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Jyeshtha Amavasya 2024: कब है ज्येष्ठ माह की अमावस्या जानिए तिथि और शुभ मुहूर्त

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: कोमल Updated Wed, 05 Jun 2024 05:38 PM IST
सार

Jyeshtha Amavasya 2024 अमावस्या तिथि पितरों को समर्पित होती है। साल में 12 अमावस्याएं होती हैं, सभी का अपना-अपना महत्व होता है लेकिन ज्येष्ठ अमावस्या सबसे खास मानी जाती है। ज्येष्ठ अमावस्या के दिन शनि जयंती और वट सावित्री व्रत भी मनाया जाता है।

ज्येष्ठ अमावस्या
ज्येष्ठ अमावस्या- फोटो : jeevanjali

विस्तार


Jyeshtha Amavasya 2024 अमावस्या तिथि पितरों को समर्पित होती है। साल में 12 अमावस्याएं होती हैं, सभी का अपना-अपना महत्व होता है लेकिन ज्येष्ठ अमावस्या सबसे खास मानी जाती है। ज्येष्ठ अमावस्या के दिन शनि जयंती और वट सावित्री व्रत भी मनाया जाता है। ऐसे में इस एक दिन शनिदेव, पितरों और शिव-पार्वती का आशीर्वाद मिलने का योग है। इस साल ज्येष्ठ अमावस्या 2024 की तारीख, स्नान-दान शुभ मुहूर्त, महत्व सब कुछ यहां जानें।
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ज्येष्ठ अमावस्या 2024 कब है? ( When is Jyeshtha Amavasya 2024?)

वैदिक पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि 5 जून को शाम 7:54 बजे शुरू होगी. वहीं, इसका समापन अगले दिन यानी 6 जून को शाम 6:07 बजे होगा. ज्येष्ठ अमावस्या का स्नान दान उदया तिथि के अनुसार 6 जून को किया जाएगा।
 

ज्येष्ठ अमावस्या 2024 पूजा मुहूर्त  ( Jyeshtha Amavasya 2024 Puja Muhurat )

पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या 5 जून 2024 को रात 07 बजकर 54 मिनट से शुरू होकर 6 जून 2024 को शाम 06 बजकर 07 मिनट तक रहेगी.

स्नान-दान मुहूर्त - सुबह 04.02 - सुबह 07.07
पितृ पूजन - सुबह 11.30 - दोपहर 02.04 (पितरों की पूजा दोपहर में की जाती है)
शनि देव पूजा - शाम 06.00 - रात 09.49 (शनि देव की पूजा सूर्यास्त के बाद श्रेष्ठ मानी गई है)



ज्येष्ठ अमावस्या का महत्व ( Importance of Jyeshtha Amavasya )

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ज्येष्ठ अमावस्या के दिन वट सावित्री व्रत और शनि जयंती होने से इस तिथि का महत्व बढ़ गया है। धार्मिक दृष्टि से इस अमावस्या का विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से सात जन्मों के पापों और पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है। अमावस्या तिथि के स्वामी पितरों को कहा जाता है, इसलिए इस तिथि पर व्रत-पूजन करने और पितरों को तर्पण और पिंड दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही शनिदेव की पूजा करने से शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या और महादशा से मुक्ति मिलती है। इस दिन शनि जयंती के साथ-साथ महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए वट सावित्री व्रत भी रखती हैं, इसलिए उत्तर भारत में ज्येष्ठ अमावस्या को अत्यंत पवित्र, पुण्यदायी, फलदायी और सौभाग्यशाली माना जाता है।

ज्येष्ठ अमावस्या पूजा विधि (Jyeshtha Amavasya Puja Method)

ज्येष्ठ अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है। स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें और बहते जल में तिल प्रवाहित करें। 
पितरों की शांति के लिए ब्राह्मण पिंडदान और तर्पण कर भोज का आयोजन कर सकते हैं।
अगर बाहर स्नान करना संभव न हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर देवी-देवताओं का ध्यान करते हुए स्नान करना चाहिए।
ज्येष्ठ अमावस्या के दिन पवित्र स्नान और दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और पितृ दोष भी दूर होता है।
 इसके बाद पीपल के पेड़ पर जल, अक्षत, सिन्दूर आदि चीजें चढ़ाएं और 11 परिक्रमा करें।
ज्येष्ठ अमावस्या के दिन शनि जयंती भी है इसलिए शनि मंदिर जाएं और शनिदेव की पूजा करें।
 शनिदेव को सरसों का तेल, काले तिल, काला कपड़ा और नीले फूल चढ़ाएं। 
फिर शनि मंत्र और शनि चालीसा का पाठ करें।
वट सावित्री का व्रत रखने वाली महिलाओं को इस दिन यम और बरगद के पेड़ की पूजा करनी चाहिए और दान दक्षिणा देनी चाहिए। 
साथ ही सुहाग का सामान गरीब और जरूरतमंद महिलाओं में बांटें।

