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Dev Uthani ekadashi 2024: इस साल कब है देवउठनी एकादशी , जानिए तिथि, शुभ महूर्त और व्रत कथा

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: कोमल Updated Mon, 20 May 2024 05:06 AM IST
सार

Dev Uthani ekadashi 2024 : हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के अगले दिन देवउठनी अमावस्या मनाई जाती है। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागृत होते हैं।

देवउठनी एकादशी
देवउठनी एकादशी- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Dev Uthani ekadashi 2024 : हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के अगले दिन देवउठनी अमावस्या मनाई जाती है। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागृत होते हैं। इससे पूर्व आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी तिथि से भगवान विष्णु क्षीर सागर में चार माह के लिए विश्राम करने चले जाते हैं। मूलतः आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि से लेकर कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि तक चातुर्मास रहता है। शास्त्रों में चातुर्मास के दौरान शुभ कार्य करना मना है। मूलतः चार महीनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं हुआ। आइए, देव उठनी एकादशी की तिथि, शुभ मुहूर्त एवं योग जानते हैं-
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शुभ मुहूर्त 

ज्योतिषियों की गणना तो कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 11 नवंबर को संध्याकाल 06 मिनट पर प्रारंभ होगी और 12 नवंबर को संध्याकाल 04 मिनट पर समाप्त होगी। इस प्रकार 12 नवंबर को देवउठनी एकादशी है। इसके अगले दिन तुलसी विवाह होता है। तुलसी विवाह तिथि से सभी प्रकार के शुभ कार्य मिलते हैं।

पारण समय

व्रती तुलसी विवाह अर्थात 13 नवंबर को प्रातः 06 बागान 42 मिनट से लेकर 08 उत्सव 51 मिनट तक व्रत खोला जा सकता है। इस समय स्नान विधि-ध्यान से निवृत्त विधान से जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा करें। इसके बाद ब्राह्मणों को अन्न दान व्रत धारक।
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शुभ योग

ज्योतिषियों की सलाह तो देवउठनी एकादशी को शाम 07 बजे 10 मिनट तक हर्षण योग का निर्माण हो रहा है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण प्रातः 07 बजे 52 मिनट पर हो रहा है, जो 13 नवंबर को प्रातः 05 बजे 40 मिनट पर समाप्त हो रहा है। साथ ही रवि योग का संयोग भी बन रहा है। यह योग प्रातः 06 बजे 42 मिनट से लेकर प्रातः 07 बजे तक 52 मिनट तक है। इन योग के दौरान भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

देवउठनी एकादशी का महत्व

देवउठनी एकादशी को सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र एकादशियों में से एक माना जाता है। इसे प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस शुभ दिन पर साध्य व्रत रखे जाते हैं और बड़ी श्रद्धा के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। यह कार्तिक माह में आती है और कार्तिक माह का अपना धार्मिक महत्व है, क्योंकि यह पूरे महीने भगवान विष्णु को समर्पित है।इसी दिन, भगवान विष्णु चार महीने के बाद जागेंगे, जिसे चातुर्मास के रूप में जाना जाता है। साथ ही इस दिन से ही सभी मांगलिक कार्य की शुरुआत होगी।

तुलसी-शालिग्राम विवाह का महत्व

कार्तिक में स्नान करने वाली स्त्रियाँ ब्रह्माण्ड को भगवान विष्णु के रूप में शालिग्राम एवं विष्णुप्रिया तुलसी का विवाह करवाती हैं। पूर्ण रीति-रिवाज से तुलसी वृक्ष से शालिग्राम के फेरे एक सुंदर मंडप के नीचे मिलते हैं। विवाह में कई गीत, भजन व तुलसी नामाष्टक सहित विष्णुसहस्त्रनाम के पाठ्य ज्ञान का विधान है। धार्मिक मान्यता है कि निद्रा से जगने के बाद भगवान विष्णु सबसे पहले तुलसी को बुलाते हैं इसलिए लोग इस दिन तुलसी का भी पूजन करते हैं और मन ही मन मांगते हैं। तुलसी विवाह को देव महोत्सव के पवित्र महोत्सव के रूप में माना जाता है। असल में तुलसी माध्यम है श्री हरि विष्णु को जगाने का,उनका पूजन करने का। शास्त्रों के अनुसार तुलसी-शालिग्राम विवाह से पुण्य मिलता है, दाम्पत्य जीवन में प्रेम बना रहता है।



देवउठनी की कथा

धार्मिक ग्रंथों में स्वयं श्रीकृष्ण ने इसका महत्व बताया है, जिसके अनुसार एक राज्य में प्रजा से लेकर जानवर तक कोई भी एकादशी के दिन भोजन नहीं करता था। एक दिन भगवान विष्णु ने राजा की परीक्षा लेने की सोची और एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण करके सड़क के किनारे बैठ गये। जब राजा सुंदरी से मिले तो उन्होंने उससे यहां बैठने का कारण पूछा। महिला ने बताया कि वह बेसहारा है. राजा उसकी सुन्दरता पर मोहित हो गये और कहा कि तुम रानी बनो और मेरे साथ महल में चलो।
 

श्रीहरि ने राजा की परीक्षा ली

उस खूबसूरत महिला के राजा के सामने शर्त रखी गई कि वह प्रस्ताव तभी स्वीकार करेगी जब उसे पूरे राज्य का अधिकार दिया जाएगा और राजा को वह खाना खाना होगा जो वह बनाएगी। राजा ने शर्त स्वीकार कर ली। अगले दिन एकादशी को सुंदरी ने अन्य दिनों की भाँति बाजारों में अन्न बेचने का आदेश दिया। उसने मांसाहारी भोजन तैयार किया और राजा को उसे खाने के लिए मजबूर किया। राजा ने कहा कि आज मैं एकादशी के व्रत में केवल फल खाता हूं. रानी ने राजा को शर्त याद दिलायी और कहा कि यदि उसने यह तामसिक भोजन नहीं खाया तो वह बड़े राजकुमार का सिर धड़ से अलग कर देगी।

धर्मसंकट में फसें  राजा 

राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी को बतायी। बड़ी रानी ने राजा से अपने धर्म का पालन करने को कहा और अपने पुत्र का सिर काटने को तैयार हो गयी। यदि सुंदरी ने उसकी बात नहीं मानी तो राजा हताश हो गया और राजकुमार का सिर देने को तैयार हो गया। राजा का धर्म के प्रति समर्पण देखकर सुंदर स्त्री रूपी श्रीहरि बहुत प्रसन्न हुए और वे अपने वास्तविक स्वरूप में आकर राजा के सामने उपस्थित हो गये।विष्णु जी ने राजा से कहा कि आप परीक्षा में सफल हो गये हैं, बताइये आपको क्या वरदान चाहिए। राजा ने इस जीवन के लिए भगवान को धन्यवाद दिया और कहा, अब मुझे बचा लो। श्रीहरि ने राजा की प्रार्थना स्वीकार कर ली और उनकी मृत्यु के बाद वे बैंकुठ लोक चले गये।

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