जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: कोमल Updated Sun, 19 May 2024 05:52 PM IST
सार
Narad Jayanti 2024: नारद जयंती हर साल ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन नारद जी का जन्म हुआ था। इसीलिए इस दिन को नारद जयंती के रूप में मनाया जाता है।
नारद जयंती- फोटो : jeevanjali
विस्तार
Narad Jayanti 2024: नारद जयंती हर साल ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन नारद जी का जन्म हुआ था। इसीलिए इस दिन को नारद जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस बार नारद जयंती 24 मई 2024 को है। इस शुभ अवसर पर नारद जी की पूजा की जाती है। नारद जी को प्रथम पत्रकार भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने ही तीनों लोकों में सूचनाएं पहुंचाने का काम शुरू किया था। आइए जानते हैं नारद जयंती का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व क्या है।
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नारद जयंती 2024 डेट और शुभ मुहूर्त
हर साल ज्येष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को नारद जयंती मनाई जाती है, जो इस बार 24 मई 2024 को मनाई जाएगी. इसकी शुरुआत 23 मई को शाम 7:22 पर होगी, वहीं इसका समापन 24 मई को शाम 7:24 पर होगा, यानी कि उदया तिथि के अनुसार 24 मई को ही नारद जयंती मनाई जाएगी. कहते हैं इसी दिन नारद जी का जन्म हुआ था.
नारद जयंती पूजा विधि
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नारद जयंती के दिन सुबह उठकर देवी-देवताओं का ध्यान करके अपने दिन की शुरुआत करें।
स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनें और मंदिर की सफाई करें।
अब एक चौकी पर कपड़ा बिछाकर नारद जी की मूर्ति रखें.
इसके बाद दीपक जलाकर आरती करें और भगवान से प्रार्थना करें।
भगवान को फल और मिठाई का भोग लगाएं.
इस दिन विशेष वस्तुओं का दान करना शुभ माना जाता है।
भगवत गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, मैं ऋषियों में देवर्षि नारद हूं। इसलिए नारद जी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
नारद जयंती महत्व
धार्मिक मान्यता है कि नारद जयंती के दिन भगवान नारद जी की पूजा करने से जातक को बल, बुद्धि और शुद्धता प्राप्त होती है। इस शुभ मौके पर भगवान कृष्ण के मंदिर में उनको बांसुरी अर्पित करनी चाहिए। इससे साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
नारद जी की जन्म कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब इस सृष्टि का कोई आधार नहीं था, तब एक समय था जब गंधर्व और अप्सराएं भगवान ब्रह्मा की पूजा कर रहे थे। उसी समय एक गंधर्व जिसका नाम 'उपबर्हण' था, अप्सराओं के साथ शृंगार करके प्रकट हुआ। यह देखकर भगवान ब्रह्मा अत्यंत क्रोधित हो गए और क्रोधवश उन्होंने 'उपबर्हण' को शूद्र के रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया।
ब्रह्मा जी के श्राप के कारण 'उपबर्हण' का जन्म एक 'शूद्र दासी' के घर में हुआ। इसके बाद 'उपबर्हण' ने भगवान की घोर तपस्या की, जिसके परिणामस्वरूप एक दिन उन्हें भगवान के दर्शन हुए। इससे ईश्वर और सत्य को जानने की उनकी इच्छा और भी प्रबल हो गई। उसी समय आकाशवाणी हुई- हे बालक, इस जन्म में तुम मुझे नहीं देख पाओगे, लेकिन अगले जन्म में तुम मेरे सलाहकार बनोगे, इसके बाद 'उपबर्हण' ने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की, जिसके परिणामस्वरूप ब्रह्मा जी के मानसिक पुत्र की मृत्यु हो गई। नारद जी रूप में अवतरित हुए।