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Bhagavad Gita Part 143: इन 4 गुणों वाला व्यक्ति ही मृत्यु के समय कर सकता है भगवान को याद, जानिए

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: निधि Updated Thu, 30 May 2024 05:55 PM IST
सार

Bhagavad Gita Part 143: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते है कि अपने मन को ईश्वर में लगा देना आखिर क्यों ज़रूरी है?

Bhagavad Gita
Bhagavad Gita- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Bhagavad Gita Part 143: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते है कि अपने मन को ईश्वर में लगा देना आखिर क्यों ज़रूरी है? और ईश्वर किन कारणों से उत्तम है। 
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प्रयाणकाले मनसाचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव। भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक् स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ( अध्याय 8 श्लोक 10 )

प्रयाण-काले-मृत्यु के समय; मनसा-मन; अचलेन-दृढ़ः भक्त्या श्रद्धा भक्ति से स्मरण; युक्तः-एकीकृत कर; योग-बलेन-योग शक्ति के द्वारा; च-भी; एव-निश्चय ही; भ्रुवोः-दोनों भौहों के; मध्ये-मध्य में प्राणम्-प्राण को; आवेश्य-स्थित करना; सम्यक्-पूर्णतया; स:-वह; तम्-उसका; परम्-पुरुषोत्तम भगवान-दिव्य भगवान; उपैति-प्राप्त करता है। दिव्यम्-दिव्य स्वरूप के स्वामी, भगवान। 
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अर्थ - मृत्यु के समय जो मनुष्य योग के अभ्यास द्वारा स्थिर मन के साथ अपने प्राणों को भौहों के मध्य स्थित कर लेता है और दृढ़तापूर्वक पूर्ण भक्ति से दिव्य भगवान का स्मरण करता है वह निश्चित रूप से उन्हें पा लेता है। 

व्याख्या - इस श्लोक में 4 प्रमुख बातें है जिसका हमें ध्यान रखना चाहिए। पहला योग का अभ्यास, दूसरा स्थिर मन, तीसरा पूर्ण भक्त और चौथा दिव्य भगवान ! यह चारों शब्द बहुत महत्वपूर्ण है। इन्हे समझे बिना आप मृत्यु के समय ईश्वर का ध्यान नहीं कर सकते है। पहला ईश्वर करते है कि योग का अभ्यास जो कर्म योग और भक्ति योग दोनों प्रकार का हो सकता है। यह हम पिछले अध्यायों में समझ गए है। 

इसके बाद ईश्वर कहते है कि स्थिर मन के द्वारा ! यानी कि शरीर से कर्म करना होगा लेकिन तुम्हारा मन मुझमे होना चाहिए। संसार के भौतिक सुखों में अगर आपका मन जाता है तो उसे योग के अभ्यास के द्वारा ठीक करना होगा। तीसरी बात श्री कृष्ण कहते है कि दृढ़तापूर्वक पूर्ण भक्ति होनी चाहिए। जो भगवान् का भक्त हो जाता है उसकी ईश्वर में भक्ति और विश्वास आधा नहीं होता। वह इस संसार में हो रही प्रत्येक घटना को ईश्वर के आदेश के रूप में ही देखता है। इसलिए उसकी बुद्धि और कर्म दोनों शुद्ध होते है। 

इसके बाद ईश्वर का स्मरण करने की बात आती है ! ईश्वर का स्वरुप कैसा है? ईश्वर कौन है ? उसके पास क्या शक्तियां है? यह सब पिछले श्लोक में श्री कृष्ण समझा चुके है। जब किसी व्यक्ति के अंदर यह 4 गुण आते है तब जाकर उसकी बुद्धि उस स्तर पर शुद्ध हो जाती है जहां वो मरते समय भी ईश्वर को याद कर लेता है और जैसा की श्री कृष्ण कहते है कि अगर ऐसा कर पाए तो निश्चित उस व्यक्ति को परम शांति प्राप्त हो जाती है।
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