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Valmiki Ramayana Part 136: राजा दशरथ को आखिर पुत्र वियोग क्यों भोगना पड़ा? किसने दिया था राजा दशरथ को श्राप?

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: निधि Updated Tue, 14 May 2024 06:29 PM IST
सार

Valmiki Ramayana Part 136: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि राजा दशरथ से अनजाने में श्रवण कुमार का वध हो गया जिसके बाद वो उसके माता पिता के पास क्षमा याचना करने के लिए जाते है।

Valmiki Ramayana Part 136:
Valmiki Ramayana Part 136:- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Valmiki Ramayana Part 136: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि राजा दशरथ से अनजाने में श्रवण कुमार का वध हो गया जिसके बाद वो उसके माता पिता के पास क्षमा याचना करने के लिए जाते है। इसके बाद राजा दशरथ रानी को बताते है कि उनके विनती करने के बाद भी श्रवण कुमार के माता पिता ने उन्हें श्राप दे दिया। उनके मुख पर आँसुओं की धारा बह चली और वे शोक से मूर्च्छित होकर दीर्घ निःश्वास लेने लगे। मैं हाथ जोड़े उनके सामने खड़ा था। उस समय उन महातेजस्वी मुनि ने मुझसे कहा, यदि यह अपना पापकर्म तुम स्वयं यहाँ आकर न बताते तो शीघ्र ही तुम्हारे मस्तक के सैकड़ों-हजारों टुकड़े हो जाते। यदि क्षत्रिय जान-बूझकर विशेषतः किसी वानप्रस्थी का वध कर डाले तो वह वज्रधारी इन्द्र ही क्यों न हो, वह उसे अपने स्थानसे भ्रष्ट कर देता है।
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तपस्या में लगे हुए वैसे ब्रह्मवादी मुनि पर जानबूझकर शस्त्र का प्रहार करने वाले पुरुष के मस्तक के सात टुकड़े हो जाते हैं। तुमने अनजान में यह पाप किया है, इसीलिये अभी तक जीवित हो। यदि जान-बूझकर किया होता तो समस्त रघुवंशियों का कुल ही नष्ट हो जाता, अकेले तुम्हारी तो बात ही क्या है? इसके बाद उन्होंने उस स्थान को देखने की इच्छा की जहां उनके बेटे को मार दिया गया था। राजा ने पत्नी सहित मुनि को उनके पुत्र के शरीर का स्पर्श कराया। वे दोनों तपस्वी अपने उस पुत्र का स्पर्श करके उसके अत्यन्त निकट जाकर उसके शरीर पर गिर पड़े। तत्पश्चात् अपनी पत्नी के साथ वे पुत्र को जलाञ्जलि देने के कार्य में प्रवृत्त हुए। 

इसी समय वह धर्मज्ञ मुनिकुमार अपने पुण्यकर्मो के प्रभाव से दिव्य रूप धारण करके शीघ्र ही इन्द्र के साथ स्वर्ग को जाने लगा।  इन्द्र सहित उस तपस्वी ने अपने दोनों बूढ़े पिता माता को एक मुहूर्त तक आश्वासन देते हुए उनसे बातचीत की, फिर वह अपने पिता से बोला, मैं आप दोनों की सेवा से महान् स्थान को प्राप्त हुआ हूँ, अब आप लोग भी शीघ्र ही मेरे पास आ जाइयेगा। यह कहकर वह जितेन्द्रिय मुनि कुमार उस सुन्दर आकार वाले दिव्य विमान से शीघ्र ही देवलोक को चला गया। इसके बाद राजा दशरथ को श्राप दिया गया। मुनिकुमार श्रवण के पिता ने राजा को घोर कष्ट भोगने का श्राप दिया। उन्होंने कहा, इस समय पुत्र के वियोग से मुझे जैसा कष्ट हो रहा है, ऐसा ही तुम्हें भी होगा। तुम भी पुत्रशोक से ही काल के गाल में जाओगे। 
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क्षत्रिय होकर अनजान में तुमने वैश्यजातीय मुनि का वध किया है, इसलिये शीघ्र ही तुम्हें ब्रह्महत्या का पाप तो नहीं लगेगा तथापि जल्दी ही तुम्हें भी ऐसी ही भयानक और प्राण लेने वाली अवस्था प्राप्त होगी। ठीक उसी तरह, जैसे दक्षिणा देने वाले दाता को उसके अनुरूप फल प्राप्त होता है। राजा को श्राप देकर वो काफी समय तक विलाप करने लगे। फिर वे दोनों पति पत्नी अपने शरीरों को जलती हुई चिता में डालकर स्वर्ग को चले गये यानी कि उन्होंने भी अपने शरीर का तुरंत ही अंत कर दिया।
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