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Valmiki Ramayana Part 140: जिस राज्य में कोई राजा न हो उस राज्य की क्या दुर्दशा होती है? पढ़ें

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: निधि Updated Mon, 27 May 2024 03:50 PM IST
सार

Valmiki Ramayana Part 140: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि कैसे राजा दशरथ की मृत्यु के बाद रानी कौसल्या ने कैकेयी से बुरे और कड़वे वचन कहे।

Valmiki Ramayana
Valmiki Ramayana- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Valmiki Ramayana Part 140: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि कैसे राजा दशरथ की मृत्यु के बाद रानी कौसल्या ने कैकेयी से बुरे और कड़वे वचन कहे। झुंड-के-झुंड स्त्री और पुरुष एक साथ खड़े होकर भरत-माता कैकेयी की निन्दा करने लगे। अयोध्या में लोगों की वह रात रोते-कलपते ही बीती। उसमें आनन्द का नाम भी नहीं था। आँसुओं से सब लोगों के कण्ठ भरे हुए थे। दुःख के कारण वह रात सबको बड़ी लम्बी प्रतीत हुई थी। 
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जब रात बीत गयी और सूर्योदय हुआ, तब राज्य का प्रबन्ध करने वाले ब्राह्मण लोग एकत्र हो दरबार में आये मार्कण्डेय, मौद्गल्य, वामदेव, कश्यप, कात्यायन, गौतम और महायशस्वी जाबालि—ये सभी ब्राह्मण श्रेष्ठ राज पुरोहित वसिष्ठ जी के सामने बैठकर मन्त्रियों के साथ अपनी अलग-अलग राय देने लगे। इक्ष्वाकुवंशी राजकुमारों में से किसी को आज ही यहाँ का राजा बनाया जाय। क्योंकि राजा के बिना हमारे इस राज्य का नाश हो जायगा। 

जिस राज्य में कोई राजा न हो उस राज्य की क्या दुर्दशा होती है? 

जहाँ कोई राजा नहीं होता, ऐसे जनपद में विद्युन्मालाओं से अलंकृत महान् गर्जन करने वाला मेघ पृथ्वी पर दिव्य जल की वर्षा नहीं करता है। जिस जनपद में कोई राजा नहीं, वहाँ के खेतों में मुट्ठी-के-मुट्ठी बीज नहीं बिखेरे जाते। राजा से रहित देश में पुत्र पिता और स्त्री पति के वश में नहीं रहती। राजहीन देश में धन अपना नहीं होता है। बिना राजा के राज्य में पत्नी भी अपनी नहीं रह पाती है। राजा रहित देश में यह महान् भय बना रहता है, राजारहित जनपद में कदाचित् महायज्ञों का आरम्भ हो भी तो उनमें धनसम्पन्न ब्राह्मण भी ऋत्विजों को पर्याप्त दक्षिणा नहीं देते। 
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 प्रजा का क्या हाल?

बिना राजा के राज्य में वादी और प्रतिवादी के विवाद का संतोषजनक निपटारा नहीं हो पाता अथवा व्यापारियों को लाभ नहीं होता। कथा सुनने की इच्छा वाले लोग कथावाचक पौराणिकों की कथाओं से प्रसन्न नहीं होते। बिना राजा के राज्य में धनी लोग सुरक्षित नहीं रह पाते तथा कृषि और गोरक्षा से जीवन-निर्वाह करने वाले वैश्य भी दरवाजा खोलकर नहीं सो पाते हैं। 

जहाँ कोई राजा नहीं होता, उस जनपद में जहाँ संध्या हो वहीं डेरा डाल देने वाला, अपने अन्तःकरण के द्वारा परमात्मा का ध्यान करने वाला और अकेला ही विचरने वाला जितेन्द्रिय मुनि नहीं घूमता-फिरता है। जिस जनपद में कोई राजा नहीं होता है, वहां चन्दन और अगुरु का लेप लगाये हुए राजकुमार वसन्त-ऋतु के खिले हुए वृक्षों की भाँति शोभा नहीं पाते हैं। मार्कण्डेय आदि के ऐसे वचन सुनकर महर्षि वसिष्ठ ने उनको उत्तर देना शुरू किया।
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