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Guru Purnima 2024: कब है गुरु पूर्णिमा जानिए तिथि और शुभ मुहूर्त

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: कोमल Updated Wed, 29 May 2024 06:07 AM IST
सार

Guru Purnima 2024:  गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आषाढ़ माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है।    गुरु पूर्णिमा हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह दिन भगवान वेद व्यास और सभी गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर है।

गुरु पूर्णिमा
गुरु पूर्णिमा- फोटो : jeevanjali

विस्तार


Guru Purnima 2024:  गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आषाढ़ माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है।    गुरु पूर्णिमा हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह दिन भगवान वेद व्यास और सभी गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर है। गुरु पूर्णिमा के दिन ही भगवान वेद व्यास का जन्म हुआ था। वेद व्यास को महाभारत, पुराण और वेदों का रचयिता माना जाता है। यह दिन गुरु-शिष्य परंपरा को सम्मान देने का अवसर है। गुरु पूर्णिमा ज्ञान और शिक्षा के महत्व का प्रतीक है। यह दिन आध्यात्मिक प्रगति के लिए प्रार्थना करने का अवसर है। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
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गुरु पूर्णिमा 2024 तिथि और शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि 20 जुलाई को शाम 05:59 मिनट  से शुरू होगी और यह अगले दिन यानी 21 जुलाई को दोपहर 03:46 मिनट पर समाप्त होगी. सनातन धर्म में उदया तिथि का अधिक महत्व है। ऐसे में गुरु पूर्णिमा का पर्व 21 जुलाई को मनाया जाएगा.

गुरु पूर्णिमा पूजा विधि

सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें
साफ कपड़े पहनकर और पूजा घर को साफ करें।
भगवान वेद व्यास और अपने गुरु की मूर्ति स्थापित करें।
दीपक जलाएं और अगरबत्ती चढ़ाएं।
फूल, फल और मिठाइयाँ चढ़ाएँ। 
गुरु मंत्रों का जाप करें. 
गुरु चालीसा का पाठ करें.
गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें। 
जरूरतमंदों को दान करें. 
 

इन मंत्रों का जाप करें.

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देव महेश्वरः

यह त्योहार शिक्षा और ज्ञान के महत्व को दर्शाता है और शिक्षकों का सम्मान बढ़ाता है। आप गरीबों, ब्राह्मणों या किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दान दे सकते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन दान करना भी अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है।  गुरु पूर्णिमा समाज में आध्यात्मिक मार्गदर्शन का प्रतीक है, जिससे लोगों को सही दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। गुरु पूर्णिमा का त्योहार गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व को उजागर करता है और हमें अपने गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। इस दिन को पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाना चाहिए, ताकि हमें ज्ञान, शांति और आध्यात्मिक उन्नति मिल सके।
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गुरु पूर्णिमा का महत्व

कबीरदासजी ने लिखा है- गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पाय, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाये। कबीर दास जी का यह दोहा गुरु के प्रति सम्मान व्यक्त कर रहा है। गुरु पूर्णिमा गुरु और शिष्य की परंपरा के लिए खास है. गुरु अपने ज्ञान से शिष्य को सही मार्ग पर चलाता है और उसे ईश्वर का साक्षात्कार कराता है। इसलिए गुरुओं के सम्मान में यह त्योहार हर साल मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु के अलावा भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है। इस दिन गाय की पूजा, सेवा और दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और आरोग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही गुरु की पूजा करने से कुंडली में गुरु दोष समाप्त हो जाता है। इस दिन कई मंदिरों और मठों में गुरु पूजा की जाती है।

गुरु पूर्णिमा मनाने की शुरुआत कैसे हुई? 

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, गुरु पूर्णिमा का त्योहार हर साल आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लोग गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु का आशीर्वाद लेते हैं और गुरु उन्हें लंबी उम्र का आशीर्वाद भी देते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार आषाढ़ मास के दिन को गुरु पूर्णिमा पर्व के रूप में मनाने की शुरुआत हजारों साल पहले महर्षि वेदव्यास ने की थी। सनातन धर्म में महर्षि व्यास को भगवान का रूप माना जाता है। महर्षि वेदव्यास को बचपन से ही अध्यात्म में गहरी रुचि थी। कहा जाता है कि आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि पर महर्षि वेद व्यास ने अपने शिष्यों और ऋषियों को श्रीमद्भागवत पुराण का ज्ञान दिया था. तभी से महर्षि व्यास के शिष्यों ने इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाने की परंपरा शुरू की, जिसका पालन आज भी किया जाता है।
 

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