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Vat Savitri Vrat 2024: जानिए वट सावित्री व्रत का महत्व, कथा और पूजा विधि

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: निधि Updated Mon, 27 May 2024 08:30 AM IST
सार

Vat Savitri 2024: हिन्दू पंचांग के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ महीने की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। इस साल यह तिथि 06 जून को पड़ रही है। इसलिए वट सावित्री व्रत 06 जून को रखा जाएगा।

Vat Savitri 2024:
Vat Savitri 2024:- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Vat Savitri 2024: वट सावित्री व्रत हिन्दू धार्मिक संस्कृति का एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए रखती हैं। मान्यता है कि वट सावित्री का व्रत महिलाएं सच्चे मन से करती हैं। उनके जीवनसाथी (पति) की उम्र बढ़ती है। सनातन संस्कृति में महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए व्रत रखती हैं। आइए जानते हैं वट सावित्री व्रत की तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत विधि और व्रत कथा।

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कब है वट सावित्री व्रत? (Vat Savitri 2024 Date)

हिन्दू पंचांग के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ महीने की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। इस साल यह तिथि 06 जून को पड़ रही है। इसलिए वट सावित्री व्रत 06 जून को रखा जाएगा।
 

वट सावित्री व्रत में होती है बरगद के पेड़ की विशेष पूजा

वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष का अधिक महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार सनातन संस्कृति में माना जाता है कि वट वृक्ष पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास होता है। इस दिन विवाहित महिलाएं वट वृक्ष पर जल चढ़ाती हैं और उस पर कुमकुम अक्षत लगाती हैं। पेड़े में रोली लपेटी जाती है. वट वृक्ष की विधि-विधान से पूजा की जाती है। ऐसा करने से उन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

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ऐसे रखा जाता है वट सावित्री व्रत

महिलाओं के द्वारा वट सावित्री व्रत त्रयोदशी से तिथि से ही प्रारंभ हो जाता है। हालांकि कुछ महिलाएं केवल अमावस्या के दिन ही यह व्रत करती हैं। इस दिन वट वृक्ष की पूजा के साथ-साथ सावित्री सत्यवान की पौराणिक कथा को भी सुना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, कहा जाता है कि सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे ही अपने मृत पति सत्यवान को जीवित किया था। इसलिए इस व्रत का नाम वट सावित्री पड़ा।

वट सावित्री व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, अश्वपति नाम का एक राजा था। सावित्री ने राजा के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। जब वह विवाह योग्य हो गई तो राजा ने उसके लिए पति चुनने के लिए अपने मंत्री के साथ सावित्री को भेजा। सावित्री ने सत्यवान को अपनी पसंद का वर चुना। सत्यवान राजा द्युमत्सेन का पुत्र था, जिसका राज्य छीन लिया गया था, जो अंधा हो गया था और अपनी पत्नी के साथ जंगलों में रहता था।

जब सावित्री विवाह के बाद लौटी तो नारद जी ने अश्वपति को बधाई दी। नारदमुनि ने यह भी भविष्यवाणी की थी कि सत्यवान की आयु अल्प होगी। वह जल्द ही मर जायेगा. नारदजी की बातें सुनकर राजा अश्वपति का चेहरा पीला पड़ गया। उन्होंने सावित्री को किसी और को अपना पति चुनने की सलाह दी, लेकिन सावित्री ने जवाब दिया कि एक आर्य कन्या होने के नाते, चूँकि मैंने सत्यवान को चुना है, अब चाहे वह कम या लंबी उम्र तक जीवित रहे, मैं किसी और को अपने दिल में जगह नहीं दूंगी। दे सकते हो।
 
सावित्री ने नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय जान लिया। नारदजी द्वारा बताए गए दिन से तीन दिन पहले ही सावित्री ने व्रत करना शुरू कर दिया. नारदजी द्वारा निश्चित की गई तिथि पर जब सत्यवान जंगल में लकड़ी काटने गया तो वह भी अपने सास-ससुर से अनुमति लेकर सत्यवान के साथ चली गई। सत्यवान जंगल में पहुंचा और लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गया। पेड़ पर चढ़ने के बाद उसके सिर में तेज़ दर्द होने लगा। वह नीचे आ गया. सावित्री ने उसे बरगद के पेड़ के नीचे लिटा दिया और उसका सिर अपनी जांघ पर रख लिया। 

कुछ ही समय में यमराज ने ब्रह्माजी के विधान की रूपरेखा सावित्री को समझायी और सत्यवान के प्राण लेकर चले गये। 'कहीं-कहीं यह भी उल्लेख मिलता है कि बरगद के पेड़ के नीचे लेटे हुए सत्यवान को साँप ने काट लिया था।' सावित्री ने सत्यवान को वट वृक्ष के नीचे लिटा दिया और यमराज के पीछे चल दी। यमराज ने पीछे चल रही सावित्री को वापस जाने का आदेश दिया। इस पर वह बोली, महाराज, जहां पति है, वहां पत्नी है। यही धर्म है, यही मर्यादा है.
 
सावित्री की धर्म निष्ठा से प्रसन्न होकर यमराज ने कहा कि वह अपने पति के प्राणों के अलावा कुछ भी मांग सकती है। सावित्री ने यमराज से अपने सास-ससुर की आंखों की रोशनी और लंबी उम्र की कामना की. यमराज तथास्तु कहकर आगे बढ़ गये। सावित्री यमराज का पीछा करती रही. जब यमराज ने अपने पीछे चल रही सावित्री से वापस लौटने को कहा तो सावित्री ने कहा कि पति के बिना स्त्री के जीवन का कोई अर्थ नहीं है। सावित्री के पति व्रत और धर्म से प्रसन्न होकर यमराज ने उनसे फिर से वरदान मांगने को कहा। इस बार उसने अपने ससुर का राज्य वापस दिलाने की प्रार्थना की। 

यमराज तथास्तु कहकर आगे बढ़ गये। सावित्री फिर भी यमराज के पीछे-पीछे चलती रही। इस बार सावित्री ने यमराज से सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान मांगा। तथास्तु कहकर यमराज आगे बढ़े तो सावित्री ने कहा, आपने मुझे सौ पुत्रों का आशीर्वाद दिया है, परंतु मैं पति के बिना मां कैसे बन सकती हूं। अपना यह तीसरा वरदान पूरा करो।
 
यमराज ने सावित्री की भक्ति, ज्ञान, विवेक और पति भक्ति के बारे में जानकर सत्यवान के प्राण को अपने पाश से मुक्त कर दिया। सावित्री सत्यवान के प्राण लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुंची जहां सत्यवान का शव रखा हुआ था। जब सावित्री ने वट वृक्ष की परिक्रमा की तो सत्यवान जीवित हो गये। खुश होकर जब सावित्री अपने सास-ससुर के पास पहुंची तो उसकी आंखों की रोशनी वापस आ गई।
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