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Valmiki Ramayana Part 144: रानी कैकेयी को फटकारने लगे भरत ! वन जाकर राम ने ली प्रतिज्ञा

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: निधि Updated Fri, 31 May 2024 02:11 PM IST
सार

Valmiki Ramayana Part 144: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि रानी कैकेयी ने अपने पुत्र भरत को राम के वनवास की बात बताई और भरत से राजा बनने का आग्रह किया।

Valmiki Ramayana
Valmiki Ramayana- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Valmiki Ramayana Part 144: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि रानी कैकेयी ने अपने पुत्र भरत को राम के वनवास की बात बताई और भरत से राजा बनने का आग्रह किया। इसके बाद, पिता के परलोक वास और दोनों भाइयों के वनवास का समाचार सुनकर भरत दुःख से संतप्त हो उठे और उन्हें क्रोध आ गया। उन्होंने अपनी मां से क्रोध में कड़वे वचन कहे। उन्होंने कहा, तूने मुझे मार डाला। मैं पिता से सदा के लिये बिछुड़ गया और पितृतुल्य बड़े भाई से भी बिलग हो गया। अब तो मैं शोक में डूब रहा हूँ, मुझे यहाँ राज्य लेकर क्या करना है? तूने राजा को परलोकवासी तथा श्रीराम को तपस्वी बनाकर मुझे दुःख-पर-दुःख दिया है। घाव पर नमक सा छिड़क दिया है। 
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तू इस कुल का विनाश करने के लिये कालरात्रि बनकर आयी थी। मेरे पिता ने तुझे अपनी पत्नी क्या बनाया, दहकते हुए अङ्गार को हृदय से लगा लिया था, किंतु उस समय यह बात उनकी समझ में नहीं आयी थी। कुलकलङ्किनी ! तूने मेरे महाराज को काल के गाल में डाल दिया और मोहवश इस कुल का सुख सदा के लिये छीन लिया। तूने मेरे धर्मवत्सल पिता महाराज दशरथ का विनाश क्यों किया? मेरे बड़े भाई श्रीराम को क्यों घर से निकाला और वे भी क्यों गए? कौसल्या और सुमित्रा भी मेरी माता कहलाने वाली तुझ कैकेयी को पाकर पुत्रशोक से पीड़ित हो गयीं। अब उनका जीवित रहना अत्यन्त कठिन है। 

बड़े भैया श्रीराम धर्मात्मा हैं, गुरुजनों के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिये , इसे वे अच्छी तरह जानते हैं, इसलिये उनका अपनी माता के प्रति जैसा बर्ताव था, वैसा ही उत्तम व्यवहार वे तेरे साथ भी करते थे। श्रीराम किसी की बुराई नहीं देखते। वे शूरवीर, पवित्रात्मा और यशस्वी हैं। उन्हें चीर पहनाकर वनवास दे देने में तू कौन-सा लाभ देख रही है? यह राज्य का भार, जिसे किसी महाधुरंधर ने धारण किया था, मैं कैसे, किस बल से धारण कर सकताहूँ? जैसे कोई छोटा-सा बछड़ा बड़े-बड़े बैलों द्वारा ढोये जाने योग्य महान् भार को नहीं खींच सकता, उसी प्रकार यह राज्य का महान् भार मेरे लिये असह्य है। 
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यदि श्रीराम तुझे सदा अपनी माता के समान नहीं देखते होते तो तेरी-जैसी पापपूर्ण विचारवाली माता का त्याग करने में मुझे तनिक भी हिचक नहीं होती। राजकुमारों में जो ज्येष्ठ होता है, सदा उसी का राजा के पद पर अभिषेक किया जाता है। सभी राजाओं के यहाँ समान रूप से इस नियम का पालन होता है। इक्ष्वाकुवंशी नरेशों के कुल में इसका विशेष आदर है। तेरा विचार बडा ही पापपूर्ण है। मैं तेरी इच्छा कदापि नहीं पूर्ण करूँगा। तूने मेरे लिये उस विपत्ति की नींव डाल दी है, जो मेरे प्राण तक ले सकती है। 

मैं अभी तेरा अप्रिय करने के लिये तुल गया हूँ। मैं वन से निष्पाप भ्राता श्रीराम को, जो स्वजनों के प्रिय हैं, लौटा लाऊँगा। श्रीराम को लौटा लाकर उद्दीप्त तेज वाले उन्हीं महापुरुष का दास बनकर स्वस्थचित्त से जीवन व्यतीत करूँगा। ऐसा कहकर महात्मा भरत शोक से पीड़ित हो पुनः जली-कटी बातों से कैकेयी को व्यथित करते हुए उसे जोर-जोरसे फटकारने लगे, मानो मन्दराचल की गुहा में बैठा हुआ सिंह गरज रहा हो।
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