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Vat Savitri Vrat 2024: आज है वट सावित्री पर क्यों की जाती है बरगद के पेड़ की पूजा, जानिए महत्व

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: निधि Updated Thu, 06 Jun 2024 10:15 AM IST
सार

Vat Savitri Vrat 2024: वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ का बहुत महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार सनातन संस्कृति में माना जाता है कि बरगद के पेड़ पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवता निवास करते हैं।

Vat Savitri Vrat 2024
Vat Savitri Vrat 2024- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Vat Savitri Vrat 2024: इस साल वट सावित्री का व्रत 06 जून को मनाया जाएगा। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से पति पर आने वाले सभी संकट दूर होते हैं। ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को वट सावित्री अमावस्या कहा जाता है। इस दिन महिलाएं सौभाग्य प्राप्ति के लिए वट सावित्री व्रत रखती हैं और बरगद के पेड़ और यमदेव की पूजा करती हैं। भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक है। वट सावित्री व्रत में वट और सावित्री दोनों का विशेष महत्व है।
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वट सावित्री व्रत में होती है बरगद के पेड़ की विशेष पूजा

वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ का बहुत महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार सनातन संस्कृति में माना जाता है कि बरगद के पेड़ पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवता निवास करते हैं। इस दिन विवाहित महिलाएं बरगद के पेड़ पर जल चढ़ाती हैं और उस पर कुमकुम और चावल के दाने लगाती हैं। पेड़ के चारों ओर रोली लपेटी जाती है। वट वृक्ष की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। ऐसा करने से उन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। 
वट पूर्णिमा व्रत का महत्व

वट पूर्णिमा व्रत का संबंध सावित्री से है। वही सावित्री जिसका पौराणिक कथाओं में बहुत बड़ा स्थान है। कहा जाता है कि सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लिए थे। वट पूर्णिमा व्रत में महिलाएं सावित्री की तरह ही तीनों देवताओं से अपने पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं ताकि उनके पति को समृद्धि, अच्छा स्वास्थ्य और लंबी आयु मिले।
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वट सावित्री के दिन जरूर करें ये काम
-आज के दिन बरगद का पेड़ लगाएं। इसे लगाना शुभ माना जाता है। 

-पीले कपड़े को बरगद के जड़ में लपेटने के पास अपने पास रखें। 

वट सावित्री व्रत कथा - Vat savitri Vrat katha

पौराणिक कथा के अनुसार अश्वपति नाम का एक राजा था। राजा के घर में सावित्री ने कन्या के रूप में जन्म लिया। जब वह विवाह योग्य हुई तो राजा ने सावित्री को अपने मंत्री के साथ पति चुनने के लिए भेजा। सावित्री ने सत्यवान को अपना प्रिय वर चुना। सत्यवान महाराज द्युमत्सेन के पुत्र थे, जिनका राज्य छीन लिया गया था, जो अंधे हो गए थे और अपनी पत्नी के साथ जंगलों में रहते थे। जब सावित्री विवाह के बाद लौटी तो नारद जी ने अश्वपति को बधाई दी। नारद मुनि ने भी भविष्यवाणी की थी कि सत्यवान अल्पायु है। वह शीघ्र ही मर जाएगा। नारद जी की बात सुनकर राजा अश्वपति का चेहरा पीला पड़ गया। उन्होंने सावित्री को किसी और को पति के रूप में चुनने की सलाह दी, लेकिन सावित्री ने उत्तर दिया कि एक आर्य कन्या होने के नाते जब मैंने सत्यवान को चुन लिया है तो अब चाहे वह अल्पायु हो या दीर्घायु, मैं अपने हृदय में किसी और को स्थान नहीं दे सकती। सावित्री ने नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय ज्ञात किया। सावित्री ने नारदजी द्वारा बताए गए दिन से तीन दिन पहले से ही व्रत रखना शुरू कर दिया। नारदजी द्वारा निश्चित तिथि पर जब सत्यवान लकड़ी काटने के लिए वन में गया, तो वह भी अपने सास-ससुर से अनुमति लेकर सत्यवान के साथ चली गई। सत्यवान वन में पहुंचकर लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गया। पेड़ पर चढ़ने के बाद उसके सिर में तेज दर्द होने लगा। वह नीचे उतर आया। सावित्री ने उसे वट वृक्ष के नीचे लिटा दिया और उसका सिर अपनी जांघ पर रख लिया।

