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Bhagavad Gita Part 146: वह कौन सी आत्मा है जिसका पुनर्जन्म नहीं होगा? श्री कृष्ण ने समझाया

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: निधि Updated Mon, 03 Jun 2024 12:01 PM IST
सार

Bhagavad Gita Part 146: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते है कि कोई भी जीवात्मा ॐ का उच्चारण अगर अपने अंतिम समय में करती है तो उसे भगवान् की कृपा प्राप्त हो सकती है।

Bhagavad Gita
Bhagavad Gita- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Bhagavad Gita Part 146: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते है कि कोई भी जीवात्मा ॐ का उच्चारण अगर अपने अंतिम समय में करती है तो उसे भगवान् की कृपा प्राप्त हो सकती है। इसके बाद आगे भगवान् ने कहा,
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मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम्। नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः ( अध्याय 8 श्लोक 15 )

माम्-मुझे उपेत्य-प्राप्त करके; पुनः-फिर; जन्म-जन्म; दुःख-आलयम्-दुखों से भरे संसार में; आशाश्वतम्-अस्थायी; न कभी नहीं; आप्नुवन्ति–प्राप्त करते हैं; महा-आत्मानः-महान पुरूष; संसिद्धिम् पूर्णता को; परमाम्-परम; गताः-प्राप्त हुए।

अर्थ -  मुझे प्राप्त कर महान आत्माएँ फिर कभी इस संसार में पुनः जन्म नहीं लेतीं जो अनित्यऔर दुखों से भरा है क्योंकि वे पूर्ण सिद्धि प्राप्त कर चुकी होती हैं। 
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व्याख्या - कई बार लोग यह प्रश्न करते है कि अगर ईश्वर को प्राप्त कर लेंगे तो क्या हो जाएगा? प्रभु श्री कृष्ण इस श्लोक में इसी प्रश्न का उत्तर देते है। वो कहते है कि जो महान आत्मा होती है वो जब ईश्वर को प्राप्त करती है तो वह जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाती है। कृष्ण कहते है कि यह संसार तो दुःख का मूल है इसलिए सभी जीवात्माओं को इससे मुक्त होने का प्रयास करना चाहिए। अगर कोई जीवात्मा चाहे तो योग के अभ्यास के द्वारा वह पूर्ण सिद्धि प्राप्त कर ईश्वर को पा सकती है। 

आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन। मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ( अध्याय 8 श्लोक 16 )

आ-ब्रह्म-भुवनात्-ब्रह्मा के लोक तक; लोकाः-सारे लोक; पुनः-फिर; आवर्तिनः-पुर्नजन्म लेने वाले; अर्जुन-अर्जुन; माम्-मुझको; उपेत्य-पाकर; तु-लेकिन; कौन्तेय-कुन्तीपुत्र अर्जुनः पुनः जन्म-पुनर्जन्म; न कभी नहीं; विद्यते-होता है।

अर्थ - हे अर्जुन ! इस भौतिक सृष्टि के सभी लोकों में ब्रह्मा के उच्च लोक तक तुम्हें पुनर्जन्म प्राप्त होगा। हे कुन्ती पुत्र ! परन्तु मेरा धाम प्राप्त करने पर फिर आगे पुनर्जन्म नहीं होता। 

व्याख्या - इस पृथ्वी के ऊपर 7 लोक है और इस पृथ्वी के नीचे 7 लोक है। माना जाता है कि, ऊपर के लोग देवताओं के नीचे के लोक पतित लोगों के लिए है। इस श्लोक में कृष्ण समझाते है कि यहां भी उनकी माया का प्रभाव है। यहां भी कोई स्थायी राजा नहीं है और ना ही कोई स्थायी इंद्र है। कृष्ण कहते है कि जो आत्मा उनकी शरण में आती है वो इन सबसे उत्तम लोक को प्राप्त करती है। जब कोई जीवात्मा कृष्ण धाम को प्राप्त कर लेती है तो उसका कभी भी और कहीं भी किसी भी लोक में जन्म नहीं होता है।
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