पितृ चालीसा का पाठ


पितृ चालीसा

दोहा

हे पितरेश्वर आपको दे दियो आशीर्वाद,

चरण शीश नवा दियो रख दो सिर पर हाथ ।

सबसे पहले गणपत पाछे घर का देव मनावा जी ।

हे पितरेश्वर दया राखियो, करियो मन की चाया जी । ।

चौपाई

पितरेश्वर करो मार्ग उजागर, चरण रज की मुक्ति सागर ।

परम उपकार पित्तरेश्वर कीन्हा, मनुष्य योणि में जन्म दीन्हा ।

मातृ-पितृ देव मन जो भावे, सोई अमित जीवन फल पावे ।

जै-जै-जै पित्तर जी साईं, पितृ ऋण बिन मुक्ति नाहिं ।

चारों ओर प्रताप तुम्हारा, संकट में तेरा ही सहारा ।

नारायण आधार सृष्टि का, पित्तरजी अंश उसी दृष्टि का ।

प्रथम पूजन प्रभु आज्ञा सुनाते, भाग्य द्वार आप ही खुलवाते ।

झुंझनू में दरबार है साजे, सब देवों संग आप विराजे ।

प्रसन्न होय मनवांछित फल दीन्हा, कुपित होय बुद्धि हर लीन्हा ।

पित्तर महिमा सबसे न्यारी, जिसका गुणगावे नर नारी ।

तीन मण्ड में आप बिराजे, बसु रुद्र आदित्य में साजे ।

नाथ सकल संपदा तुम्हारी, मैं सेवक समेत सुत नारी ।

छप्पन भोग नहीं हैं भाते, शुद्ध जल से ही तृप्त हो जाते ।

तुम्हारे भजन परम हितकारी, छोटे बड़े सभी अधिकारी ।

भानु उदय संग आप पुजावे, पांच अँजुलि जल रिझावे ।

ध्वज पताका मण्ड पे है साजे, अखण्ड ज्योति में आप विराजे ।

सदियों पुरानी ज्योति तुम्हारी, धन्य हुई जन्म भूमि हमारी ।

शहीद हमारे यहाँ पुजाते, मातृ भक्ति संदेश सुनाते ।

जगत पित्तरो सिद्धान्त हमारा, धर्म जाति का नहीं है नारा ।

हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब पूजे पित्तर भाई ।

हिन्दू वंश वृक्ष है हमारा, जान से ज्यादा हमको प्यारा ।

गंगा ये मरुप्रदेश की, पितृ तर्पण अनिवार्य परिवेश की ।

बन्धु छोड़ ना इनके चरणाँ, इन्हीं की कृपा से मिले प्रभु शरणा ।

चौदस को जागरण करवाते, अमावस को हम धोक लगाते ।

जात जडूला सभी मनाते, नान्दीमुख श्राद्ध सभी करवाते ।

धन्य जन्म भूमि का वो फूल है, जिसे पितृ मण्डल की मिली धूल है ।

श्री पित्तर जी भक्त हितकारी, सुन लीजे प्रभु अरज हमारी ।

निशिदिन ध्यान धरे जो कोई, ता सम भक्त और नहीं कोई ।

तुम अनाथ के नाथ सहाई, दीनन के हो तुम सदा सहाई ।

चारिक वेद प्रभु के साखी, तुम भक्तन की लज्जा राखी ।

नाम तुम्हारो लेत जो कोई, ता सम धन्य और नहीं कोई ।

जो तुम्हारे नित पाँव पलोटत, नवों सिद्धि चरणा में लोटत ।

सिद्धि तुम्हारी सब मंगलकारी, जो तुम पे जावे बलिहारी ।

जो तुम्हारे चरणा चित्त लावे, ताकी मुक्ति अवसी हो जावे ।

सत्य भजन तुम्हारो जो गावे, सो निश्चय चारों फल पावे ।

तुमहिं देव कुलदेव हमारे, तुम्हीं गुरुदेव प्राण से प्यारे ।

सत्य आस मन में जो होई, मनवांछित फल पावें सोई ।

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई, शेष सहस्र मुख सके न गाई ।

मैं अति दीन मलीन दुखारी, करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी ।

अब पितर जी दया दीन पर कीजै, अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ।

दोहा

पित्तरों को स्थान दो, तीरथ और स्वयं ग्राम ।

श्रद्धा सुमन चढ़ें वहां, पूरण हो सब काम ।

झुंझनू धाम विराजे हैं, पित्तर हमारे महान ।

दर्शन से जीवन सफल हो, पूजे सकल जहान।।

जीवन सफल जो चाहिए, चले झुंझनू धाम ।

पितृ चरण की धूल ले, हो जीवन सफल महान।।

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