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Valmiki Ramayana Part 137: पुत्र मोह में राजा दशरथ ने त्याग दिये थे प्राण! नगर वासी इस कारण से हुए बेहाल

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: निधि Updated Wed, 22 May 2024 06:27 PM IST
सार

Valmiki Ramayana Part 137: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि राजा दशरथ ने अपनी रानी को उस श्राप के बारे में बताया जो उन्हें एक मुनिकुमार के वृद्ध पिता ने दिया था

Valmiki Ramayana Part 137
Valmiki Ramayana Part 137- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Valmiki Ramayana Part 137: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि राजा दशरथ ने अपनी रानी को उस श्राप के बारे में बताया जो उन्हें एक मुनिकुमार के वृद्ध पिता ने दिया था और उसके बाद वो अपनी पत्नी के साथ उसी चिता में अपने शरीर का अंत कर लेते है जिस चिता में उनके बेटे को जलाया गया था। राजा दशरथ ने अब अपनी पत्नी से कहा, अपथ्य वस्तुओं के साथ अन्नरस ग्रहण कर लेने पर जैसे शरीर में रोग पैदा हो जाता है, उसी प्रकार यह उस पापकर्म का फल उपस्थित हुआ है। अतः कल्याणि ! उन उदार महात्मा का शापरूपी वचन इस समय मेरे पास फल देने के लिये आ गया है। 
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राजा दशरथ ने अपनी पत्नी से रोते हुए क्या कहा-

ऐसा कहकर वे भूपाल मृत्यु के भय से त्रस्त हो अपनी पत्नी से रोते हुए बोले, अब मैं पुत्र शोक से अपने प्राणों का त्याग करूँगा। इस समय मैं तुम्हें अपनी आँखों से देख नहीं पाता हूँ। तुम मेरा स्पर्श करो। यदि श्रीराम आकर एक बार मेरा स्पर्श करें अथवा यह धन-वैभव और युवराज पद स्वीकार कर लें तो मेरा विश्वास है कि मैं जी सकता हूँ। मैंने श्रीराम के साथ जो बर्ताव किया है, वह मेरे योग्य नहीं था, परंतु श्रीराम ने मेरे साथ जो व्यवहार किया है, वह सर्वथा उन्हीं के योग्य है। कौन बुद्धिमान् पुरुष इस भूतल पर अपने दुराचारी पुत्र का भी परित्याग कर सकता है? तथा कौन ऐसा पुत्र है, जिसे घर से निकाल दिया जाय और वह पिता को कोसे तक नहीं? 

राजा दशरथ ने की भगवान राम की प्रसन्ना

ये यमराज के दूत मुझे यहाँ से ले जाने के लिये उतावले हो उठे हैं।  इससे बढ़कर दुःख मेरे लिये और क्या हो सकता है कि मैं प्राणान्त के समय सत्यपराक्रमी धर्मज्ञ राम का दर्शन नहीं पा रहा ! वे मनुष्य नहीं देवता हैं, जो आपके पंद्रहवें वर्ष वन से लौटने पर श्रीराम का सुन्दर मनोहर कुण्डलों से अलंकृत मुख देखेंगे। कमल के समान नेत्र, सुन्दर भौहें, स्वच्छ दाँत और मनोहर नासिका से सुशोभित श्रीराम के चन्द्रोपम मुख का दर्शन करेंगे, वे धन्य हैं। कौसल्या और सुमित्रा के निकट शोकपूर्ण विलाप करते हुए राजा दशरथ के जीवन का अन्त हो गया। 
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राजा दशरथ के लिए लाई गई वस्तुएँ

प्रातःकाल राजाओं के मङ्गल के लिये जो-जो वस्तुएँ लायी जाती हैं, उनका नाम आभिहारिक है। वहाँ लायी गयी सारी आभिहारिक सामग्री समस्त शुभ लक्षणों से सम्पन्न, विधि के अनुरूप, आदर और प्रशंसा के योग्य उत्तम गुण से युक्त तथा शोभायमान थी। सूर्योदय होने तक राजा की सेवा के लिये उत्सुक हआ सारा परिजन वर्ग वहाँ आकर खड़ा हो गया। जब उस समय तक राजा बाहर नहीं निकले, तब सबके मन में यह शङ्का हो गयी कि महाराज के न आने का क्या कारण हो सकता है?
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