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Vat Savitri Vrat 2024: आज है वट सावित्री व्रत के दिन जरूर पढ़ें ये कथा

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: कोमल Updated Thu, 06 Jun 2024 10:14 AM IST
सार

Vat Savitri Vrat 2024: पंचांग के अनुसार इस साल ज्येष्ठ अमावस्या 6 जून 2024 को है और इसी दिन वट सावित्री व्रत भी रखा जाएगा। इस व्रत का विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व माना जाता है 

वट सावित्री व्रत 2024:
वट सावित्री व्रत 2024:- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Vat Savitri Vrat 2024: पंचांग के अनुसार इस साल ज्येष्ठ अमावस्या 6 जून 2024 को है और इसी दिन वट सावित्री व्रत भी रखा जाएगा। इस व्रत का विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व माना जाता है क्योंकि यह व्रत न केवल अखंड सौभाग्य की कामना से किया जाता है, बल्कि वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि भी प्रदान करता है। इस दिन विवाहित महिलाएं वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। पूजा के दौरान व्रत कथा पढ़ना भी अनिवार्य माना जाता है क्योंकि इसके बिना व्रत अधूरा माना जाता है।
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वट सावित्री व्रत की कथा - Vat Savitri vrat katha

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वट सावित्री व्रत रखने से पति की आयु लंबी होती है और परिवार में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है। इतना ही नहीं, सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य का वरदान भी मिलता है। मान्यता है कि मद्र देश में अश्वपति नाम के एक धर्मपरायण राजा राज करते थे और उनकी कोई संतान नहीं थी। राजा ने संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ किया। जिसके शुभ फल के बाद उनके घर एक कन्या का जन्म हुआ। इस कन्या का नाम सावित्री रखा गया। समय के साथ जब सावित्री बड़ी हुई और विवाह के योग्य हुई तो उसने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पति के रूप में चुना। आपको बता दें, सत्यवान के पिता भी राजा थे। लेकिन उन्होंने अपना राजपाट खो दिया था। जिसके कारण वो गरीबी में अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। सत्यवान के माता-पिता की भी आंखों की रोशनी चली गई थी और वो जंगल से लकड़ियां काटकर अपना गुजारा कर रहे थे। तभी सावित्री और सत्यवान के विवाह की बात चली। तब नारद मुनि ने सावित्री के पिता राजा अश्वपति से कहा कि सत्यवान की आयु अल्पायु है और विवाह के एक वर्ष के भीतर ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। नारद मुनि की यह बात सुनकर सावित्री के पिता ने उसे समझाने का बहुत प्रयास किया। लेकिन वह नहीं मानी। अंत में सावित्री का विवाह सत्यवान से हुआ।

यमराज सत्यवान को लेकर जानें लगे  

विवाह के बाद सावित्री अपने ससुराल और पति की सेवा करने लगी। फिर एक दिन वह समय आ गया। जिसका जिक्र नारद मुनि ने सावित्री के पिता से किया था। कि सत्यवान की मृत्यु हो जाएगी। उसी दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ वन में चली गई। जैसे ही सत्यवान लकड़ी काटने के लिए वन में एक पेड़ पर चढ़ने लगा, उसके सिर में अचानक दर्द होने लगा। कुछ देर बाद वह सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गया। कुछ देर बाद यमराज दूतों के साथ उनके पास आए। यमराज सत्यवान की आत्मा को लेकर दक्षिण दिशा की ओर जाने लगे। पतिव्रता सावित्री भी उनके पीछे चलने लगी। आगे जाकर यमराज ने सावित्री से कहा, हे पतिव्रता नारी, तुमने अपने पति का यथासंभव साथ दिया है। अब तुम जाओ। इस पर सावित्री ने कहा कि जहां मेरे पति जाएंगे, मैं भी वहीं जाऊंगी। यह सत्य है।
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सावित्री की बात सुनकर यमराज हुए प्रसन्न

सावित्री की यह बात सुनकर यमराज प्रसन्न हुए और उससे तीन वरदान मांगने को कहा। यमराज की बातें सुनकर सावित्री ने उत्तर दिया कि मेरे सास-ससुर अंधे हैं, उनकी आंखों की रोशनी लौटा दीजिए। तब यमराज ने तथास्तु कहकर उसे जाने को कहा। लेकिन सावित्री यमराज के पीछे-पीछे चलती रही। तब यमराज पुनः प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा, तब सावित्री ने वरदान मांगा कि मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य पुनः मिल जाए। इसके बाद सावित्री ने वरदान मांगा कि मैं सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनना चाहती हूं। सावित्री की पतिव्रता भक्ति देखकर यमराज अत्यंत प्रसन्न हुए और तथास्तु कहकर कहा। जिसके बाद सावित्री ने कहा कि आप मेरे पति के प्राण ले रहे हैं, फिर आपके पुत्र जन्म का वरदान कैसे पूरा होगा। तब यमदेव ने अंतिम वरदान देकर सत्यवान को पाश से मुक्त कर दिया। सावित्री वापस उस वट वृक्ष के पास पहुंची जहां सत्यवान का मृत शरीर पड़ा था। कुछ देर बाद सत्यवान उठकर बैठ गए। दूसरी ओर सत्यवान के माता-पिता की आंखों की रोशनी वापस आ गई और साथ ही उन्हें उनका खोया हुआ राज्य भी वापस मिल गया।

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