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Valmiki Ramayana Part 146: शत्रुघ्न ने मंथरा का वध क्यों नहीं किया? आखिर किसने की मंथरा की रक्षा

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: निधि Updated Mon, 03 Jun 2024 12:13 PM IST
सार

Valmiki Ramayana: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, राजा भरत ने अपने पिता का दाह कर्म संस्कार किया और द्वारपाल ने मंथरा को पकड़कर शत्रुघ्न के हवाले कर दिया।

Valmiki Ramayana
Valmiki Ramayana- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Valmiki Ramayana Part 146: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, राजा भरत ने अपने पिता का दाह कर्म संस्कार किया और द्वारपाल ने मंथरा को पकड़कर शत्रुघ्न के हवाले कर दिया। ऐसा उसने इसलिए किया क्योंकि सबको यही लगता था कि उसके भड़काने से ही राम को वनवास मिला। इसके बाद, द्वारपाल की बात पर विचार करके शत्रुघ्न का दुःख और बढ़ गया। 
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उन्होंने अपने कर्तव्य का निश्चय किया और अन्तःपुर में रहने वाले सब लोगों को सुनाकर इस प्रकार कहा, इस पापिनी ने मेरे भाइयों तथा पिता को जैसा दुःसह दुःख पहुँचाया है, अपने उस क्रूर कर्म का वैसा ही फल यह भी भोगे। ऐसा कहकर शत्रुघ्न ने सखियों से घिरी हुई कुब्जा को तुरंत ही बलपूर्वक पकड़ लिया। 

कुब्जा क्यों चीखी और चिल्लाने?

वह डर के मारे ऐसा चीखने-चिल्लाने लगी कि वह सारा महल गूंज उठा। फिर तो उसकी सारी सखियाँ अत्यन्त संतप्त हो उठीं और शत्रुघ्न को कुपित जानकर सब ओर भाग चलीं। उसकी सम्पूर्ण सखियों ने एक जगह एकत्र होकर आपस में सलाह की कि, जिस प्रकार इन्होंने बलपूर्वक कुब्जा को पकड़ा है, उससे जान पड़ता है, ये हम लोगों में से किसी को जीवित नहीं छोड़ेंगे। शत्रुओं का दमन करने वाले शत्रुघ्न रोष में भरकर कुब्जा को जमीन पर घसीटने लगे। उस समय वह जोर-जोर से चीत्कार कर रही थी। 
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शत्रुघ्न के कठोर वचन

जब मन्थरा घसीटी जा रही थी, उस समय उसके नाना प्रकार के विचित्र आभूषण टूट-टूटकर पृथ्वी पर इधर-उधर विखरे जाते थे। बलवान् नरश्रेष्ठ शत्रुघ्न जिस समय रोषपूर्वक मन्थरा को जोर से पकड़कर घसीट रहे थे, उस समय उसे छुड़ाने के लिये कैकेयी उनके पास आयी। तब उन्होंने उसे धिक्कारते हुए उसके प्रति बड़ी कठोर बातें कहीं-उसे रोषपूर्वक फटकारा। शत्रुघ्न के वे कठोर वचन बड़े ही दुःखदायी थे। उन्हें सुनकर कैकेयी को बहुत दुःख हुआ। वह शत्रुघ्न के भय से थर्रा उठी और अपने पुत्र की शरण में आयी। 

शत्रुघ्न को क्रोध में भरा हुआ देख भरत क्या बोले

शत्रुघ्न को क्रोध में भरा हुआ देख भरत ने उनसे कहा, क्षमा करो ! स्त्रियाँ सभी प्राणियों के लिये अवध्य होती हैं। यदि मुझे यह भय न होता कि धर्मात्मा श्रीराम मातृघाती समझकर मुझसे घृणा करने लगेंगे तो मैं भी इस दुष्ट आचरण करने वाली पापिनी कैकेयी को मार डालता। धर्मात्मा श्री रघुनाथजी तो इस कुब्जा के भी मारे जाने का समाचार यदि जान लें तो वे निश्चय ही तुमसे और मुझसे बोलना भी छोड़ देंगे। यह बात सुनकर लक्ष्मण के छोटे भाई शत्रुघ्न मन्थरा के वधरूपी दोष से निवृत्त हो गये और उसे मूर्च्छित अवस्था में ही छोड़ दिया। 

मन्थरा कैकेयी के चरणों में गिर पड़ी और लंबी साँस खींचती हुई अत्यन्त दुःख से आर्त हो करुण विलाप करने लगी। शत्रुघ्न के पटकने और घसीटने से आर्त एवं अचेत हुई कुब्जा को देखकर भरत की माता कैकेयी धीरे-धीरे उसे आश्वासन देने होश में लाने की चेष्टा करने लगी। उस समय कुब्जा पिंजड़ें में बँधी हुई क्रौञ्ची की भाँति कातर दृष्टि से उसकी ओर देख रही थी।
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