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Lakshmi Stotra : ऊँ नम; कमलवासिन्यै नारायण्यै नमो । जरूर करें लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ

jeevanjali Published by: सुप्रिया शर्मा Updated Thu, 07 Dec 2023 04:52 PM IST
सार

Lakshmi Stotra: ऊँ नम: कमलवासिन्यै नारायण्यै नमो नम: ।  शुक्रवार के दिन लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करने से उसके जीवन में खुशियां ही खुशियां आती है लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना लाभकारी माना गया है

महालक्ष्मी स्तोत्र पाठ
महालक्ष्मी स्तोत्र पाठ- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Lakshmi Stotra : शुक्रवार के दिन लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करने से उसके जीवन में खुशियां ही खुशियां आती है और जीवन धन्य हो जाता है  लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना बहुत ही लाभकारी माना गया है  लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करने से घर में मां लक्ष्मी का आगमन होता है और घर धन-धान्य से भरा रहता है  लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करने से  मां लक्ष्मी बहुत प्रसन्न होती हैं। जो भी व्यक्ति लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ  करता है उसके ऊपर मां लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है ।  लक्ष्मी स्तोत्र का शास्त्रों में विशेष स्थान प्राप्त है । लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करने से बहुत लाभ मिलता है । शुक्रवार के दिन जो भी व्यक्ति लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करता है उसके जीवन से सारी परेशानियां खत्म हो जाती हैं ।

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लक्ष्मी स्तोत्र


इन्द्र उवाच
ऊँ नम: कमलवासिन्यै नारायण्यै नमो नम: ।
कृष्णप्रियायै सारायै पद्मायै च नमो नम: ॥1॥

पद्मपत्रेक्षणायै च पद्मास्यायै नमो नम: ।
पद्मासनायै पद्मिन्यै वैष्णव्यै च नमो नम: ॥2॥

सर्वसम्पत्स्वरूपायै सर्वदात्र्यै नमो नम: ।
सुखदायै मोक्षदायै सिद्धिदायै नमो नम: ॥3॥

हरिभक्तिप्रदात्र्यै च हर्षदात्र्यै नमो नम: ।
कृष्णवक्ष:स्थितायै च कृष्णेशायै नमो नम: ॥4॥

कृष्णशोभास्वरूपायै रत्नपद्मे च शोभने ।
सम्पत्त्यधिष्ठातृदेव्यै महादेव्यै नमो नम: ॥5॥

शस्याधिष्ठातृदेव्यै च शस्यायै च नमो नम: ।
नमो बुद्धिस्वरूपायै बुद्धिदायै नमो नम: ॥6॥

वैकुण्ठे या महालक्ष्मीर्लक्ष्मी: क्षीरोदसागरे ।
स्वर्गलक्ष्मीरिन्द्रगेहे राजलक्ष्मीर्नृपालये ॥7॥
गृहलक्ष्मीश्च गृहिणां गेहे च गृहदेवता ।
सुरभी सा गवां माता दक्षिणा यज्ञकामिनी ॥8॥

अदितिर्देवमाता त्वं कमला कमलालये ।
स्वाहा त्वं च हविर्दाने कव्यदाने स्वधा स्मृता ॥9॥

त्वं हि विष्णुस्वरूपा च सर्वाधारा वसुन्धरा ।
शुद्धसत्त्वस्वरूपा त्वं नारायणपरायणा ॥10॥

क्रोधहिंसावर्जिता च वरदा च शुभानना ।
परमार्थप्रदा त्वं च हरिदास्यप्रदा परा ॥11॥

यया विना जगत् सर्वं भस्मीभूतमसारकम् ।
जीवन्मृतं च विश्वं च शवतुल्यं यया विना ॥12॥

सर्वेषां च परा त्वं हि सर्वबान्धवरूपिणी ।
यया विना न सम्भाष्यो बान्धवैर्बान्धव: सदा ॥13॥

त्वया हीनो बन्धुहीनस्त्वया युक्त: सबान्धव: ।
धर्मार्थकाममोक्षाणां त्वं च कारणरूपिणी ॥14॥

यथा माता स्तनन्धानां शिशूनां शैशवे सदा ।
तथा त्वं सर्वदा माता सर्वेषां सर्वरूपत: ॥15॥

मातृहीन: स्तनत्यक्त: स चेज्जीवति दैवत: ।
त्वया हीनो जन: कोsपि न जीवत्येव निश्चितम् ॥16॥

सुप्रसन्नस्वरूपा त्वं मां प्रसन्ना भवाम्बिके ।
वैरिग्रस्तं च विषयं देहि मह्यं सनातनि ॥17॥

वयं यावत् त्वया हीना बन्धुहीनाश्च भिक्षुका: ।
सर्वसम्पद्विहीनाश्च तावदेव हरिप्रिये ॥18॥

राज्यं देहि श्रियं देहि बलं देहि सुरेश्वरि ।
कीर्तिं देहि धनं देहि यशो मह्यं च देहि वै ॥19॥

कामं देहि मतिं देहि भोगान् देहि हरिप्रिये ।
ज्ञानं देहि च धर्मं च सर्वसौभाग्यमीप्सितम् ॥20॥

प्रभावं च प्रतापं च सर्वाधिकारमेव च ।
जयं पराक्रमं युद्धे परमैश्वर्यमेव च ॥21॥

फलश्रुति:
इदं स्तोत्रं महापुण्यं त्रिसंध्यं य: पठेन्नर: ।
कुबेरतुल्य: स भवेद् राजराजेश्वरो महान् ॥
सिद्धस्तोत्रं यदि पठेत् सोsपि कल्पतरुर्नर: ।
पंचलक्षजपेनैव स्तोत्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम् ॥
सिद्धिस्तोत्रं यदि पठेन्मासमेकं च संयत: ।
महासुखी च राजेन्द्रो भविष्यति न संशय: ॥

॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्तमहापुराणे इन्द्रकृतं लक्ष्मीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
 

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