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Bhagavad Gita Part 148: वह कौन है जो इन असंख्य ब्रह्माण्डों के नष्ट हो जाने पर भी प्रभावित नहीं होता? जानिए

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: निधि Updated Fri, 07 Jun 2024 05:21 PM IST
सार

Bhagavadgita Part 148: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन को ब्रह्मा की आयु के बारे में समझाते है। इसके बाद श्री कृष्ण ने कहा, 
 

Bhagavad Gita
Bhagavad Gita- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Bhagavadgita Part 148: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन को ब्रह्मा की आयु के बारे में समझाते है। इसके बाद श्री कृष्ण ने कहा, 
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भूतग्रामः स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते। रात्र्यागमेऽवशः पार्थ प्रभवत्यहरागमे ( अध्याय 8 श्लोक 19 )

भूत-ग्रामः-असंख्य जीव; सः-ये; एव–निश्चय ही; अयम्-यह; भूत्वा बारम्बार जन्म लेना; प्रलीयते-विलीन हो जाता है; रात्रि-आगमे-रात्रि होने पर; अवशः-असहाय; पार्थ-पृथापुत्र, अर्जुनः प्रभवति-प्रकट होता है; अहः-दिन; आगमे-दिन के आरम्भ में।

अर्थ - ब्रह्मा के दिन के आगमन के साथ असंख्य जीव पुनः जन्म लेते हैं और ब्रह्माण्डीय रात्रि के आने पर अगले ब्रह्माण्डीय दिवस के आगमन पर स्वतः पुनः प्रकट होने के लिए विलीन हो जाते हैं। 
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व्याख्या - इस श्लोक में श्री कृष्ण समझा रहे है कि समय आने पर जीव प्रकट हो जाता है और समय के साथ ही जीव अप्रकट हो जाता है। जैसे ब्रह्मा का दिन जब होता है तो न जाने कितनी जीवात्मा जन्म लेती है और ब्रह्माण्डीय रात्रि के आने पर उसी ब्रह्माण्ड में सब विलीन हो जाता है ताकि फिर से उनका प्राकट्य हो जाए। ये सब चलता रहता है। सिर्फ पृथ्वी ही नहीं बल्कि पृथ्वी जैसे न जाने कितने असंख्य ऐसे ब्रह्माण्ड है जहां ये सब होता है। मनुष्य बुद्धि यह सब नहीं समझ पाती है। 

परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः। यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ( अध्याय 8 श्लोक 20 )

पर:-परे; तस्मात्-उसकी अपेक्षा; तु–लेकिन; भावा:-सृष्टि; अन्य:-दूसरी; अव्यक्त:-अव्यक्त; अव्यक्तात्-अव्यक्त की; सनातनः-शाश्वत; य–जो; सः-वह जो; सर्वेषु-समस्त; भूतेषु-जीवों में; नश्यत्सु-नष्ट होने पर; न कभी नहीं; विनश्यति–विनष्ट होती है।

अर्थ - परन्तु उस अव्यक्त ( ब्रह्मा जी के शरीर) से अन्य अनादि सर्वश्रेष्ठ भावरूप जो अव्यक्त है, उसका सम्पूर्ण प्राणियों के नष्ट होने पर भी नाश नहीं होता।

व्याख्या - इस श्लोक में श्री कृष्ण समझा रहे है कि उनका और उनके परम धाम का इस लौकिक संसार से कोई लेना देना नहीं है। हमारी पृथ्वी जैसे न जाने कितने असंख्य ब्रह्माण्ड इस गैलेक्सी में है लेकिन ईश्वर की सत्ता उन सबसे ऊपर है। ब्रह्म जी के शरीर से उसका कोई जुड़ाव नहीं है। वो सबसे ऊपर है। और सब कुछ नष्ट हो जाने के बाद भी वो आध्यात्मिक शरीर नष्ट नहीं हो सकता है। जब समस्त ब्रह्माण्डों का विनाश हो जाता है तब भी इसका विनाश नहीं होता ऐसी महान भगवान् की शक्ति होती है।
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