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Rudraksh: कैसे हुई रूद्राक्ष की उत्पत्ति जानिए पौराणिक कथा

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: कोमल Updated Thu, 23 May 2024 03:02 PM IST
सार

Rudraksh:सनातन धर्म में रुद्राक्ष को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। रुद्राक्ष भगवान शिव को प्रिय है। धार्मिक मान्यता है कि रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति को सदैव महादेव की कृपा प्राप्त होती है।

रुद्राक्ष
रुद्राक्ष- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Rudraksh:सनातन धर्म में रुद्राक्ष को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। रुद्राक्ष भगवान शिव को प्रिय है। धार्मिक मान्यता है कि रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति को सदैव महादेव की कृपा प्राप्त होती है। 1 से 14 मुखी रुद्राक्ष का अपना ही महत्व है। रुद्राक्ष की उत्पत्ति के संबंध में कई पौराणिक कहानियाँ हैं। आइए जानते हैं रुद्राक्ष की उत्पत्ति कैसे हुई।

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रुद्राक्ष का नाम कैसे पड़ा?

रुद्राक्ष का अर्थ है - रुद्र की धुरी। रुद्राक्ष दो शब्दों "रुद्र" और "अक्ष" से मिलकर बना है। जिसमें रुद्र का अर्थ है "शिव" और अक्ष का अर्थ है "भगवान शिव की आंखें"। रुद्राक्ष की उत्पत्ति की कहानी भगवान शिव से संबंधित है। ऐसा माना जाता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई है। इसलिए इसका नाम रुद्राक्ष पड़ा।

जानिए रुद्राक्ष की पौराणिक कथा

देवी भागवत पुराण के अनुसार त्रिपुरासुर नाम के राक्षस को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था जिसके कारण उसने देवताओं को पीड़ा देना शुरू कर दिया। त्रिपुरासुर के सामने कोई भी देवता या ऋषि-मुनि टिक नहीं सका। परेशान होकर ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवता त्रिपुरासुर के आतंक को समाप्त करने की प्रार्थना लेकर भगवान शिव के पास गए। जब महादेव ने देवताओं की यह प्रार्थना सुनी तो उन्होंने योग मुद्रा में अपनी आंखें बंद कर लीं। कुछ देर बाद जब भगवान शिव ने अपनी आंखें खोलीं तो उनकी आंखों से आंसू पृथ्वी पर गिर पड़े। ऐसा माना जाता है कि जहां-जहां भगवान शिव के आंसू गिरे, वहां-वहां रुद्राक्ष के पेड़ उग आए। रुद्राक्ष का अर्थ है शिव की विनाशकारी तीसरी आंख। इसलिए इन पेड़ों पर उगने वाले फलों को 'रुद्राक्ष' कहा जाता था। इसके बाद भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर को अपने त्रिशूल से मार डाला और पृथ्वी और संसार को उसके अत्याचार से मुक्त कराया। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार जब माता सती ने हवनकुंड में कूदकर आत्महत्या कर ली थी तो महादेव व्याकुल हो गये थे और उनके जले हुए शरीर को लेकर तीनों लोकों में विलाप करते हुए भटक रहे थे। कहा जाता है कि भगवान शिव के विलाप से जहां-जहां भगवान शिव के आंसू गिरे, वहां-वहां रुद्राक्ष के पेड़ पैदा हो गए।
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दूसरी कहानी क्या है?

एक अन्य कथा के अनुसार माता सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के हवन कुंड में कूदकर आत्महत्या कर ली थी। तब महादेव व्याकुल हो गये और अपने जले हुए शरीर के कारण विलाप करते हुए तीनों लोकों में घूमते रहे। कहा जाता है कि शिव के विलाप के कारण जहां-जहां भगवान शिव के आंसू गिरे, वहां-वहां रुद्राक्ष के पेड़ उग आए।

रुद्राक्ष धारण करने के नियम

रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
कभी भी किसी दूसरे का पहना हुआ रुद्राक्ष न पहनें और न ही अपना रुद्राक्ष किसी और को दें।
रुद्राक्ष की माला बनाते समय इस बात का ध्यान रखें कि उसमें कम से कम 27 दाने होने चाहिए।
रुद्राक्ष को कभी भी गंदे हाथों से न छुएं। स्नान करने के बाद ही रुद्राक्ष धारण करें।
रुद्राक्ष को हमेशा लाल या पीले धागे में ही पहनें। इसे कभी भी काले धागे के साथ न पहनें।
यदि आपने रुद्राक्ष धारण किया है तो तामसिक भोजन का सेवन न करें। ऐसा करने से आपको ही नुकसान होगा.


 
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