Valmiki Ramayana: वाल्मीकि रामायण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि सुमंत्र जी राम जी को वन में छोड़कर जब वापिस अयोध्या आते है तो देखते है कि राम के बिना पूरी नगरी सूनी हो गई है और सब और कोलाहल ही हो रहा है। वहीं महल में कौसल्या देवी बारंबार काँपने लगीं और अचेत-सी होकर पृथ्वी पर गिर पड़ीं। वो बोली, सुमन्त्र ! जहाँ श्रीराम हैं, जहाँ सीता और लक्ष्मण हैं, वहीं मुझे भी पहुँचा दो। मैं उनके बिना अब एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकती। मुझे भी दण्डकारण्य में ले चलो। यदि मैं उनके पास न जा सकी तो यमलोक की यात्रा करूँगी। देवी कौसल्या की बात सुनकर सारथि सुमन्त्र ने हाथ जोड़कर उन्हें समझाया। यह शोक, मोह और दुःखजनित व्याकुलता छोड़िये। श्रीरामचन्द्रजी इस समय सारा संताप भूलकर वन में निवास करते हैं। सीता का मन भगवान् श्रीराम में ही लगा हुआ है। इसलिये निर्जन वन में रहकर भी घर की ही भाँति प्रेम एवं प्रसन्नता पाती तथा निर्भय रहती हैं।
आप श्रीराम, लक्ष्मण अथवा सीता के लिये शोक न करें, अपने और महाराज के लिये भी चिन्ता छोड़ें। श्रीरामचन्द्रजी का यह पावन चरित्र संसार में सदा ही स्थिर रहेगा। सारथि सुमन्त्र ने पुत्रशोक से पीड़ित हुई कौसल्या को चिन्ता करने और रोने से रोका तो भी देवी कौसल्या विलाप से विरत न हुईं। वह राम, राम की रट लगाती हुई करुण क्रन्दन करती ही रहीं। प्रजाजनों को आनन्द प्रदान करने वाले पुरुषों में श्रेष्ठ धर्मपरायण श्रीराम के वन में चले जाने पर आर्त होकर रोती हुई कौसल्या ने अपने पति से कहा, आपने इस बात का विचार नहीं किया कि सुख में पले हुए आपके वे दोनों पुत्र सीता के साथ वनवास का कष्ट कैसे सहन करेंगे। वह सोलह-अठारह वर्षों की सुकुमारी तरुणी मिथिलेशकुमारी सीता, जो सुख भोगने के ही योग्य है, वन में सर्दी-गरमी का दुःख कैसे सहेगी?
जो इन्द्रध्वज के समान समस्त लोकों के लिये उत्सव प्रदान करने वाले थे, वे महाबली, महाबाहु श्रीराम अपनी परिघ-जैसी मोटी बाँह का तकिया लगाकर कहाँ सोते होंगे? समस्त लोक एक साथ होकर यदि महासमर में आ जायँ तो भी वे श्रीरामचन्द्रजी के मन में भय उत्पन्न नहीं कर सकते, तथापि इस तरह राज्य लेने में अधर्म मानकर उन्होंने इसपर अधिकार नहीं किया। जो धर्मात्मा समस्त जगत् को धर्म में लगाते हैं, वे स्वयं अधर्म कैसे कर सकते हैं? नारी के लिये एक सहारा उसका पति है, दूसरा उसका पुत्र है तथा तीसरा सहारा उसके पिता भाई आदि बन्धु-बान्धव हैं, चौथा कोई सहारा उसके लिये नहीं है। आपने श्रीराम को वन में भेजकर इस राष्ट्र का तथा आस-पास के अन्य राज्यों का भी नाश कर डाला, मन्त्रियों सहित सारी प्रजा का वध कर डाला। आपके द्वारा पुत्र सहित मैं भी मारी गयी और इस नगर के निवासी भी नष्टप्राय हो गये। केवल आपके पुत्र भरत और पत्नी कैकेयी दो ही प्रसन्न हुए हैं।
कौसल्या की यह कठोर शब्दों से युक्त वाणी सुनकर राजा दशरथ को बड़ा दुःख हुआ। वे ‘हा राम !’ कहकर मूर्च्छित हो गये। राजा शोक में डूब गये। फिर उसी समय उन्हें अपने एक पुराने दुष्कर्म का स्मरण हो आया, जिसके कारण उन्हें यह दुःख प्राप्त हुआ था॥