे:
स विष्णोर्विशोकं ध्रुवं याति लोकं
जराजन्मशोकं पुनर्विन्दते नो ॥
धन्वंतरि मंत्र:
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥
हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर और व्यक्तिगत अनुभव प्रदान कर सकें और लक्षित विज्ञापन पेश कर सकें। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।