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Valmiki Ramayana Part 141: ऋषि वशिष्ठ के आदेश पर भरत को लेने पहुंचे दूत! उस रात भरत ने भी एक बुरा स्वप्न देखा

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: निधि Updated Tue, 28 May 2024 02:51 PM IST
सार

Valmiki Ramayana Part 141: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि राजा दशरथ की मृत्यु के बाद दरबार में आये मार्कण्डेय, मौद्गल्य, वामदेव, कश्यप, कात्यायन, गौतम और महायशस्वी जाबालि ने राज पुरोहित वसिष्ठ से जल्द किसी को राजा बनाने की मांग की।

Valmiki Ramayana
Valmiki Ramayana- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Valmiki Ramayana Part 141: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि राजा दशरथ की मृत्यु के बाद दरबार में आये मार्कण्डेय, मौद्गल्य, वामदेव, कश्यप, कात्यायन, गौतम और महायशस्वी जाबालि ने राज पुरोहित वसिष्ठ से जल्द किसी को राजा बनाने की मांग की। इसके बाद वसिष्ठ बोले, राजा दशरथ ने जिनको राज्य दिया है, वे भरत इस समय अपने भाई शत्रुघ्न के साथ मामा के यहाँ बड़े सुख और प्रसन्नता के साथ निवास करते हैं। उन दोनों वीर बन्धुओं को बुलाने के लिये शीघ्र ही तेज चलने वाले दूत घोड़ों पर सवार होकर यहाँ से जायँ, इसके सिवा हम लोग और क्या विचार कर सकते हैं? 
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तदनन्तर यात्रा सम्बन्धी शेष तैयारी पूरी करके वसिष्ठजी की आज्ञा ले सभी दूत तुरंत वहाँ से भरत को लेने निकल गए। प्रजावर्ग की रक्षा करने तथा महाराज दशरथ के वंश परम्परागत राज्य को भरत जी से स्वीकार कराने के लिये सादर तत्पर हुए वे दूत बड़ी उतावली के साथ चलकर रात में ही उस नगर में जा पहुँचे। जिस रात में दूतों ने उस नगर में प्रवेश किया था, उससे पहली रात में भरत ने भी एक अप्रिय स्वप्न देखा था। रात बीतकर प्रायः सबेरा हो चला था। तभी उस अप्रिय स्वप्न को देखकर राजाधिराज दशरथ के पुत्र भरत मन-ही-मन बहुत संतप्त हुए। 

 भरत ने दूतों का सत्कार करने के बाद महाराज दशरथ से पूछा ये सवाल

नगर में आकर वे दूत केकय देश के राजा और राजकुमार से मिले तथा उन दोनों ने भी उनका सत्कार किया। फिर वे भावी राजा भरत के चरणों का स्पर्श करके उनसे इस प्रकार बोले -पुरोहितजी तथा समस्त मन्त्रियों ने आपसे कुशल-मङ्गल कहा है। अब आप यहाँ से शीघ्र चलिये। अयोध्या में आपसे अत्यन्त आवश्यक कार्य है। दूतों का सत्कार करने के बाद भरत ने उनसे पूछा, मेरे पिता महाराज दशरथ सकुशल तो हैं न? महात्मा श्रीराम और लक्ष्मण नीरोग तो हैं न? धर्म को जानने और धर्म की ही चर्चा करने वाली बुद्धिमान् श्रीराम की माता धर्मपरायणा आर्या कौसल्या को तो कोई रोग या कष्ट नहीं है? 
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सुमित्रा का स्वस्थ 

क्या वीर लक्ष्मण और शत्रुघ्न की जननी मेरी मझली माता धर्मज्ञा सुमित्रा स्वस्थ और सुखी हैं? ‘जो सदा अपना ही स्वार्थ सिद्ध करना चाहती और अपने को बड़ी बुद्धिमती समझती है, उस उग्र स्वभाव वाली कोपशीला मेरी माता कैकेयी को तो कोई कष्ट नहीं है? उसने क्या कहा है? महात्मा भरत के इस प्रकार पूछने पर उस समय दूतों ने विनयपूर्वक उनसे यह बात कही - आपको जिनका कुशल-मङ्गल अभिप्रेत है, वे सकुशल हैं। हाथ में कमल लिये रहने वाली लक्ष्मी (शोभा) आपका वरण कर रही है। 

किस यात्रा के लिए शीघ्र तैयार हुआ रथ?

अब यात्रा के लिये शीघ्र ही आपका रथ जुतकर तैयार हो जाना चाहिये। उस अवसर पर भरत के हृदय में बड़ी भारी चिन्ता हो रही थी। इसके दो कारण थे, एक तो दूत वहाँ से चलने की जल्दी मचा रहे थे, दूसरे उन्हें दुःस्वप्न का दर्शन भी हुआ था। शत्रुहीन महामना भरत अपनी और मामा की सेना से सुरक्षित हो शत्रुघ्न को अपने साथ रथ पर लेकर, मामा के घर से चले मानो कोई सिद्ध पुरुष इन्द्रलोक से किसी अन्य स्थान के लिये प्रस्थित हुआ हो।

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