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Valmiki Ramayana Part 91: कैकेयी ने श्री राम को हानि पहुँचाने के लिए कोप भवन में प्रवेश किया!

jeevanjali Published by: निधि Updated Mon, 12 Feb 2024 06:24 PM IST
सार

मन्थरा के इस प्रकार प्रोत्साहन देने पर सौभाग्य के मद से गर्व करने वाली विशाल लोचना सुन्दरी कैकेयी देवी उसके साथ ही कोप भवन में जाकर लाखों की लागत के मोतियों के हार तथा दूसरे-दूसरे सुन्दर बहुमूल्य आभूषणों को अपने शरीर से उतार उतारकर फेंकने लगी।

वाल्मिकी रामायण
वाल्मिकी रामायण- फोटो : jeevanjali

विस्तार

वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि मंथरा ने कैकेयी से कहा कि वो राजा दशरथ से अपने दो वचन मांगे और राम को वनवास भेज दे। वो आगे अपनी रानी को समझाते हुए बोली, श्रीराम के चौदह वर्षों के लिये वनमें चले जाने पर तुम्हारे पुत्र भरत का राज्य सुदृढ़ हो जायगा और प्रजा आदि को वश में कर लेने से यहाँ उनकी जड़ जम जायगी। फिर चौदह वर्षों के बाद भी वे आजीवन स्थिर बने रहेंगे। ऐसी बातें कहकर मन्थरा ने कैकेयी की बुद्धि में अनर्थ को ही अर्थ रूप में ऊँचा दिया। कैकेयी को उसकी बात पर विश्वास हो गया और वह मन-ही-मन बहुत प्रसन्न हुई। यद्यपि वह बहुत समझदार थी, तो भी कुबरी के कहने से नादान बालिका की तरह कुमार्ग पर चली गयी- अनुचित काम करने को तैयार हो गयी।

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मन्थरा के इस प्रकार प्रोत्साहन देने पर सौभाग्य के मद से गर्व करने वाली विशाल लोचना सुन्दरी कैकेयी देवी उसके साथ ही कोप भवन में जाकर लाखों की लागत के मोतियों के हार तथा दूसरे-दूसरे सुन्दर बहुमूल्य आभूषणों को अपने शरीर से उतार उतारकर फेंकने लगी। सोने के समान सुन्दर कान्तिवाली कैकेयी कुब्जा की बातों के वशीभूत हो गयी थी, अतः वह धरती पर लेटकर मन्थरा से इस प्रकार बोली, यदि श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ तो यह मेरे जीवन का अन्त होगा। अब या तो श्रीराम के वन में चले जाने पर भरत को इस भूतल का राज्य प्राप्त होगा अथवा तू यहाँ महाराज को मेरी मृत्यु का समाचार सुनायेगी।

ऐसे अत्यन्त कठोर वचन कहकर कैकेयी ने सारे आभूषण उतार दिये और बिना बिस्तर के ही वह खाली जमीन पर लेट गयी। उस समय वह स्वर्ग से भूतल पर गिरी हुई किसी किन्नरी के समान जान पड़ती थी। उसका मुख बढ़े हुए अमर्षरूपी अन्धकार से आच्छादित हो रहा था। उसके अङ्गों से उत्तम पुष्पहार और आभूषण उतर चुके थे। उस दशा में उदास मनवाली राजरानी कैकेयी जिसके तारे डूब गये हों, उस अन्धकाराच्छन्न आकाशके समान प्रतीत होती थी। मलिन वस्त्र पहनकर और सारे केशों को दृढ़तापूर्वक एक ही वेणी में बाँधकर कोपभवन में पड़ी हुई कैकेयी बलहीन अथवा अचेत हुई किन्नरी के समान जान पड़ती थी।

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उधर महाराज दशरथ मन्त्री आदि को श्रीराम के राज्याभिषेक की तैयारी के लिये आज्ञा दे सबको यथासमय उपस्थित होने के लिये कहकर रनिवास में गये। उन्होंने सोचा आज ही श्रीराम के अभिषेक की बात प्रसिद्ध की गयी है, इसलिये यह समाचार अभी किसी रानी को नहीं मालूम हुआ होगा; ऐसा विचारकर जितेन्द्रिय राजा दशरथ ने अपनी प्यारी रानी को यह प्रिय संवाद सुनाने के लिये अन्तःपुर में प्रवेश किया। महाराज राजा दशरथ ने वहाँ की उत्तम शय्यापर रानी कैकेयी को नहीं देखा। इससे पहले रानी कैकेयी राजा के आगमन की उस बेला में कहीं अन्यत्र नहीं जाती थीं, राजा ने कभी सूने भवन में प्रवेश नहीं किया था, इसीलिये वे घर में आकर कैकेयी के बारे में पूछने लगे। उन्हें यह मालूम नहीं था कि वह मूर्खा कोई स्वार्थ सिद्ध करना चाहती है।

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