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Ganga Avtaran Katha: धरती पर कैसे हुआ मां गंगा का अवतरण जानिए पूरी कथा

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: कोमल Updated Wed, 05 Jun 2024 05:06 AM IST
सार

Ganga Avtaran Katha: पुराणों में देवी गंगा के जन्म की कई कथाएं हैं। साथ ही इनमें स्वर्ग से धरती पर गंगा के आगमन का रहस्य भी बताया गया है। इतना ही नहीं, देवी गंगा के मानव रूप में प्रेम की भी एक बहुत ही रोचक कथा है।

माँ गंगा
माँ गंगा- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Ganga Avtaran Katha: पुराणों में देवी गंगा के जन्म की कई कथाएं हैं। साथ ही इनमें स्वर्ग से धरती पर गंगा के आगमन का रहस्य भी बताया गया है। इतना ही नहीं, देवी गंगा के मानव रूप में प्रेम की भी एक बहुत ही रोचक कथा है। जिससे पता चलता है कि गंगा का अविरल प्रवाह न केवल तन और मन को शुद्ध करता है बल्कि प्रेम का संचार भी करता है। आइए आपको बताते हैं कि मां गंगा धरती पर कैसे अवतरित हुईं
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मां गंगा धरती पर कैसे अवतरित हुईं

गंगा नदी के धरती पर आगमन की एक कथा प्रचलित है कि, प्राचीन काल में सगर नाम का एक प्रतापी राजा हुआ करता था। जिसने अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया और यज्ञ के दौरान एक घोड़ा छोड़ा। जब देवराज इंद्र को इस यज्ञ के बारे में पता चला तो वे चिंतित हो गए। उन्हें चिंता थी कि अगर अश्वमेध का घोड़ा स्वर्ग से गुजर गया तो राजा सगर स्वर्ग पर भी अपना साम्राज्य स्थापित कर लेंगे। पौराणिक काल में अश्वमेध यज्ञ के दौरान छोड़ा गया घोड़ा जिस राज्य से होकर गुजरता था, वह राज्य उसी राजा का होता था। अत: स्वर्ग छिन जाने के भय से इंद्र ने वेश बदलकर राजा सगर का घोड़ा चुपचाप कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। इस दौरान कपिल मुनि गहन ध्यान में लीन थे।

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जब राजा सगर को घोड़े की चोरी की बात पता चली तो वे बहुत क्रोधित हुए और क्रोध में आकर उन्होंने अपने साठ हजार पुत्रों को घोड़े की खोज में भेजा। जब उनके पुत्रों को पता चला कि घोड़ा कपिल मुनि के आश्रम में बंधा है तो उन्होंने कपिल मुनि को ही चोर समझ लिया और उनसे युद्ध करने के लिए आश्रम में प्रवेश कर गए। ध्यान में लीन कपिल मुनि ने जब शोर सुना तो वे मौके पर पहुंचे। जहां सगर के पुत्र उन पर घोड़े की चोरी का झूठा आरोप लगा रहे थे। यह सुनकर देव मुनि बहुत क्रोधित हुए और क्रोध में आकर उन्होंने राजा सगर के सभी पुत्रों को अग्नि में जला दिया और उनके सभी पुत्र प्रेत लोक में भटकने लगे। ऐसा इसलिए क्योंकि अंतिम संस्कार किए बिना भस्म हो जाने के कारण पुत्रों को मोक्ष नहीं मिल पा रहा था।

राजा सगर के कुल में जन्मे राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर जब भगवान विष्णु भगीरथ के समक्ष प्रकट हुए तो उन्होंने उनसे वरदान मांगने को कहा। भगीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए मां गंगा को धरती पर लाने की प्रार्थना की। मां गंगा मृत्युलोक में आने के लिए तैयार नहीं थीं, लेकिन उन्होंने एक युक्ति सोची और शर्त रखी कि वह बहुत तेज गति से धरती पर अवतरित होंगी और अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को बहा ले जाएंगी। गंगा की इस हालत से भगवान विष्णु भी चिंतित हो गए और उन्होंने भोलेनाथ से इसका उपाय निकालने को कहा। तब भगवान विष्णु ने कहा कि वे गंगा को अपनी जटाओं में समाहित कर लेंगे, जिससे धरती पर विनाश नहीं होगा। इसके बाद भगवान शंकर ने गंगा को अपनी जटाओं में समाहित कर लिया और इस तरह गंगा नदी धरती पर प्रकट हुईं।
 
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