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Pitra Dosh: आखिर कुंडली में कैसे बनता है पितृ दोष? जानिए क्या है इसका निवारण

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: निधि Updated Tue, 14 May 2024 04:02 PM IST
सार

Pitra Dosh: ज्योतिष शास्त्र में कालसर्प योग के बाद यदि कोई दोष शोध का कारण बना है तो वह है 'पितृ दोष', दरअसल यह कालसर्प दोष की तरह ही एक ऐसा दोष है जिसमें जातक को कमोबेश यही परिणाम भुगतने पड़ते हैं। .

Pitra Dosh:
Pitra Dosh:- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Pitra Dosh: ज्योतिष शास्त्र में कालसर्प योग के बाद यदि कोई दोष शोध का कारण बना है तो वह है 'पितृ दोष', दरअसल यह कालसर्प दोष की तरह ही एक ऐसा दोष है जिसमें जातक को कमोबेश यही परिणाम भुगतने पड़ते हैं। . वैसे तो कालसर्प योग में राहु का प्रभाव अधिक होता है लेकिन इस दोष में राहु के साथ-साथ शनि का दोष भी उतना ही प्रभावी होता है। सूर्य आत्मा का कारक है और वैदिक ज्योतिष में इसे पिता का कारक कहा जाता है, इसलिए जब राहु और शनि सूर्य को प्रभावित करते हैं, तो 'पितृ दोष' बनता है। इस दोष में शर्त यह है कि सूर्य राहु के साथ हो और उस पर शनि की दृष्टि हो। वहीं यदि शनि सूर्य के साथ हो या उस पर राहु की दृष्टि हो तो विद्वानों ने इसे 'पितृ दोष' कहा है।
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 कुंडली में कैसे बनता है पितृ दोष?

ज्योतिष विद्वानों का कहना है कि यदि पंचम और नवम भाव में ऐसी ग्रह स्थिति हो तो व्यक्ति निश्चित ही पितृ दोष से पीड़ित होगा। दरअसल, पंचम भाव पूर्व जन्म का भाव होता है और नवम भाव उससे पंचम भाव यानी धर्म का भाव होता है, ऐसा विद्वानों ने कहा है। दरअसल, दक्षिण भारत में कुछ विद्वान नवम भाव से पिता का विचार करते हैं और इसी भाव से पुत्र का भी विचार किया जाता है, अत: यदि यह दोष नवम भाव में बनता है तो घातक होगा, ऐसा कथन उचित प्रतीत होता है।
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जानकारों का यह भी कहना है कि यदि चंद्रमा भी शनि और राहु से पीड़ित हो तो व्यक्ति को सास का दोष लगता है। इसके अलावा यदि सूर्य और चंद्रमा दोनों पीड़ित हों तो इसका व्यक्ति पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हालाँकि, विज्ञान के अनुसार, केवल अमावस्या के दिन ही सूर्य और चंद्रमा एक-दूसरे के बहुत करीब होंगे और ऐसी स्थिति में, पंचम भाव में शनि और राहु की युति या दृष्टि की स्थिति कई वर्षों में एक बार आएगी।

दरअसल राहु चंद्र को कमजोर करता है वही वायु तत्व शनि उस युति को और भड़का देता है जिससे जातक जीवन भर मान सम्मान को तरस जाता है और उसे कहीं भी शांति नहीं मिलती है। हमारी संस्कृति में पितरों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है और जीवित ही नहीं बल्कि मरने के बाद भी हम उनके निमित्त श्राद्ध कर्म करते है। अगर किसी जातक की कुंडली में ऊपर दी गई ग्रह स्थिति बन रही है तो उसे पितृ पक्ष में किसी विद्वान आचार्य से इस दोष की शांति करवानी चाहिए।

पितृ दोष के कुछ लक्षण 

इस दोष से पीड़ित जातक हर जगह असफलता हासिल करता है भले ही वो अपना स्थान ही क्यों न बदल ले। 

ऐसे जातक के घर में कभी शांति नहीं होगी। विवाह के कई वर्षों के बाद भी संतान नहीं होती है। 

ऐसे जातक को कोई ना कोई बीमारी घेरे रहती है। उसे शरीर में हमेशा भारीपन लगता है। 

 - ऐसा जातक घर में कोई मांगलिक काम भी करवाना चाहे तो उसके काम में बाधा आती है। 

- ऐसे जातक के घर में अच्छी खासी कमाई के बाद भी पुत्रों में झगड़ा लगा रहता है। 

इस दोष से बचने के कुछ उपाय

 - हर अमावस को देवताओं को भोग लगाकर अपने पितरों के निमित्त अन्न और वस्त्र भेंट करना चाहिए। 

 - सूर्य देव की रोजाना विधिवत पूजा करे और अर्घ्य दे। 

 - सूर्य देव के सामने अपने पितरों की शांति की प्रार्थना करें। 

- साल में एक बार किसी पवित्र नदी के किनारे पितरों के निमित्त गरीबों को भोजन दे।

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