कुछ ही देर में यमराज ने सावित्री को ब्रह्माजी के विधान की रूपरेखा समझाई और सत्यवान के प्राण ले गए। 'कहीं-कहीं ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि वट वृक्ष के नीचे लेटे हुए सत्यवान को सांप ने डस लिया था।' सावित्री ने सत्यवान को वट वृक्ष के नीचे लिटा दिया और यमराज के पीछे चल दी। यमराज ने अपने पीछे चल रही सावित्री को लौट जाने का आदेश दिया। इस पर उसने कहा, महाराज, जहां पति होता है, वहां पत्नी होती है। यही धर्म है, यही मर्यादा है।

सावित्री की धर्म निष्ठा से प्रसन्न होकर यमराज ने कहा कि तुम अपने पति के प्राणों को छोड़कर कुछ भी मांग सकती हो। सावित्री ने यमराज से अपने सास-ससुर की आंखों की रोशनी और लंबी आयु मांगी। यमराज ने तथास्तु कहकर आगे बढ़ गए। सावित्री यमराज के पीछे-पीछे चलती रही। यमराज ने अपने पीछे चल रही सावित्री से लौटने को कहा तो सावित्री ने कहा कि पति के बिना स्त्री का जीवन व्यर्थ है। सावित्री की पति-भक्ति से प्रसन्न होकर यमराज ने उसे दूसरा वरदान मांगने को कहा। इस बार उसने अपने ससुर का राज्य वापस पाने की प्रार्थना की। तथास्तु कहकर यमराज आगे बढ़ गए। सावित्री फिर भी यमराज के पीछे-पीछे चलती रही। इस बार सावित्री ने यमराज से सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान मांगा। तथास्तु कहकर यमराज आगे बढ़े तो सावित्री बोली, आपने मुझे सौ पुत्रों का वरदान तो दे दिया, लेकिन पति के बिना मैं मां कैसे बन सकती हूं। आप अपना यह तीसरा वरदान पूरा कीजिए। सावित्री की धर्म, ज्ञान, बुद्धि और पति-परायणता के बारे में जानकर यमराज ने सत्यवान की आत्मा को अपने पाश से मुक्त कर दिया। सावित्री सत्यवान की आत्मा को लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुंची जहां सत्यवान का शव रखा हुआ था। जब सावित्री ने वट वृक्ष की परिक्रमा की तो सत्यवान पुनः जीवित हो गया। जब सावित्री प्रसन्न मन से अपने सास-ससुर के पास पहुंची तो उनकी आंखों की रोशनी वापस आ गई।

वट सावित्री पूजा विधि

- सुबह स्नान करने के बाद बिना कुछ खाए-पीए व्रत रखने का संकल्प लें। महिलाओं को पूरी तरह से सजने-संवरने के बाद इस व्रत की शुरुआत करनी चाहिए। इस दिन पीला सिंदूर लगाना शुभ माना जाता है।
- वट वृक्ष (बरगद के पेड़) के नीचे सावित्री-सत्यवान और यमराज की मूर्ति स्थापित करें। बरगद के पेड़ में जल चढ़ाएं और उसमें फूल, चावल, पुष्प और मिठाई चढ़ाएं।
- वट (बरगद) के पेड़ पर रक्षा सूत्र बांधकर आशीर्वाद मांगा जाता है। कम से कम सात बार परिक्रमा करें। इसके बाद हाथ में काले चने लेकर इस व्रत की कथा सुनें। कथा सुनने के बाद पंडित जी को दान करना न भूलें। आप कपड़े, पैसे और चना दान कर सकते हैं।
-अगले दिन व्रत खोलने से पहले बरगद के पेड़ की कोंपलें खाकर व्रत का समापन करें। इसके साथ ही किसी सौभाग्यशाली महिला को श्रृंगार का सामान जरूर दान करें।

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