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Bajrang Baan: इस विधि से करें बजरंग बाण का पाठ, मिलेगा बहुत लाभ

जीवांजलि धार्मिक डेस्क Published by: कोमल Updated Wed, 22 May 2024 05:06 AM IST
सार

Bajrang Baan: हिंदू धर्म और शास्त्रों में बजरंग बाण की अत्यधिक पूजा की जाती है। बजरंगबली की आरती की तरह बजरंग बाण को भी हनुमान जी की भक्ति, शक्ति और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। 

बजरंग बाण के नियम
बजरंग बाण के नियम- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Bajrang Baan: हिंदू धर्म और शास्त्रों में बजरंग बाण की अत्यधिक पूजा की जाती है। बजरंगबली की आरती की तरह बजरंग बाण को भी हनुमान जी की भक्ति, शक्ति और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। कहा जाता है कि बजरंग बाण का विधिपूर्वक पाठ करने से कुंडली में मंगल दोष से मुक्ति मिलती है और शत्रु, भय और रोगों से भी छुटकारा मिलता है। हर शब्द में अनोखी शक्ति है. मंगलवार के दिन बजरंग बाण का पाठ करने से कई अचूक लाभ मिलते हैं। हालांकि इसका लाभ उठाने के लिए पाठ करते समय कुछ नियमों का पालन करना जरूरी है।

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बजरंग बाण का पाठ करने की विधि - Method of reciting Bajrang Baan

बजरंग बाण को सिद्ध करने के लिए विधि का प्रयोग करना चाहिए। बजरंग बाण पाठ के लिए किसी भी मंगलवार को रात्रि 11 बजे से 1 बजे तक का समय सुनिश्चित करें। सबसे पहले आप पूर्व दिशा में चौकी स्थापित करें। चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं। फिर कागज पर "ॐ हं हनुमते रुद्रतकाय हुं फट्" मंत्र लिखकर चौकी पर रख दें। चौकी के दाहिनी ओर घी का दीपक जलाएं और कुश के आसन पर बैठकर लगभग पांच बार बजरंग बाण का पाठ करें। इसके बाद कागज पर लिखे मंत्र को उठाकर घर में बने मंदिर में रख दें और रोजाना इसकी पूजा करें।
 

बजरंग बाण के पाठ के दौरान भूलकर भी न करें ये गलतियां - Do not make these mistakes while reciting Bajrang Baan

बजरंग बाण का पाठ करते समय कुछ गलतियां करने से बचना चाहिए। इसे किसी भी दिन शुरू न करें. बजरंग बाण पाठ का आरंभ मंगलवार को ही करना चाहिए। इस पाठ को कभी भी अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए।
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कम से कम 41 दिन तक बजरंग बाण का पाठ अवश्य करें। इस पाठ के दौरान काले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए। बजरंग बाण का पाठ हमेशा लाल रंग के वस्त्र पहनकर करना चाहिए। जितने दिन आप बजरंग बाण का पाठ करने का संकल्प लें उतने दिन मांसाहार से दूर रहें। 


 

बजरंग बाण - Bajrang Baan

" दोहा "

"निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।"

"तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥"

"चौपाई"

जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।।

जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महासुख दीजै।।

जैसे कूदि सिन्धु महि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।

आगे जाई लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।

जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा।।

बाग़ उजारि सिन्धु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा।।

अक्षयकुमार को मारि संहारा। लूम लपेट लंक को जारा।।

लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर में भई।।

अब विलम्ब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु उर अन्तर्यामी।।

जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होय दुख हरहु निपाता।।

जै गिरिधर जै जै सुखसागर। सुर समूह समरथ भटनागर।।

ॐ हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहिं मारु बज्र की कीले।।

गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो।।

ऊँकार हुंकार प्रभु धावो। बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो।।

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ऊँ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा।।

सत्य होहु हरि शपथ पाय के। रामदूत धरु मारु जाय के।।

जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।

पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत हौं दास तुम्हारा।।

वन उपवन, मग गिरिगृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।

पांय परों कर ज़ोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।

जय अंजनिकुमार बलवन्ता। शंकरसुवन वीर हनुमन्ता।।

बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक।।

भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बेताल काल मारी मर।।

इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की।।

जनकसुता हरिदास कहावौ। ताकी शपथ विलम्ब न लावो।।

जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा।।

चरण शरण कर ज़ोरि मनावौ। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।

उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई। पांय परों कर ज़ोरि मनाई।।

ॐ चं चं चं चं चपत चलंता। ऊँ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता।।

ऊँ हँ हँ हांक देत कपि चंचल। ऊँ सं सं सहमि पराने खल दल।।

अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होय आनन्द हमारो।।

यह बजरंग बाण जेहि मारै। ताहि कहो फिर कौन उबारै।।

पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।

यह बजरंग बाण जो जापै। ताते भूत प्रेत सब काँपै।।

धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहै कलेशा।।

"दोहा"

" प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान। "

" तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान।। "
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