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Bhagwat Geeta Chapter 8 Verse 25 - 26: प्रकाश और अंधकार के दोनों पक्ष संसार को कैसे प्रभावित करते है ? समझिए

जीवांजलि धर्म डेस्क Published by: निधि Updated Tue, 11 Jun 2024 06:28 PM IST
सार

Bhagwat Geeta Chapter 8 Verse 25 - 26: भगवान् श्री कृष्ण समझा रहे है कि जिन लोगों की चेतना दिव्य हो जाती है वो भगवान के परम धाम को प्राप्त करते है लेकिन जिनकी बुद्धि भौतिक सुख सुविधाओं में रहती है।

Bhagavad Gita Part 151
Bhagavad Gita Part 151- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Bhagwat Geeta Chapter 8 Verse 25 - 26: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, जो ब्रह्मविद् साधक जन मरणोपरान्त अग्नि, ज्योति, दिन, शुक्ल पक्ष और उत्तरायण के छः मास वाले मार्ग से जाते हैं, वे ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। इसके बाद भगवान ने कहा
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भगवत गीता अध्याय 8 श्लोक 25 - Bhagwat Geeta Chapter 8 Verse 25

धूमो रात्रिस्तथा कृष्णः षण्मासा दक्षिणायनम्। तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते 

धूम:-धुआँ; रात्रि:-रात; तथा-और; कृष्ण:-चन्द्रमा का कृष्णपक्ष; षट्-मासा:-छह मास की अवधि; दक्षिण-अयणम्-जब सूर्य दक्षिण दिशा में रहता है; तत्र-वहाँ; चान्द्र-मसम् चन्द्रमा संबंधी; ज्योतिः-प्रकाश; योगी-योगी; प्राप्य–प्राप्त करके; निवर्तते वापस आता है।


अर्थ - धूम्र (अंधकार), रात्रि,कृष्ण पक्ष तथा दक्षिणायन के इष्ट देवता के मार्ग में जाने वाले योगी चन्द्रमा की ज्योति को प्राप्त होकर पुनः [मृत्यु लोक में] वापस जन्म लेता है। 
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व्याख्या - वे मनुष्य जो अंधकार, रात्रि, कृष्ण पक्ष और दक्षिणायन के देवताओं का अनुसरण करते हैं वह इस लोक में पुनः जन्म लेते हैं।  वे जिनकी चेतना भगवान में विकसित होती है और जो विषयासक्त कार्यों से विरक्त रहते हैं, वे प्रकाश अर्थात विवेक और ज्ञान के पथ का अनुसरण करते हुए दिवंगत होते हैं। क्योंकि वे भगवद्चेतना में स्थित हो जाते हैं इसलिए वे परमात्मा का धाम प्राप्त करते हैं और संसार के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। किन्तु जिनकी चेतना संसार में आसक्त होती है, वे अंधकार (अज्ञानता) के मार्ग का अनुसरण करते हुए दिवंगत होते है। 

भगवत गीता अध्याय 8 श्लोक 26 - Bhagwat Geeta Chapter 8 Verse 26

शुक्ल कृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते। एकया यात्यनावृत्तिम् अन्ययावर्तते पुन


शुक्ल-प्रकाश; कृष्णे-अंधकार; गती-मार्ग; हि-निश्चय ही; एते-ये दोनों; जगतः-भौतिक जगत् का; शाश्वते नित्य; मते–मत से; एकया-एक के द्वारा; याति–जाता है; अनावृत्तिम्-न लौटने के लिए; अन्यथा अन्य के द्वारा; आवर्तते-लौटकर आ जाता है; पुनः-फिर से। 

अर्थ - स्वर्ग के सुख भोगने के पश्चात वे पुनः धरती पर लौटकर आते हैं। प्रकाश और अंधकार के ये दोनों पक्ष संसार में सदा विद्यमान रहते हैं। प्रकाश का मार्ग मुक्ति की ओर तथा अंधकार का मार्ग पुनर्जन्म की ओर ले जाता है। 

व्याख्या - इस श्लोक में भगवान् श्री कृष्ण समझा रहे है कि जिन लोगों की चेतना दिव्य हो जाती है वो भगवान के परम धाम को प्राप्त करते है लेकिन जिनकी बुद्धि भौतिक सुख सुविधाओं में रहती है वो भले ही स्वर्ग के भी सुख भोग ले लेकिन उनको वापिस इस मृत्यु लोक में भी जन्म लेना पड़ता है।
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