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Bhagwad Gita Part 147: भगवान ब्रह्मा का एक दिन पृथ्वी के कितने खरब वर्ष के बराबर है? जानिए यह रहस्य
जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: निधि Updated Thu, 06 Jun 2024 02:57 PM IST
सार
Bhagwad Gita Part 147: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, कृष्ण का धाम सबसे उत्तम धाम है। जो जीवात्मा उस धाम को प्राप्त करती है फिर उसका जन्म नहीं होता है।
Bhagwad Gita- फोटो : JEEVANJALI
विस्तार
Bhagwad Gita Part 147: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, कृष्ण का धाम सबसे उत्तम धाम है। जो जीवात्मा उस धाम को प्राप्त करती है फिर उसका जन्म नहीं होता है। इसके बाद भगवान कहते है,
सहस्त्र-एक हजार; युग-युग; पर्यन्तम्-तक; अहः-एक दिन; यत्-जो; ब्रह्मण ब्रह्मा का; विदु:-जानना; रात्रिम्-रात्रि; युग-युग; सहस्न्नान्ताम्-एक हजार युग समाप्त होने पर; ते–वे; अहः-रात्र-विद:-दिन और रात को जानने वाले; जना:-लोग। अर्थ - हजार चक्र के चार युग (महायुग) का ब्रह्म का (कल्प) एक दिन होता है और इतनी अवधि की उसकी एक रात्रि होती है। इसे वही बुद्धिमान समझ सकते हैं जो दिन और रात्रि की वास्तविकता को जानते हैं।
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व्याख्या - इस श्लोक में श्री कृष्ण, काल की गणना समझा रहे हैं। वो कहते है, स्वर्ग के देवताओं का एक वर्ष पृथ्वी लोक के 30 दिन 12 माह अर्थात 360 वर्षों के बराबर होता है। स्वर्ग के देवताओं के 12,000 वर्षों के बराबर का एक महायुग (चार युगों का चक्र) पृथ्वी लोक के 4 लाख 320 हजार वर्ष के समतुल्य है। ऐसे 1000 महायुग ब्रह्मा का एक दिन होता है। इसे 'कल्प' कहा जाता है और यह संसार में समय की सर्वोच्च ईकाई है। ब्रह्मा की रात्रि भी इसके बराबर है। इन गणनाओं के अनुसार ब्रह्मा की आयु 100 वर्ष की होती है। पृथ्वीलोक की गणना के अनुसार यह 311 खरब और 40 अरब वर्ष है। एक हजार महायुग का ब्रह्मा का एक दिन जो 4,320,000,000 वर्षों का एक कल्प है और इसी अवधि के समान ब्रह्मा की एक रात्रि है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो इसे समझ पाते हैं, वे दिन और रात्रि के सत्य को जान जाते हैं।
अव्यक्तात-अव्यक्त अवस्था से; व्यक्तयः-व्यक्तावस्थाः सर्वाः-सारेः प्रभवन्ति–प्रकट होते हैं; अहः-आगमे ब्रह्मा के दिन का शुभारम्भ; रात्रि-आगमे रात्रि होने पर; प्रलीयन्ते-लीन हो जाते हैं; तत्र-उसमें; एव-निश्चय ही; अव्यक्त-अप्रकट; अव्यक्त-संज्ञके-अव्यक्त कहा जाने वाला। अर्थ - ब्रह्मा के दिन के शुभारम्भ पर सभी जीव अव्यक्त अवस्था से व्यक्त होते हैं और रात्रि होने पर पुनः सभी जीव अव्यक्त अवस्था में लीन हो जाते हैं।
व्याख्या - यहां कृष्ण बता रहे है कि ब्रह्मा के जीवन के 100 वर्षों के अन्त में संपूर्ण ब्रह्माण्ड का संहार हो जाता है। प्रकृति भौतिक शक्ति माया का सूक्ष्म रूप है तब माया अपनी मौलिक अवस्था में महा विष्णु परमात्मा के शरीर में जाकर स्थित हो जाती है। इसे प्रकृति प्रलय और या महाप्रलय कहते हैं। हर समय जब महाविष्णु श्वास लेते हैं तब उनके शरीर के छिद्रों से असंख्य ब्रह्माण्ड प्रकट होते हैं और जब वे श्वास बाहर छोड़ते हैं तब सभी ब्रह्माण्डों का संहार हो जाता है। इस प्रकार से ब्रह्मा के 100 वर्षों का जीवन महाविष्णु की एक श्वास के बराबर है। प्रत्येक ब्रह्माण्ड का एक ब्रह्मा, विष्णु और शंकर होता है। इस प्रकार असंख्य ब्रह्माण्डों में असंख्य ब्रह्मा, विष्णु और शंकर हैं।