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Bhagavad Gita Part 135: योगमाया भगवान की शक्ति के रूप में कैसे काम करती है ? क्या ये निराकार है या साकार?

jeevanjali Published by: निधि Updated Thu, 21 Mar 2024 05:49 PM IST
सार

Bhagavad Gita: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, वास्तव में ईश्वर निराकार और साकार दोनों रूप में विराजते है।

Bhagavad Gita: भगवद्गीता
Bhagavad Gita: भगवद्गीता- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Bhagavad Gita: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, वास्तव में ईश्वर निराकार और साकार दोनों रूप में विराजते है। उनका निराकार स्वरुप बेहद शक्तिशाली होता है क्योंकि उससे पुरे जगत की उत्पत्ति होती है। साकार रूप में उनकी लीला प्रकट होती है।

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नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः, मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् (अध्याय 7 श्लोक 25 )

ना न तो अहम्-मैं; प्रकाश:-प्रकट; सर्वस्य–सब के लिये; योग-माया भगवान की परम अंतरंग शक्ति; समावृतः-आच्छादित; मूढः-मोहित, मूर्ख; अयम्-इन; न-नहीं; अभिजानाति–जानना; लोकः-लोग; माम्-मुझको; अजम्-अजन्मा को; अव्ययम्-अविनाशी।

अर्थ -मैं सभी के लिए प्रकट नहीं हूँ क्योंकि सब मेरी अंतरंग शक्ति 'योगमाया' द्वारा आच्छादित रहते हैं इसलिए मूर्ख और अज्ञानी लोग यह नहीं जानते कि मैं अजन्मा और अविनाशी हूँ।

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व्याख्या - इस श्लोक में श्री कृष्ण अपनी एक और शक्ति 'योगमाया' के बारे में बतलाते है। दरअसल इस संसार का जो जीव है वो योगमाया के प्रभाव से ही संसार के सुखों में लीन रहता है। ईश्वर खुद हमारे ह्रदय में विराजमान है लेकिन इसी योगमाया के प्रभाव से हम इस चीज को समझ नहीं पाते है। अब योगमाया काम कैसे करती है ? अगर गौर से समझे तो साकार और निराकार रूप में यह माया प्रकट होती है। जब ईश्वर अपने सगुण रूप में अवतार लेते है तब यही माया उनकी सहायक बनती है जैसे सीता राम, राधा कृष्ण आदि। वो अपने भक्तो पर कृपा कर उन्हें ईश्वर के वास्तविक स्वरुप से मिलवाते है। वही योगमाया निराकार रूप भी व्याप्त है और मनुष्य को ईश्वर तक पहुंचने से रोकती है। हर व्यक्ति ईश्वर का रहस्य नहीं जा सकता है। इसलिए योगमाया श्री कृष्ण की एक शक्ति के रूप में काम करती है।

वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन, भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन ( अध्याय 7 श्लोक 26 )

वेद-जानना; अहम्-मैं; समतीतानि भूतकाल को; वर्तमानानि वर्तमान को; च तथा; अर्जुन-अर्जुन; भविष्याणि भविष्य को; च-भी; भूतानि-सभी जीवों को; माम्-मुझको; तु-लेकिन; वेद-जानना; न-नहीं; कश्चन-कोई हे

अर्थ - अर्जुन ! मैं भूत, वर्तमान और भविष्य को जानता हूँ और मैं सभी प्राणियों को जानता हूँ लेकिन मुझे कोई नहीं जानता।

व्याख्या - इस श्लोक में श्री कृष्ण इस बात की घोषणा करते है कि वो सर्व शक्तिमान है और एक मनुष्य की साधारण बुद्धि से कई गुना ऊपर उनकी बुद्धि है। वो अर्जुन से कहते है कि वो भूत, वर्तमान और भविष्य को जानते है लेकिन उन्हें कोई नहीं जान सकता है। एक मनुष्य तो कुछ दिनों पहले की बात भूल जाता है लेकिन ईश्वर को जन्म जन्मांतर की बातें याद रहती है। पुराण भी इस बात को कहते है कि एक मनुष्य बस उतना ही देखता और समझता है जितनी उसकी तर्क शक्ति है। उससे आगे ना वो सोच सकता है और ना ही उसे कोई समझा सकता है। लाखों में कोई एक व्यक्ति ऐसा होता है जो अपनी शुद्ध बुद्धि के माध्यम से श्री भगवान् को जान और समझ पाता है।

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