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Valmiki Ramayana Part 139: कौसल्या ने क्यों कहे कैकेयी से कड़वे वचन? जानिए आगे क्या हुआ

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: निधि Updated Sat, 25 May 2024 04:32 PM IST
सार

Valmiki Ramayana Part 139: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि जैसे ही सबको राजा दशरथ की मृत्यु का समाचार प्राप्त हुआ महल में शोक व्याप्त हो गया।

Valmiki Ramayana Part 139
Valmiki Ramayana Part 139- फोटो : Valmiki Ramayana Part 139

विस्तार

Valmiki Ramayana Part 139: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि जैसे ही सबको राजा दशरथ की मृत्यु का समाचार प्राप्त हुआ महल में शोक व्याप्त हो गया। इसके बाद, बुझी हुई आग, जलहीन समुद्र तथा प्रभाहीन सूर्य की भाँति शोभाहीन हुए दिवङ्गत राजा का शव देखकर कौसल्या के नेत्रों में आँसू भर आये। वे अनेक प्रकार से शोकाकुल होकर राजा के मस्तक को गोद में ले कैकेयी से इस प्रकार बोलीं- दुराचारिणी क्रूर कैकेयी। ले, तेरी कामना सफल हुई। अब राजा को भी त्यागकर एकाग्रचित्त हो अपना अकण्टक राज्य भोग राम मुझे छोड़कर वन में चले गये और मेरे स्वामी स्वर्ग सिधारे। अब मैं दुर्गम मार्ग में साथियों से बिछुड़कर असहाय हुई अबला की भाँति जीवित नहीं रह सकती। नारीधर्म को त्याग देने वाली कैकेयी के सिवा संसार में दूसरी कौन ऐसी स्त्री होगी जो अपने लिये आराध्य देवस्वरूप पति का परित्याग करके जीना चाहेगी? 
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जैसे कोई धन का लोभी दूसरों को विष खिला देता है और उससे होने वाले हत्या के दोषों पर ध्यान नहीं देता, उसी प्रकार इस कैकेयी ने कुब्जा के कारण रघुवंशियों के इस कुल का नाश कर डाला। कैकेयी ने महाराज को अयोग्य कार्य में लगाकर उनके द्वारा पत्नी सहित श्रीराम को वनवास दिलवा दिया। यह समाचार जब राजा जनक सुनेंगे, तब मेरे ही समान उनको भी बड़ा कष्ट होगा। जो बूढ़े हो गये हैं, कन्याएँ मात्र ही जिनकी संतति हैं, वे राजा जनक भी सीता की ही बारम्बार चिन्ता करते हुए शोक में डूबकर अवश्य ही अपने प्राणों का परित्याग कर देंगे। मैं भी आज ही मृत्यु का वरण करूँगी। एक पतिव्रता की भाँति पति के शरीर का आलिङ्गन करके चिता की आग में प्रवेश कर जाऊँगी। 

पति के शरीर को हृदय से लगाकर अत्यन्त दुःख से आर्त हो करुण विलाप करती हुई तपस्विनी कौसल्या को राजकाज देखने वाले मन्त्रियों ने दूसरी स्त्रियों द्वारा वहाँ से हटवा दिया। फिर उन्होंने महाराज के शरीर को तेल से भरी हुई नाव में रखकर वसिष्ठ आदि की आज्ञा के अनुसार शव की रक्षा आदि अन्य सब राजकीय कार्यों की सँभाल आरम्भ कर दी। वे सर्वज्ञ मन्त्री पुत्र के बिना राजा का दाह-संस्कार न कर सके, इसलिये उनके शव की रक्षा करने लगे। महामना राजा दशरथ से हीन हुई वह अयोध्यापुरी नक्षत्रहीन रात्रि और पतिविहीना नारी की भाँति श्रीहीन हो गयी थी। राजा दशरथ शोकवश स्वर्ग सिधारे और उनकी रानियाँ शोक से ही भूतल पर लोटती रहीं। इस शोक में ही सहसा सूर्य की किरणों का प्रचार बंद हो गया और सूर्यदेव अस्त हो गये। तत्पश्चात् अन्धकार का प्रचार करती हुई रात्रि उपस्थित हुई। 
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सूर्य के बिना प्रभाहीन आकाश तथा नक्षत्रों के बिना शोभाहीन रात्रि की भाँति अयोध्यापुरी महात्मा राजा दशरथ से रहित हो श्रीहीन प्रतीत होती थी। उसकी सड़कों और चौराहों पर आँसुओं से अवरुद्ध कण्ठवाले मनुष्यों की भीड़ एकत्र हो गयी थी। झुंड-के-झुंड स्त्री और पुरुष एक साथ खड़े होकर भरत-माता कैकेयी की निन्दा करने लगे। उस समय महाराज की मृत्यु से अयोध्यापुरी में रहने वाले सभी लोग शोकाकुल हो रहे थे। कोई भी शान्ति नहीं पाता था।
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