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Masik Durgashtami 2024: मासिक दुर्गाष्टमी पर जरूर करें इस चालीसा का पाठ मिलेगा बहुत लाभ

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: कोमल Updated Sun, 12 May 2024 03:53 PM IST
सार

Masik Durgashtami 2024: मासिक दुर्गाष्टमी का त्यौहार बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन मां दुर्गा की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। हर माह पड़ने वाली मासिक दुर्गाष्टमी का विशेष महत्व है। 

मासिक दुर्गाष्टमी
मासिक दुर्गाष्टमी- फोटो : jeevanjali

विस्तार


Masik Durgashtami 2024: मासिक दुर्गाष्टमी का त्यौहार बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन मां दुर्गा की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। हर माह पड़ने वाली मासिक दुर्गाष्टमी का विशेष महत्व है। मासिक दुर्गाष्टमी का त्योहार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार वैशाख माह में मासिक दुर्गाष्टमी 15 मई को है। धार्मिक मान्यता है कि मासिक दुर्गाष्टमी के दिन मां दुर्गा की पूजा करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में खुशियां आती हैं. ऐसे में आप मासिक दुर्गाष्टमी के दिन पूजा के दौरान इस चालीसा का पाठ करके माता रानी की कृपा के पात्र बन सकते हैं।
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दुर्गा चालीसा (Durga Chalisa)

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अंबे दुःख हरनी॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

शंकर अचरज तप कीनो। काम क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

आशा तृष्णा निपट सतावें। रिपु मुरख मोही डरपावे॥

करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।

जब लगि जियऊं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥

॥ इति श्रीदुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥
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