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Annaprashan Sanskar: क्यों किया जाता है अन्नप्राशन संस्कार, जानें इसका महत्व और सही विधि

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: कोमल Updated Thu, 30 May 2024 06:07 AM IST
सार

Annaprashan Sanskar:  प्राचीन काल में हम कोई भी कार्य करते थे तो उसकी शुरुआत संस्कार से शुरु होती थी आपको बता दें कि प्राचीन समय में व्यक्ति के लगभग चालीस संस्कार किए जाते थे लेकिन जैसे-जैसे समय बदला वैसे वैसे इन संस्कारों की संख्या भी कम होती गई।

अन्नप्राशन
अन्नप्राशन- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Annaprashan Sanskar:  Annaprashan Sanskar:  प्राचीन काल में हम कोई भी कार्य करते थे तो उसकी शुरुआत संस्कार से शुरु होती थी आपको बता दें कि प्राचीन समय में व्यक्ति के लगभग चालीस संस्कार किए जाते थे लेकिन जैसे-जैसे समय बदला वैसे वैसे इन संस्कारों की संख्या भी कम होती गई। आपको बता दें कि गौतम स्मृति में चालीस प्रकार के संस्कारों का वर्णन किया गया है वहीं महर्षि अंगिरा ने इनका अंतर्भाव पच्चीस संस्कारों में किया है इसके साथ ही व्यास स्मृति में सोलह संस्कार का वर्णन किया गया और  हिन्दु धर्मशास्त्रों में भी सोलह संस्कारों का ही वर्णन किया गया है। जिनमें व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कार किए जाते हैं। चलिए आज के इस लेख में हम अन्नप्राशन संस्कार के बारे में बताते हैं 
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अन्नप्राशन संस्कार क्या है 

आपको बता दे कि जब बच्चा 6 महीने का हो जाता है तब उसे मां के दूध के अलावा आहार देना शुरु किया जाता है इस क्रिया को अन्नप्राशन संस्कार कहा जाता है | अन्न का व्यक्ति के जीवन से बहुत गहरा संबंध है क्योंकि अन्न व्यक्ति को जीवित रखने में मदद करता है। अन्नप्राशन संस्कार करने के पीछे व्यक्ति का यह उद्देश्य होता है कि उनका बच्चा एक अच्छे संस्कारयुक्त वातावरण में अन्नाहार की शुरुआत करें। संस्कारयुक्त वातावरण में  अन्नप्राशन संस्कार करने से  बालक स्वस्थ एवं बलवान बनता है | 



अन्नप्राशन की विधि

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पात्रपूजन - आपको बता दें कि ऐसी मान्यता है कि जिस पात्र  से बालक को अन्नप्राशन करवाया जाता है  उस पात्र का शुद्ध होना बहुत जरूरी होता है क्योंकि गंदे पात्र में किसी संस्कारयुक्त आहार को नहीं रखा जाना चाहिए | इसलिए अन्नप्राशन  के समय बच्चे को खीर चटाने के लिए चांदी के बर्तनों  का उपयोग किया जाता है | क्योंकि चांदी को शुद्धता का प्रतीक माना जाता है इसलिए अन्नप्राशन से पहले इस पात्र की पूजा की जाती है 

पात्र पूजन विधि - पात्र की पूजा करने के लिए सबसे पहले पात्र पर चंदन या फिर हल्दी से स्वस्तिक बनाएं। इसके बाद पात्र में अक्षत और पुष्प अर्पित करें और भगवान से ये प्रार्थना करें की इन पात्रों में दिव्यता स्थापित हो और अन्न को दिव्यता प्रदान करें  और बालक की रक्षा करें साथ ही इन मन्त्र का उच्चारण करें

ॐ हिरण्मयेन पात्रेण, सत्यस्यापिहितं मुखम | 

तत्वं पूषन्नपावृणु, सत्यधर्माय दृष्टये ||


अन्न-संस्कार - बच्चे के पैदा होने बाद 6 महीने तक बच्चा केवल दूध पर ही निर्भर रहता है जिसके बाद बच्चे का अन्नप्राशन  संस्कार किया जाता है  इस संस्कार में बच्चे को खीर खिलाई जाती है आपको बता दें कि अन्न-संस्कार में खीर इसलिए चटाई जाती है क्योंकि वह पेय और खाद्य के बीच की स्थिति होती है। खीर के साथ उसमे शहद, घी, और गंगाजल मिलाया जाता है जो पौष्टिकता, रोगनाशक गुणों  को पूरा करता है इसके साथ ही आहार में जो भी चीजें मिलाई जाती हैं उसे मंत्रोच्चार के साथ मिलाया जाता है जिससे उसमे सद्भाव, सद्विचार, संस्कार प्रवेश करें क्योंकि अन्न और जल में भावनाओं को ग्रहण करने की क्षमता होती है | अन्नप्राशन के लिए आवश्यकतानुसार ही खीर और अन्य चीजे मिलानी चाहिए । 

विशेष आहुति - गायत्री मंत्र की आहुतियां पूरी होने के बाद आपको तैयार खीर से 5 विशेष आहुतियां देनी हैं और आहुतियां देते समय भगवान से प्रार्थना करें कि यह भगवान को समर्पित होकर प्रसाद बन जाए।

ॐ देविं वचमजनयन्त देवः, तां विश्वरूपाः पशवो वदन्ति | 

सा नो मन्द्रेषमूर्ज दुहाना, धेनुर्वागस्मानुप सुष्टुतैतु स्वाहा | 

इदं वाचे इदं न मम | 


अन्नप्राशन -जब आहुतियां पूरी हो जाएं तो खीर को चांदी के चम्मच या सिक्के से बच्चे को खिलाएं। इस तरह यह अन्नप्राशन संस्कार पूरा हो जाता है। यज्ञ की भावना से भोजन को शुद्ध करना महत्वपूर्ण माना जाता है। गीता में भी कहा गया है कि यज्ञ से बचा हुआ भोजन खाने से व्यक्ति ब्रह्म को प्राप्त कर सकता है। इसीलिए हमारे देश में कहा जाता है कि जैसा खाओगे अन्न वैसा होगा मन। इसलिए अन्नप्राशन से बच्चे के भोजन का पहला निवाला शुद्ध और संस्कारित होता है। इसलिए हिंदू रीति-रिवाजों में अन्नप्राशन को एक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है।

अन्नप्राशन संस्कार का महत्व

भगवद गीता के अनुसार, भोजन  शरीर को  ही नहीं बल्कि मन, बुद्धि, ऊर्जा और आत्मा को  भी पोषण देता है। भोजन को जीवों का जीवन कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, शुद्ध भोजन शरीर और मन दोनों को शुद्ध करता है और शरीर में सत्व गुण को बढ़ाता है। अन्नप्रान के माध्यम से बच्चे को शुद्ध, सात्विक और पौष्टिक भोजन का सेवन कराया जाता है, जिससे उसके विचारों और भावनाओं में सकारात्मकता पैदा होती है।

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