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Rohini Vrat 2024: जून महीने में कब मनाया जाएगा रोहिणी व्रत, जानिए तिथि और पूजा विधि

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: कोमल Updated Mon, 03 Jun 2024 05:06 AM IST
सार

Rohini Vrat 2024: रोहिणी व्रत जैन समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। रोहिणी व्रत उस दिन मनाया जाता है जिस दिन सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र होता है। इस बार यह 06 जून को मनाया जाएगा।

रोहिणी व्रत 2024
रोहिणी व्रत 2024- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Rohini Vrat 2024: रोहिणी व्रत जैन समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। रोहिणी व्रत उस दिन मनाया जाता है जिस दिन सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र होता है। इस बार यह 06 जून को मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस व्रत को करने से पति को लंबी आयु का वरदान मिलता है और जीवन में सभी तरह के सुख प्राप्त होते हैं। आइए जानते हैं रोहिणी व्रत पर भगवान वासुपूज्य की पूजा कैसे करें?
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रोहिणी व्रत पूजा विधि

- रोहिणी व्रत के दिन सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनें।

- इसके बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें।

- इस दौरान सच्चे मन से 'ॐ सूर्याय नमः' मंत्र का जाप करें।

- चौकी पर साफ कपड़ा बिछाएं और उस पर भगवान वासुपूज्य की मूर्ति रखें।

- इसके बाद भगवान वासुपूज्य को फल, फूल आदि अर्पित करें।

- इस व्रत में रात में भोजन करना वर्जित है।

- ऐसे में सूर्यास्त से पहले आरती करें और फल खाएं। - मान्यता है कि इस दिन श्रद्धानुसार विशेष चीजों का दान करना लाभकारी होता है।


रोहिणी व्रत की कथा

आपको बता दें कि प्राचीन काल में माधव नाम का एक राजा था जो अपनी पत्नी लक्ष्मीपति के साथ राज करता था। उसकी एक पुत्री रोहिणी थी, जिसके विवाह को लेकर वह बहुत चिंतित रहता था। एक दिन उसने एक ज्योतिषी को बुलाकर अपनी पुत्री रोहिणी के विवाह के बारे में पूछा तो ज्योतिषी ने बताया कि उसका विवाह हस्तिनापुर के राजा अशोक से होना है। उसकी सलाह मानकर राजा ने अपनी पुत्री का विवाह अशोक से कर दिया। इसके बाद दोनों हस्तिनापुर में राज करने लगे।

एक दिन चारण मुनि उनके वन में आते हैं। राजा और रानी उनके पास जाते हैं। तब राजा ने मुनि से पूछा, मुनि मेरी रानी इतनी शांत क्यों रहती है। इस पर मुनि ने रानी के पूर्व जन्म की कथा बताई। हस्तिनापुर में ही वस्तुपाल नाम का राजा राज करता था। उसके प्रिय मित्र धनमित्र की दुर्गंधा नाम की एक पुत्री थी, जिसके शरीर से इतनी दुर्गंध आती थी कि कोई भी उससे विवाह करने को तैयार नहीं था। ऐसे में धनमित्र ने उसे धन का लालच देकर वस्तुपाल के पुत्र से उसका विवाह करवा दिया। लेकिन वस्तुपाल के पुत्र को उसकी दुर्गंध बर्दाश्त नहीं हुई और एक महीने में ही वह उसे छोड़कर चला गया।
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इसके बाद दुर्गा और उसके पिता को कोई दूसरा रास्ता नहीं सूझा, तभी अमृतसेन मुनि राज वहां आए। तब उसने अपनी पूरी कहानी ऋषि को बताई, जिसके बाद ऋषि ने बताया कि वह पिछले जन्म में गिरनार के राजा की रानी थी। एक बार जब वे दोनों जंगल में घूम रहे थे, तब ऋषि उनके सामने आए। तब ऋषि ने रानी से उनके लिए भोजन बनाने को कहा। लेकिन रानी ने गुस्से में भोजन बहुत कड़वा बना दिया। जिसे खाने के बाद ऋषि की मृत्यु हो गई।

इस पाप के कारण रानी को राज्य से निकाल दिया गया। फिर रानी को कोढ़ हो गया और कष्ट सहने के बाद वह भी मर गई। इसके बाद उसने फिर से पशु योनि में दुर्गंधा के रूप में जन्म लिया। इस पर धनमित्र ने ऋषि से पूछा कि इस पाप से मुक्ति कैसे मिले? तो ऋषि ने उसे रोहिणी व्रत का महत्व बताया। इसके बाद दुर्गंधा ने विधि-विधान से इस व्रत का पालन किया जिससे उसके सभी पाप धुल गए और वह स्वर्ग चली गई। इसके बाद उसने रोहिणी के रूप में जन्म लिया।


 

वासुपूज्य भगवान की आरती

ॐ जय वासुपूज्य स्वामी, प्रभु जय वासुपूज्य स्वामी।

पंचकल्याणक अधिपति स्वामी, तुम अन्तर्यामी ।।

चंपापुर नगरी भी स्वामी, धन्य हुई तुमसे।

जयरामा वसुपूज्य तुम्हारे स्वामी, मात पिता हरषे ।।

बालब्रह्मचारी बन स्वामी, महाव्रत को धारा।

प्रथम बालयति जग ने स्वामी, तुमको स्वीकारा ।।

गर्भ जन्म तप एवं स्वामी, केवल ज्ञान लिया।

चम्पापुर में तुमने स्वामी, पद निर्वाण लिया ।।

वासवगण से पूजित स्वामी, वासुपूज्य जिनवर।

बारहवें तीर्थंकर स्वामी, है तुम नाम अमर ।।

जो कोई तुमको सुमिरे प्रभु जी, सुख सम्पति पावे।

पूजन वंदन करके स्वामी, वंदित हो जावे ।।

ॐ जय वासुपूज्य स्वामी, प्रभु जय वासुपूज्य स्वामी।

पंचकल्याणक अधिपति स्वामी, तुम अन्तर्यामी ।।  
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