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Valmiki Ramayana Part 143: कैकेयी ने भरत को बताई राम के वनवास जाने की बात! जानिए फिर आगे क्या हुआ

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: निधि Updated Thu, 30 May 2024 04:58 PM IST
सार

Valmiki Ramayana Part 143: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि अपनी माता रानी कैकेयी से भरत को अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु का समाचार प्राप्त होता है।

Valmiki Ramayana
Valmiki Ramayana- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Valmiki Ramayana Part 143: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि अपनी माता रानी कैकेयी से भरत को अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु का समाचार प्राप्त होता है। हालांकि उस समय उनको इस बात का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं होता है कि श्री राम को वनवास हो गया है। वो विलाप करने लग जाते है। इसके बाद, भरत कहते है कि अब राम ही मेरे पिता है। मैं उनका चरण स्पर्श करना चाहता हूं। 
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भरत के इस प्रकार पूछने पर कैकेयी ने भरत को समझाना शुरू किया। वो अपने बेटे से बोली, जैसे पाशों से बँधा हुआ महान् गज विवश हो जाता है, उसी प्रकार कालधर्म के वशीभूत हुए तुम्हारे पिता ने अन्तिम वचन इस प्रकार कहा था। जो लोग सीता के साथ पुनः लौटकर आये हुए महाबाहु श्रीराम और लक्ष्मण को देखेंगे, वे ही कृतार्थ होंगे। 

राम की वनवास जाने की बात सुनकर दुःखी हुए भरत 

माता के द्वारा यह दूसरी अप्रिय बात कही जाने पर भरत और भी दुःखी ही हुए। उनके मुख पर विषाद छा गया और उन्होंने पुनः माता से पूछा, भाई लक्ष्मण और सीता के साथ कहाँ चले गये हैं ? इस प्रकार पूछने पर उनकी माता कैकेयी ने एक साथ ही प्रिय बुद्धि से वह अप्रिय संवाद यथोचित रीति से सुनाना आरम्भ किया। वो बोली, बेटा ! राजकुमार श्रीराम वल्कल-वस्त्र धारण करके सीता के साथ दण्डक वन में चले गये हैं। लक्ष्मण ने भी उन्हीं का अनुसरण किया है। इसे सुनकर भरत हैरान हो गए। उन्होंने फिर अपनी मां से पूछा ! श्रीराम ने किसी कारण वश ब्राह्मण का धन तो नहीं हर लिया था? किसी निष्पाप धनी या दरिद्र की हत्या तो नहीं कर डाली थी?
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भरत ने कैकेयी से पूछा ये सवाल

राजकुमार श्रीराम का मन किसी परायी स्त्री की ओर तो नहीं चला गया? किस अपराध के कारण भैया श्रीराम को दण्डकारण्य में जाने के लिये निर्वासित कर दिया गया है? तब चपल स्वभाव वाली भरत की माता कैकेयी ने उस विवेकशून्य चञ्चल नारी स्वभाव के कारण ही अपनी करतूत को ठीक-ठीक बताना आरम्भ किया। बेटा ! श्रीराम ने किसी कारण वश किञ्चिन्मात्र भी ब्राह्मण के धन का अपहरण नहीं किया है। किसी निरपराध धनी या दरिद्र की हत्या भी उन्होंने नहीं की है। श्रीराम कभी किसी परायी स्त्री पर दृष्टि नहीं डालते हैं। मैंने सुना था कि अयोध्या में श्रीराम का राज्याभिषेक होने जा रहा है, तब मैंने तुम्हारे पिता से तुम्हारे लिये राज्य और श्रीराम के लिये वनवास की प्रार्थना की। 

महायशस्वी महाराज पुत्रशोक में डूबे

उन्होंने अपने सत्यप्रतिज्ञ स्वभाव के अनुसार मेरी माँग पूरी की। श्रीराम लक्ष्मण और सीता के साथ वन को भेज दिये गये, फिर अपने प्रिय पुत्र श्रीराम को न देखकर वे महायशस्वी महाराज पुत्रशोक से पीड़ित हो परलोकवासी हो गये। अब तुम राजपद स्वीकार करो। तुम्हारे लिये ही मैंने इस प्रकार से यह सब कुछ किया है। बेटा ! शोक और संताप न करो, धैर्य का आश्रय लो। अब यह नगर और निष्कण्टक राज्य तुम्हारे ही अधीन है। अब विधि-विधान के ज्ञाता वसिष्ठ आदि प्रमुख ब्राह्मणों के साथ तुम उदार हृदय वाले महाराज का अन्त्येष्टि-संस्कार करके इस पृथ्वी के राज्य पर अपना अभिषेक कराओ।

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