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Valmiki Ramayana Part 147: राम के वनवास जाने के बाद भरत ने क्या कठोर प्रतिज्ञा की? जानिए वजह

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: निधि Updated Thu, 06 Jun 2024 03:22 PM IST
सार

Valmiki Ramayana: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि कैकेयी और भरत के कारण मंथरा के प्राणों की रक्षा हो गई।

Valmiki Ramayana
Valmiki Ramayana- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Valmiki Ramayana: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि कैकेयी और भरत के कारण मंथरा के प्राणों की रक्षा हो गई। इसके बाद, चौदहवें दिन प्रातःकाल समस्त राज कर्मचारी मिलकर भरत से बोले, जो हमारे सर्वश्रेष्ठ गुरु थे, वे महाराज दशरथ तो अपने ज्येष्ठ पुत्र श्रीराम तथा महाबली लक्ष्मण को वन में भेजकर स्वयं स्वर्गलोक को चले गये, अब इस राज्य का कोई स्वामी नहीं है, इसलिये अब आप ही हमारे राजा हों। आपके बड़े भाई को स्वयं महाराज ने वनवास की आज्ञा दी और आपको यह राज्य प्रदान किया। अतः, आपका राजा होना न्यायसङ्गत है। 
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यह सुनकर उत्तम व्रत को धारण करने वाले भरत ने अभिषेक के लिये रखी हुई कलश आदि सब सामग्री की प्रदक्षिणा की और वहाँ उपस्थित हुए सब लोगों को इस प्रकार उत्तर दिया। हमारे कुल में सदा ज्येष्ठ पुत्र ही राज्य का अधिकारी होता आया है और यही उचित भी है। श्री रामचन्द्रजी हम लोगों के बड़े भाई हैं, अतः वे ही राजा होंगे। उनके बदले मैं ही चौदह वर्षों तक वन में निवास करूँगा। 

भरत ने कैकेयी से बोली ये बड़ी बात

आप लोग विशाल चतुरङ्गिणी सेना, जो सब प्रकार से सबल हो, तैयार कीजिये। मैं अपने ज्येष्ठ भ्राता श्री रामचन्द्रजी को वन से लौटा लाऊँगा। अभिषेक के लिये संचित हुई इस सारी सामग्री को आगे करके मैं श्रीराम से मिलने के लिये वन में चलूँगा और उन नर श्रेष्ठ श्री रामचन्द्रजी का वहीं अभिषेक करके यज्ञ से लायी जाने वाली अग्नि के समान उन्हें आगे करके अयोध्या में ले आऊँगा। परंतु जिसमें लेश मात्र मातृभाव शेष है, अपनी माता कहलाने वाली इस कैकेयी को मैं कदापि सफल मनोरथ नहीं होने दूंगा। 
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भरत ने की प्रजा से मुलाकात

श्रीराम यहाँ के राजा होंगे और मैं दुर्गम वन में निवास करूँगा। कारीगर आगे जाकर रास्ता बनायें, ऊँची-नीची भूमि को बराबर करें तथा मार्ग में दुर्गम स्थानों की जानकारी रखने वाले रक्षक भी साथ-साथ चलें। श्री रामचन्द्रजी के लिये ऐसी बातें कहते हुए राजकुमार भरत से वहाँ आये हुए सब लोगों ने कहा, भरतजी ! ऐसे उत्तम वचन कहने वाले आपके पास कमलवन में निवास करने वाली लक्ष्मी अवस्थित हों क्योंकि आप राजा के ज्येष्ठ पुत्र श्री राम को स्वयं ही इस भूमि का राज्य लौटा देना चाहते हैं। उन लोगों का कहा हुआ वह परम उत्तम आशीर्वचन जब कान में पड़ा, तब उसे सुनकर राजकुमार भरत को बड़ी प्रसन्नता हुई। 

उन सबकी ओर देखकर भरत के मुखमण्डल में सुशोभित होने वाले नेत्रों से हर्षजनित आँसुओं की बूंदें गिरने लगीं। भरत के मुख से श्रीराम को ले आने की बात सुनकर उस सभा के सभी सदस्यों और मन्त्रियों सहित समस्त राज कर्मचारी हर्ष से खिल उठे। उनका सारा शोक दूर हो गया और वे भरत से बोले, नरश्रेष्ठ ! आपकी आज्ञा के अनुसार राजपरिवार के प्रति भक्तिभाव रखने वाले कारीगरों और रक्षकों को मार्ग ठीक करने के लिये भेज दिया गया है।
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